मणिपुर हिंसा: दो पत्रकार समेत 27 लोग लापता, पश्चिमी और पूर्वी इंफाल समेत कई जिलों में भारी तनाव
By आशीष कुमार पाण्डेय | Published: July 28, 2023 12:43 PM2023-07-28T12:43:44+5:302023-07-28T12:45:37+5:30
मणिपुर की राजधानी इंफाल समेत कई इलाकों में स्थिति अब भी बेहद भीषण बनी हुई है। खबरों के अनुसार 27 जुलाई को हिंसा प्रभावित मणिपुर में दो पत्रकार, दो नाबालिग और दो महिलाओं सहित कम से कम 27 गैर-आदिवासी व्यक्ति लापता हैं।
इंफाल:मणिपुर हिंसा लगातार उग्र होती नजर आ रही है। एक तरफ तो केंद्र और राज्य सरकार शांती के लिए लगातार संबंधित समुदायों से बात कर रही है वहीं दूसरी ओर उग्र लोगों का हिंसक विरोध भी लगातार जारी है। बीते गुरुवार को राजधानी इंफाल समेत कई इलाकों में स्थिति बेहद भीषण बनी रही। खबरों के अनुसार 27 जुलाई को हिंसा प्रभावित मणिपुर में दो पत्रकार, दो नाबालिग और दो महिलाओं सहित कम से कम 27 गैर-आदिवासी व्यक्ति लापता हैं।
स्थानीय मीडिया के मुताबिक लापता बताये जा रहे हैं पत्रकारों के नाम समरेंद्र सिंह और किरणकुमार सिंह है। ये दोनों बीते शाम हुए हिंसक झड़प के बाद घर नहीं लौटे हैं और लापता बताए जा रहे हैं।
पुलिस परिजनों की शिकायत पर मामला दर्ज करके दोनों पत्रकारों की तलाश कर रही है। इंफाल से मिल रही जानकारी के अनुसार स्थिति अब भी विस्फोटक बनी हुई है और लापता हुए 27 लोग इंफाल पश्चिम, इंफाल पूर्व, टेंग्नौपाल, बिष्णुपुर, कांगपोकपी, थौबल और काकचिंग जिलों के रहने वाले बताये जा रहे हैं।
इन सभी की गुमशुदगी की रिपोर्ट विभिन्न थानों में दर्ज कराई गई है और पुलिस अभी तक एक भी गुमशुदा की तलाश में सफल नहीं हुई है। लापता हुए सभी 27 लोगों की उम्र 17 साल से 47 साल के बीच बताई जा रही है।
मालूम हो कि केंद्र सरकार ने बीते गुरुवार को ही मणिपुर में महिलाओं के साथ हुई बर्बर और शर्मसार करने वाली अमानवीय घटना की सीबीआई जांच कराने की बात कही थी। सुप्रीम कोर्ट में केंद्र सरकार की ओर से दायर हलफनामे में कहा गया है कि सरकार ऐसे अपराध के प्रति जीरो टॉलरेंस की नीति रखती है और मामला की तह में जाकर दोषियों को कड़ी सजा दिलाना ही सरकार का मकसद है।
केंद्र ने बीते गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट से मणिपुर में बीते 4 मई को महिलाओं को निर्वस्त्र कर घुमाने के वायरल वीडियो वायरल को शर्मनाक मानते हुए हलफनामे में कहा कि मामले की जांच केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को सौंपा जा रहा है और मणिपुर के बाहर इस मुकदमे को समयबद्ध अवधि में पूरा किया जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट में सरकार की ओर से केंद्रीय गृह सचिव अजय कुमार भल्ला ने हलफनामा दायर किया है, जिसमें कहा गया है, "केंद्र सरकार महिलाओं के साथ हुए अपराधों को बहुत जघन्य मानती है। ऐसे अपराधों को न केवल गंभीरता से लेने की आवश्यकता है बल्कि ऐसे अपराध में न्याय भी जल्द से जल्द किया जाना चाहिए ताकि पूरे देश में महिलाओं के प्रति हुए बर्बर अपराधों का व्यापक निवारक प्रभाव पड़े।”
इसके साथ ही हलफनामे में आगे कहा गया है कि मणिपुर में हिंसा प्रभावित क्षेत्रों में पुलिस थाना प्रभारी के लिए ऐसे सभी मामलों की तुरंत पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) को रिपोर्ट करना अनिवार्य कर दिया गया है।
केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है, “मणिपुर में महिलाओं के प्रति हुए घटनाओं की पुनरावृत्ति को रोकने के लिए हिंसा प्रभावित पुलिस स्टेशन प्रभारी को आदेश दया गया है कि इस तरह के सभी मामलों की रिपोर्टिंग डीजीपी को अनिवार्य कर दी गई है और ऐसी घटनाओं की जांच सीधे डीजीपी की निगरानी में पुलिस अधीक्षक (एसपी) रैंक के अधिकारी द्वारा की जाएगी।"
इसके साथ ही केंद्र ने हलफनामे में कहा कि कानून व्यवस्था राज्य का विषय है, लेकिन घटनाओं की गंभीरता को ध्यान रखते हुए और न्याय की प्रक्रिया में तेजी लाने के लिए केंद्र सरकार राज्य को अपेक्षित सुविधाएं प्रदान करेगा और जांच की कार्यवाही पर कड़ी नजर रखेगा।
सुप्रीम कोर्ट के समक्ष पेश हलफनामे में कहा गया है, “मणिपुर में दो महिलाओं के साथ हुई यौन उत्पीड़न और हिंसा की घटना बेहद दुर्भाग्यपूर्ण और अस्वीकार्य घटना है और इसके प्रकाश में आने के बाद केंद्रीय गृह मंत्रालय मामले की स्वयं लगातार निगरानी कर रहा है।”
केंद्रीय गृह सचिव अजय भल्ला ने 20 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली बेंच द्वारा भयावह वीडियो के स्वत: संज्ञान लेने के विषय में यह हलफनामा दायर किया है। चीफ जस्टिस ने वायरल वीडियो को बेहद परेशान करने वाला और संवैधानिक अधिकारों का घोर उल्लंघन बताया था। चीफ जस्टिस की अदालत ने मामले की अगली सुनवाई 28 जुलाई को तय करते हुए केंद्र और राज्य सरकारों से स्पष्टीकरण मांगा था और यह सुनिश्चित करने को कहा कि ऐसी घटनाएं दोबारा न हों।
पूर्वोत्तर के राज्य मणिपुर में बीते 3 मई और उसके बाद से ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ मणिपुर द्वारा बुलाए गए 'आदिवासी एकजुटता मार्च' के कारण 10 से अधिक जिलों में अभूतपूर्व हिंसक झड़पें, हमले, घरों, वाहनों और सरकारी और निजी संपत्तियों में आगजनी की घटनाएं हुई हैं। जिनमें अब तक 150 से अधिक लोग मारे गये हैं और हजारों की संख्या में लोग बेघर हुए हैं।