Blog: ये मेरा हक है इस पर अपनी राय ना दें?

By ऐश्वर्य अवस्थी | Published: July 17, 2018 03:14 PM2018-07-17T15:14:26+5:302018-07-17T15:45:15+5:30

कुछ दिनों पहले मेट्रो में एक लड़की को किसी से फोन पर बात करते हुए सुना ये मेरा शरीर है जनाब आपकी जायदाद नहीं।जब मन किया अपनी हवस को आकर शांत कर लिया।

women want do not touch her body without permission | Blog: ये मेरा हक है इस पर अपनी राय ना दें?

Blog: ये मेरा हक है इस पर अपनी राय ना दें?

कुछ दिनों पहले मेट्रो में एक लड़की को किसी से फोन पर बात करते हुए सुना ये मेरा शरीर है जनाब आपकी जायदाद नहीं।जब मन किया अपनी हवस को आकर शांत कर लिया। ये मेरा शरीर है यहां सिर्फ मेरी चलेगी। ये सुनने के बात ना जाने कितनी बातें मन में चलने लगीं। ये एक महिला का हक होना चाहिए कि शादी के पहले सेक्स करना है या नहीं। अक्सर  इस पर हर कोई अपनी राय थोप देता है क्योंकि एक लड़की की इज्जत पति महोदय के लिए सुरक्षित रहनी चाहिए।

खैर यही तो हर लड़की को बचपन से सिखाया जाता है। जहां एक लड़की जवानी की दहलीज पर कदम रख ही पाती है कि उसको ये ज्ञान कूट कूट के दे दिया जाता है कि बेटा अपनी इज्जत का ध्यान रखना शादी के पहले किसी को छूने न देना। शादी के पहले सेक्स मतलब पाप। असल में इस घनघोर पाप से मुझे भी अवगत करवाया गया हैय़

ऐसे में सवाल ये है कि जब हमें ये सिखाया जाता है कि किसी को अपनी मर्जी के बिना छूने न देना तो फिर शादी के बाद ये राय कहां चली जाती है। अगर शादी के पहले बिना मर्जी के सेक्स रेप है तो शादी के बाद क्यों नहीं? शादी के पहले बिना मर्जी के किसी को छूने न देना तो फिर शादी के बाद के लिए सही बात हमें क्यों नहीं सिखाई जाती हैं। लड़कियों को ये क्यों नहीं कहा जाता है कि बिस्तर पर पति का साथ तुम नहीं वो देगा तुम्हारा साथ, वो भी तुम्हारी शर्तों के साथ। सात फेरे लेने से एक लड़की के शरीर पर उसकी आवरू जिसको वो सबसे बचाती है किसी और का हक हो जाता है लेकिन क्यों?

समाज के कमोबेश हर वर्ग की महिलाओं को सरकार पति या पिता की संपत्ति समझती है। हर जगह पहले पति फिर आप सुबह की चाय से लेकर रात के बिस्तर तक। मिसाल के तौर पर ड्राइविंग लाइसेंस, में फलां की बेटी, बेटा या पत्नी का जिक्र होता है। वहीं आधार और पैन कार्ड में किसी महिला को नाबालिग के बराबर मानते हुए उसके पति या पिता के नाम का जिक्र होता है। यूं लगता है जैसे किसी महिला की अपनी आजाद जिंदगी और हस्ती ही नहीं होती। 

बीते साल वैवाहिक दुष्कर्म के मामले में जारी की गई दिल्ली हाईकोर्ट में जनहित याचिकाओं का केंद्र सरकार ने विरोध किया है। सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की तरफ से विरोध करते हुए कहा गया कि इस मुद्दे पर एक  सहमति  व विचार विमर्श होना बेहद जरूरी हैं। साथ ही केंद्र सरकार ने यह भी कहा कि वैवाहिक दुष्कर्म का मामला अमेरिका इंग्लैंड, कनाडा व दक्षिण अफ्रीका जैसे कई देशों में  प्रतिबंधित है, लेकिन इसके बावजूद भी इस पर आंख बंद कर के भरोसा नहीं किया जा सकता हैं। मतलब अब अगर आपकी मर्जी के बिना अगर अपके पति महोदय आपको छूते हैं तो उसको बलात्कार मना जाएगा।वहीं, दूसरी ओर सामाजिक कार्यकर्ता और महिला अधिकारों से जुड़े संगठन सरकार के ऐसे विचार को गलत ठहरा कर उसकी आलोचना करते रहे हैं। महिला कार्यकर्ताओं का कहना है कि यह सरकार की रुढ़िवादी सोच है।

कहने को तो आज औरत को पढ़ा लिखा दिया गया है कि लेकिन शादी और उसके बाद के संबंधों को लेकर आज भी वहीं खड़ें हैं जहां सदियों पहले थे। कोई महिला अगर कुंवारी है, तो कोई जानकार आदमी उससे जबरन संबंध बनाए तो वो बलात्कार होगा। मगर वही परिचित आदमी अगर उस महिला के पति के तौर पर जबरदस्ती करे तो वो रेप नहीं होगा! जबकि दोनों ही मामलों में संबंध महिला की इजाजत के बगैर बनाए गए। आईपीसी के मुताबिक किसी महिला से जबरदस्ती सेक्स करना बलात्कार है। फिर इसमें शादी की वजह से फर्क कैसे किया जा सकता है? कहीं लिखा है कि हम वो इंसान नहीं जो दस्तावेज में दर्ज हैं। हम तो वो लोग हैं जो कागज के खाली हिस्से पर दर्ज हैं। इससे हमें ज्यादा आजादी महसूस होती है। हम दो कहानियों के बीच के फासले पर खड़े लोग हैं'।

अहम सवाल मेरा है कि सरकार या कोर्ट के फैसला से केवल ये डिसाइस हो जाएगा कि संबंध बनाने में आपकी रजामंदी जरूरी है। मुझे लगता है कि ये एक औरत की मर्जी होनी चाहिए कि वो आपनी सहमित से शादी के पहले सेक्स करे या बात में उसे इसका हक हो। 

Web Title: women want do not touch her body without permission

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