बेंगलुरु: नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरोसाइंसेज को रिसर्च के लिए पहले हंटिंगटन रोगी का मिला मस्तिष्क
By अनुभा जैन | Published: February 20, 2024 04:19 PM2024-02-20T16:19:41+5:302024-02-21T11:08:41+5:30
महिला के बेटे ने कहा कि आखिरी सांस तक उसकी मां की सांकेतीक क्षमताएं अच्छी थीं। उसे मानसिक समस्याएं थीं, लेकिन उन्हें अपने बैंक खाते और मिलने वाली पेंशन के बारे में पता था।
बेंगलुरु: नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरोसाइंसेज (निम्हांस) के ब्रेन बैंक को रिसर्च के लिए बेंगलुरु स्थित 62 वर्षीय हंटिंगटन डिजीज (एचडी) महिला रोगी का मस्तिष्क प्राप्त हुआ है। महिला बैंक मैनेजर थी और अपनी अंतिम इच्छा के रूप में अपना मस्तिष्क दान करना चाहती थी। पेशे से इंजीनियर उनके बेटे ने अपनी मां के मस्तिष्क दान के लिए निम्हांस से संपर्क किया। यह इस तरह का पहला हंटिंगटन रोग मस्तिष्क दान है। इससे एचडी शोध को काफी बढ़ावा मिलेगा।
महिला के बेटे ने कहा कि आखिरी सांस तक उसकी मां की संज्ञानात्मक क्षमताएं अच्छी थीं। उसे मानसिक समस्याएं थीं, लेकिन उसे अपने बैंक खाते और मिलने वाली पेंशन के बारे में पता था। हंटिंगटन रोग (एचडी) एक न्यूरोलॉजिकल अपक्षयी विकार है जो रोगी की सोचने, चलने और अपनी भावनाओं को दिखाने की क्षमता को प्रभावित करता है। यह मनोरोग संबंधी समस्याएं पैदा कर सकता है।
निम्हांस में न्यूरोपैथोलॉजी की एचओडी और प्रोफेसर अनीता महादेवन ने कहा, "अब हमारे पास वास्तविक मस्तिष्क है, काम करने के लिए और यह समझने के लिए कि कुछ भी ऐसा क्यों हो रहा है, जो हमें भविष्य में इलाज की ओर ले जाता है। इस मस्तिष्क दान से पहले बीमारी को समझने के लिए मस्तिष्क में क्या हो रहा था, उसे प्रतिबिंबित करने के लिए रक्त के नमूने आदि जैसी हर चीज का उपयोग किया गया था। हमें सामान्य मस्तिष्क दान की भी आवश्यकता है, जो तुलना करने में सहायक बनेगा। न्यूरोडीजेनेरेटिव रोगों के लिए पशु मॉडल बहुत प्रभावी नहीं हैं। अनीता ने बताया कि मृतक मरीज को 9 फरवरी, 2024 को रात 11 बजे निम्हांस में लाया गया था और आधी रात तक उसका ऑपरेशन किया गया। प्रक्रिया पूरी करने में करीब 2 घंटे लग गए और उसे अंतिम संस्कार के लिए परिवार को वापस सौंप दिया गया"।
प्रोफेसर अनीता ने आगे कहा, "शोध के लिए मस्तिष्क दान महत्वपूर्ण है। निम्हांस ब्रेन बैंक 1995 से स्थापित किया गया है और डिमेंशिया या न्यूरोडीजेनेरेशन के लिए हमें मिलने वाले मस्तिष्क की संख्या कम है। इन रोगियों की लंबी बीमारी के बाद घर पर ही मृत्यु हो जाती है।
दान रोगी और उनके परिवारों पर निर्भर करता है जो तंत्रिका विज्ञान अनुसंधान में योगदान देना चाहते हैं और परिवारों को ऐसी सुविधाओं की उपलब्धता के बारे में कितनी जानकारी है उसपर भी दान निर्भर करता है। इस दिशा में अभी तक कुछ बड़े पैमाने पर नहीं हुआ है।" निम्हांस के डॉक्टर और शोधकर्ता उम्मीद कर रहे हैं कि यह शुरुआत और पहला मामला है जो आने वाले समय में मस्तिष्क दान के लिए रास्ता खोलेगा।
एचडी बीमारी के बारे में बात करते हुये डॉ. संजीव जैन, निम्हांस के एमेरिटस प्रोफेसर, मनोरोग विभाग, ने कहा कि इस दुर्लभ आनुवंशिक रूप से प्रसारित विकार का कोई ज्ञात इलाज नहीं है और इस बीमारी से पीड़ित लोगों की असामयिक मृत्यु हो जाती है। हमें नहीं पता कि हमारे देश में कितने मरीज इस विकार से पीड़ित हैं और एचडी के लिए कोई इलाज भी उपलब्ध नहीं है। जिस बीमारी के बारे में आप कुछ नहीं कर सकते, उसके परिवार के किसी रिश्तेदार के बीमार होने के भावनात्मक परिणाम बहुत दुखद और भयानक होते हैं।
शरीर के अन्य हिस्सों की तरह, शरीर का नाजुक लेकिन महत्वपूर्ण हिस्सा, यानी मस्तिष्क, हम इसके बारे में बहुत कुछ नहीं कर सकते हैं या इसका सीधे अध्ययन नहीं कर सकते हैं। यह दान एचडी को अधिक सटीक रूप से समझने में मदद करेगा और बीमारी के बेहतर इलाज और अंतर्दृष्टि के लिए नए शोध कार्य में मदद करेगा।