प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी राष्ट्रपति के अभिभाषण पर लोकसभा में आज जवाब दे रहे हैं। इस दौरान उन्होंने विपक्ष की ओर से लगाए जा रहे केंद्र सरकार पर जल्दबाजी के आरोपों का जवाब दिया है। इस दौरान उन्होंने अपने भाषण की शुरुआत सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की कविता से की और विपक्ष पर इशारों ही इशारों में हमला बोला। बता दें, संसद के बजट सत्र का आज छठा दिन है।
प्रधानमंत्री ने भाषण के शुरुआत में सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की कविता की कुछ लाइने पढ़ते हुए कहा, 'लीक पर वे चलें जिनके चरण दुर्बल और हारे हैं, हमें तो जो हमारी यात्रा से बने ऐसे अनिर्मित पन्थ प्यारे हैं'।
इसके बाद उन्होंने कहा कि लोगों ने सिर्फ एक सरकार बदली है, केवल ऐसा नहीं है, बल्कि सरोकार भी बदलने की अपेक्षा की है। इस देश की एक नई सोच के साथ काम करने की इच्छा और अपेक्षा के कारण हमें यहां आकर काम करने का अवसर मिला है।
उन्होंने कहा कि हम भी आप लोगों के रास्ते पर चलते, तो शायद 70 साल के बाद भी इस देश से अनुच्छेद 370 नहीं हटता, आपके ही तौर तरीके से चलते, तो मुस्लिम महिलाओं को तीन तलाक की तलवार आज भी डराती। आपकी ही सोच के साथ चलते तो राम जन्मभूमि आज भी विवादों में रहती।
उन्होंने कहा कि आपकी ही सोच अगर होती, तो करतापुर साहिब कोरिडोर कभी नहीं बन पाता। आपके ही के तरीके होते, आपका ही रास्ता होता, तो भारत-बांग्लादेश विवाद कभी नहीं सुलझता। उन्होंने कहा कि अगर कांग्रेस के रास्ते हम चलते ,तो 50 साल बाद भी शत्रु संपत्ति कानून का इंतजार देश को करते रहना पड़ता। 35 साल बाद भी नेक्स्ट जनरेशन लड़ाकू विमान का इंतजार देश को करते रहना पड़ता। 28 साल बाद भी बेनामी संपत्ति कानून लागू नहीं हो पाता। कोई इस बात से इंकार नहीं कर सकता कि देश चुनौतियों से लोहा लेने के लिए हर पल कोशिश करता रहा है। कभी कभी चुनौतियों की तरफ न देखने की आदतें भी देश ने देखी है, चुनौतियों को चुनने का सामर्थ्य नहीं, ऐसे लोगों को भी देखा है।
सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की पूरी कविता यहां पढ़ें
लीक पर वे चलें जिनकेचरण दुर्बल और हारे हैं,हमें तो जो हमारी यात्रा से बनेऐसे अनिर्मित पन्थ प्यारे हैं।
साक्षी हों राह रोके खड़ेपीले बाँस के झुरमुट,कि उनमें गा रही है जो हवाउसी से लिपटे हुए सपने हमारे हैं।
शेष जो भी हैं-वक्ष खोले डोलती अमराइयाँ;गर्व से आकाश थामे खड़ेताड़ के ये पेड़,हिलती क्षितिज की झालरें;झूमती हर डाल पर बैठीफलों से मारतीखिलखिलाती शोख़ अल्हड़ हवा;गायक-मण्डली-से थिरकते आते गगन में मेघ,वाद्य-यन्त्रों-से पड़े टीले,नदी बनने की प्रतीक्षा में, कहीं नीचेशुष्क नाले में नाचता एक अँजुरी जल;सभी, बन रहा है कहीं जो विश्वासजो संकल्प हममेंबस उसी के ही सहारें हैं।
लीक पर वें चलें जिनकेचरण दुर्बल और हारे हैं,हमें तो जो हमारी यात्रा से बनेऐसे अनिर्मित पन्थ प्यारे हैं।