दिल्ली हाईकोर्ट ने मंगलवार को वैवाहिक जीवन को लेकर एक अहम बात कही है। सुनवाई के दौरान उन्होंने कहा है कि शादी का मतलब यह नहीं कि कोई महिला शारीरिक संबंध बनाने के लिए हमेशा राजी हो और उसने अपना शरीर पति को सौंप दिया है।
इतना ही नहीं महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कोर्ट ने कहा है कि रेप के लिए हमेशा बल का प्रयोग होता है अगर संबंध जबरदस्ती किया जाए तो वह बल का प्रयोग होता है। मुख्य न्यायाधीश गीता मित्तल और न्यायाधीश सी हरिशंकर की पीठ ने कहा कि उन्होंने कहा है संबंध बनाते समय पति पत्नी दोनों को बराबर ना कहने का कह है। ये सुनवाई कोर्ट ने पुरूषों के द्वारा संचालित एक एनजीओ के द्वारा दायर याचिक पर की।
Blog: ये मेरा हक है इस पर अपनी राय ना दें?
दरअसल एनजीओ वैवाहिक दुष्कर्म को अपराध बनाने वाली याचिका का विरोध कर रहा है। दायर की गई याचिका के मुताबिक शादी शुदा महिला को मौजूदा कानूनों के तहत यौन हिंसा से संरक्षण मिला हुआ है। जबकि यौन उत्पीड़न में बल या खतरे का उपयोग महत्वपूर्ण अपराध हैं। जिस पर कोर्ट ने कहा रेप का मतलब रेप होा है, अगर आपकी शादी हुई है को ठीक है लेकिन यदि आप नहीं हैं, तो यह बलात्कार है? आईपीसी के 375 के तहत इसे अपवाद क्यों होना चाहिए? बल बलात्कार के लिए एक पूर्व शर्त नहीं है।
धारा 375 के मुताबिक किसी भी एक व्यक्ति द्वारा अपनी पत्नी के साथ जिसकी उम्र 15 साल से कम नहीं है, संबंध बनाना बलात्कार नहीं है। वहीं. कोर्ट ने कहा है कि आजकल इसका रूप बदल गया है पति के द्वारा बलात्कार में यह जरूरी नहीं है कि इसके लिए बल प्रयोग किया जाए। यदि कोई महिला ऐसे आरोप लगाकर अपने पति के खिलाफ बलात्कार का मामला दर्ज कराती है तो क्या होगा? मामले में दलीलें अभी पूरी नहीं हुई है। आठ अगस्त को इसकी अगली सुनवाई हो गी।