प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार (तीन अप्रैल) को सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय द्वारा सोमवार (दो अप्रैल) को जारी किए गए फेक न्यूज से जुड़े गये बयान को वापस लेने के निर्देश दिया है। समाचार एजेंसी एनएनआई के अनुसार पीएम मोदी ने कहा है इस मामले पर केवल प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया (पीसीआई) में विचार किया जाना चाहिए। सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय की तरफ से सोमवार को जारी किए गए बयान में कहा गया था कि फेक न्यूज चलाने वाले पत्रकारों की मान्यता हमेशा के लिए रद्द कर दी जाएगी। मंत्रालय के बयान के अनुसार पहली बार फेक न्यूज चलाने पर पत्रकार की मान्यता छह महीने के लिए रद्द की जाएगी। दूसरी बार फेक न्यूज चलाने पर एक साल के लिए मान्यता रद्द हो जाएगी। अगर कोई पत्रकार तीसरी बार फेक न्यूज चलाने का दोषी पाया गया तो उसकी मान्यता हमेशा के लिए रद्द कर दी जाएगी। पीएम के हस्तक्षेप के बाद अब सूचना प्रसारण मंत्रालय के इस निर्देश पर अमल नहीं होगा।
भारत सरकार के पत्र एवं सूचना कार्यालय (पीआईबी) में पंजीकरण के लिए किसी सेवारत पत्रकार को किसी समाचार संस्था में पांच वर्षों तक पूर्णकालिक पत्रकार के तौर पर काम करने का अनुभव होना चाहिए। स्वतंत्र पत्रकारों और विदेशी मीडिया संस्थाओं के पत्रकारों को पीआईबी में पंजीकरण कराने के लिए 15 वर्ष का अनुभव चाहिए होता है। हम यहां स्पष्ट कर दें कि किसी भी मीडिया संस्थान में काम करने के लिए पत्रकारों को पीआईबी की मान्यता की जरूरत नहीं होती। पीआईबी हर संस्थान के कुछ पत्रकारों को ही मान्यता देती है। भारत सरकार अपने कई आयोजनों में केवल पीआईबी मान्यता प्राप्त पत्रकारों को ही प्रवेश करने देती है। विभिन्न मंत्रालयों में भी केवल पीआईबी मान्यता प्राप्त पत्रकार ही मीडिया कर्मी प्रवेश पा सकते हैं।
मंत्रालय की ओर से जारी बयान में कहा गया था कि प्रिंट मीडिया (अखबार-पत्रिका इत्यादि) में छपी फेक न्यूज की शिकायत प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया (पीसीआई) की जा सकती है। किसी टीवी चैनल पर चली फेक न्यूज की शिकायत न्यूज ब्रॉडकास्टर एसोसिएशन (एनबीए) से की जा सकती है। इन संस्थाओं को शिकायत के 15 दिनों के अंदर फैसला करना होगा कि संबंधित खबर सही है या जाली। फेक न्यूज की शिकायत मिलने पर उसे बनाने या फैलाने वाले पत्रकार की मान्यता तब तक के लिए स्थगित कर दी जाएगी जब तक उस पर सक्षम संस्था का फैसला नहीं आ जाता।
हालाँकि कई वरिष्ठ पत्रकारों ने मोदी सरकार के इस नए निर्देश को मीडिया पर अंकुश लगाने की कोशिश बताया है। वरिष्ठ पत्रकार और इंडियन एक्सप्रेस के पूर्व प्रधान संपादक शेखर गुप्ता ने ट्वीट किया, "गलती न करें। मुख्यधारा की मीडिया का गला घोटने वाला फैसला है। ये राजीव गांधी के मानहानि विधेयक जैसा मामला है। मीडिया को अपने मतभेद भुलाकर इसका विरोध करना चाहिए।"
कांग्रेस नेता अहमद पटेल ने सोमवार को मोदी सरकार के ताजा फैसले पर सवाल उठाया था। पटेल ने कहा इस फैसले की आड़ में सरकार जिन खबरों से असहज होती है उन्हें दबाने की कोशिश हो सकती है। पटेल की टिप्पणी पर प्रतिक्रिया देते हुए सूचना एवं प्रसारण मंत्री स्मृति ईरानी ने कहा था कि पीसीआई और एनबीए "सरकार द्वारा संचालित" संस्थाएं नहीं हैं। कोई खबर फेक न्यूज है या नहीं और शिकायत सही पाए जाने पर सजा दोनों का फैसला ये दोनों संस्थाएं ही करेंगी।
मंत्रालय के बयान के अनुसार मीडिया संस्थान प्रेस इन्फॉर्मेशन ब्यूरो (पीआईबी) से सम्पर्क करके किसी भी पत्रकार की मान्यता संबंधित आवेदनों के बारे में पता कर सकते हैं। पीआईबी में पीसीआई और एनबीए के प्रतिनिधि शामिल होते हैं। पीआईबी किसी भी पत्रकार को मान्यता देने से पहले इस बात की भी जाँच करेगी कि वो पत्रकार पत्रकारों के लिए तय प्रतिमानों पर खरा उतरता है या नहीं। पीआईबी ने पत्रकारों के लिए नीतिगत और नैतिक मानक निर्धारित कर रखे हैं। मंत्रालय के बयान के अनुसार पत्रकारों के लिए इन मानकों का पालन करना आवश्यक होगा।
हालांकि अभी तक ये स्पष्ट नहीं है कि डिजिटल मीडिया में चलने वाली फेक न्यूज से जुड़े क्या निर्देश हैं। पिछले कुछ सालों में डिजिटल मीडिया के तेज उभार के बीच सबसे ज्यादा फेक न्यूज इंटरनेट पर प्रकाशित या शेयर हुई हैं। अभी हाल में कर्नाटक के बेंगलुरु से संचालित होने वाली वेबसाइट पोस्टकार्ड न्यूज के संचालक को पुलिस ने फेक न्यूज चलाने के आरोप में गिरफ्तार किया। वेबसाइट ने साम्प्रदायिक नफरत फैलाने वाली फेक न्यूज चलायी थी।