नई दिल्ली: लॉकडाउन में जगह-जगह फंसे और रोजी-रोजगार गंवाने के बाद अपने घरों को पहुंचने के लिए तरस रहे मजदूर भाजपा के लिए चिंता का सबब बन गए हैं. पार्टी को यह चिंता सता रही है कि जितनी बड़ी संख्या में मजदूर परेशान हुए हैं उससे विरोधियों को तो हमला करने का मौका मिला ही है साथ ही इससे उसकी लोकप्रियता में भी कमी आ सकती है.
भाजपा अध्यक्ष जे. पी. नड्डा की अध्यक्षता में हुई पार्टी महासचिवों और वरिष्ठ पदाधिकारियों की बैठक में इस बात पर गहन मंत्रणा की गई. सूत्रों के अनुसार कोविड-19 संकट के बाद के हालात पर चर्चा के लिए बुलाई गई इस बैठक में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद, रेल मंत्री पीयूष गोयल, महिला और बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी समेत वो तमाम चेहरे थे जिन पर जनता भरोसा करती है. दो घंटे से ज्यादा समय तक चली बैठक में शीर्ष नेतृत्व ने नेताओं से मौजूदा हालात पर मंथन के साथ उन्हें सुधारने के उपायों पर भी चर्चा की.
सरकारी योजनाओं का लाभ पहुंचाने में जुटेगा भाजपा संगठन:
पार्टी के एक नेता ने लोकमत समाचार को बताया कि तय किया गया है कि सरकार द्वारा घोषित राहत पैकेज का लाभ देश के हर गरीब और अपने घर लौट रहे प्रवासी मजदूरों और गरीब तबके तक पहुंचाने के काम में संगठन को भी लगाया जाए. भाजपा ने अपने कार्यकर्ताओं से कहा है कि सड़क पर मौजूद मजदूरों की यथासंभव मदद करें. खाना, पानी, चप्पल और दूसरी जरूरत की चीजें उपलब्ध कराकर उनकी परेशानियों को कम किया जाए.
मजदूरों की दुर्दशा ने उड़ाई भाजपा की नींद:
दरअसल देशभर में प्रवासी मजदूरों की दुर्दशा की खबरों ने सरकार के साथ-साथ भाजपा की भी नींद उड़ा दी है. कई जगहों से पैदल चलते-चलते प्रवासी मजदूरों के दम तड़ने तो कहीं रेल और सड़क हादसों में मारे जाने की भी खबरें हैं. बहुतों की तनख्वाह पर कैंची चली है तो लाखों अपनी नौकरी से भी हाथ धो चुके हैं. इनमें से अधिकांश मौजूदा हालात के लिए सरकार के फैसलों को जिम्मेदार भी मानते हैं जो भाजपा की चिंता का सबब बना हुआ है.
किंगमेकर के नाराज होने का खतरा वर्ष-2019 के आम चुनाव में भाजपा ने 2014 के 31.1% के मुकाबले 37.4% वोट हासिल किए थे. सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग साइंस (सीएसडीएस) के अनुसार 2014 में भाजपा को गरीबों के 24% वोट मिले थे वहीं 2019 में यह आंकड़ा बढ़कर 36% हो गया. मौजूदा हालात में भाजपा को सत्ता के शिखर पर पहुंचाने वाले यही किंगमेकर तबका आज सड़कों पर भटक रहा है. ऐसे में वह पार्टी से दूर जा सकता है.
मोदी सरकार की सालगिरह पर फैसला नहीं:
नरेंद्र मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल का एक साल इसी महीने पूरा होने को है, ऐसे में पार्टी के कुछ नेता मोदी सरकार 2.0 की पहली सालगिरह मनाना चाहते हैं लेकिन कोविड-19 संकट के चलते पार्टी इसे लेकर असमंजस में है. ऐसे संकट के समय में किस तरह की गतिविधियां की जाएं इसे लेकर पार्टी ने कोई रूपरेखा तैयार नहीं की है.