आधी सदी गुजर जाने के बाद भी शरद पवारमहाराष्ट्र की राजनीति में सबसे ताकतवर खिलाड़ी बने हुए हैं। 50 साल पहले विधायक बनने वाले शरद पवार 2019 में महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री तय कर रहे हैं वो भी जब केंद्र में पीएम मोदी और अमित शाह की ताकतवर जोड़ी है। साथ ही जब महाराष्ट्र में बीजेपी 105 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी है। पवार ने पिछले 50 सालों को अपने राजनीतिक निर्णयों से सभी को इतना हैरान किया है कि इस बार भतीजे अजीत पवार के विद्रोह को भी उनसे जोड़कर देखा जा रहा है। खुद शरद पवार बार-बार इसका खंडन कर रहे हैं।
सोमवार को एनसीपी चीफ ने कहा, अजित पवार के भाजपा के साथ जाने और उप मुख्यमंत्री बनने के निर्णय के पीछे वह नहीं थे और एकबार फिर दावा किया कि महाराष्ट्र में उनकी पार्टी, कांग्रेस और शिवसेना के साथ मिलकर सरकार बनाएगी। सतारा जिले के कराड में पवार ने पत्रकारों से कहा कि भाजपा के साथ जाने का फैसला उनके भतीजे अजित पवार का है। पवार ने कहा, ‘‘ यह पार्टी का निर्णय नहीं है और हम इसका समर्थन नहीं करते।’’उन्होंने यह भी कहा कि अजित पवार के साथ वह सम्पर्क में नहीं हैं, जिन्होंने एनसीपी के खिलाफ बगावत की है। गौरतलब है कि महाराष्ट्र में अप्रत्याशित राजनीतिक घटनाक्रम में राज्यपाल ने शनिवार की सुबह देवेंद्र फड़नवीस को मुख्यमंत्री और अजित पवार को उप मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलायी थी। अजित ने राज्य में स्थायी सरकार बनाने की बात कहते हुए भाजपा को समर्थन दे दिया था।
आखिर पवार को क्यों देनी पड़ी सफाई
देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के समय सिर्फ 18 साल की उम्र में यूथ कांग्रेस से राजनीतिक जीवन शुरू करने वाले सियासी उलटफेर के माहिर खिलाड़ी माने जाते हैं। उन्होंने इंदिरा गांधी के बुरे समय में कांग्रेस का साथ छोड़ा तो मुख्यमंत्री बनने के लिए पार्टी तोड़ दी। विधानसभा में विपक्ष का नेता रहते हुए राजीव गांधी के साथ हो गए और कांग्रेस से मुख्यमंत्री बन भी गए।
कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी के विदेशी मूल के मुद्दे पर एनसीपी बना ली और कुछ महीने बाद ही महाराष्ट्र में कांग्रेस के साथ सरकार बना ली। कहा जाता है कि 50 साल के राजनीतिक जीवन शरद पवार ने हर ताकतवर नेता से दो-दो हाथ किए हैं। राजीव गांधी के रहते हुए भले ही वह कांग्रेस में रहे हैं लेकिन 2015 में अपनी आत्मकथा ऑन माय टर्म्स में उन्होंने एक टिप्पणी कर कांग्रेस को असहज कर दिया।
अपनी किताब में शरद पवार कहते हैं, 1987 में जब वह महाराष्ट्र में कांग्रेस की ओर से मुख्यमंत्री बने तो उनके खिलाफ तख्तापलट की शुरुआत हुई थी। लेकिन योजना उस समय खिसक गई जब 1990 में विधायक दल ने उनके पक्ष में भारी मतदान किया। महाराष्ट्र कांग्रेस के कुछ बड़े नेताओं ने उनके नेतृत्व के खिलाफ विद्रोह का बैनर उठाया। वे आलाकमान के इशारे पर काम कर रहे थे, हालांकि उन्हें जमीन पर बहुत कम समर्थन मिला था। बता दें कि उस समय राजीव गांधी कांग्रेस अध्यक्ष थे।
शरद पवार का सियासी सफर
1958- 18 साल की उम्र में यूथ कांग्रेस से शुरुआतॉ1969-कांग्रेस के टिकट से सिर्फ 27 साल में बारामती से विधायक बने1969- कांग्रेस टूटने के बाद इंदिरा गांधी से साथ कांग्रेस (आर) से जुड़े1975- शंकरराव चह्वाण की सरकार में महाराष्ट्र कैबिनेट के सदस्य बने1977-इंदिरा गांधी का साथ छोड़कर कांग्रेस (एस) से जुड़े1978-38 साल की उम्र में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बने, कांग्रेस (एस) के विधायकों को तोड़कर जनता पार्टी के साथ सरकार बनाई1980-इंदिरा गांधी सत्ता में वापसी लौटीं, केंद्र ने महाराष्ट्र सरकार बर्खास्त की1984- बारामती से Indian Congress (Socialist) से लोकसभा सांसद चुने गए1985-बारामती से विधायक बने, संसद से इस्तीफा दिया, विधानसभा में विपक्ष के नेता बने (कांग्रेस-एस)1987-राजीव गांधी के पीएम रहते कांग्रेस (इंदिरा) ज्वाइन की1988-राजीव गांधी ने शरद पवार को महाराष्ट्र का सीएम बनाया1990-शरद पवार तीसरी बार महाराष्ट्र के सीएम बने1991-नरसिंहा राव सरकार में रक्षा मंत्री बने1993-रक्षा मंत्री के पद से इस्तीफा दिया, दंगों के बाद चौथी बार महाराष्ट्र का कार्यभार संभाला1995- महाराष्ट्र विधानसभा में विपक्ष के नेता बने1996-बारामती लोकसभा सीट से सांसद चुने गए1998-लोकसभा में विपक्ष के नेता बने1999-सोनिया गांधी के विदेशी मूल के मुद्दे पर कांग्रेस छोड़ा, नेशनल कांग्रेस पार्टी बनाई1999-पवार की पार्टी एनसीपी ने कांग्रेस के साथ मिलकर महाराष्ट्र में सरकार बनाई2004-मनमोहन सिंह सरकार में कृषि मंत्री बने