महात्मा गांधी चाहते थे कि जिन्ना देश के पहले प्रधानमंत्री बने लेकिन नेहरू ने ऐसा होने नहीं दिया- दलाई लामा
By भारती द्विवेदी | Published: August 8, 2018 10:19 PM2018-08-08T22:19:48+5:302018-08-08T22:19:48+5:30
दलाई लामा ने पंडित नेहरू के बारे में बात करते हुए कहा- 'मैं नेहरू को बहुत अच्छी तरह जानता हूं। वो बेहद अनुभवी और बुद्धिमान व्यक्ति थे, लेकिन कभी-कभी गलतियां हो जाती हैं।'
नई दिल्ली, 8 अगस्त: तिब्बती धर्म गुरु दलाई लामा ने भारत-पाकिस्तान और जवाहर लाल नेहरू को लेकर एक टिप्पणीं की है। दलाई लामा ने एक कार्यक्रम में कहा है कि भारत-पाकिस्तान एक होता, अगर नेहरू की जगह जिन्ना को प्रधानमंत्री बना दिया गया होता। उन्होंने ये बात गोवा इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट के एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा है।
कार्यक्रम में धर्मगुरु ने कहा- 'महात्मा गांधी चाहते थे कि मोहम्मद अली जिन्ना देश के प्रधानमंत्री बने लेकिन जवाहर लाल नेहरू ने ऐसा नहीं होने दिया। क्योंकि वो आत्मकेंद्रित थे। नेहरू ने कहा कि वो देश के पहले प्रधानमंत्री बनाने चाहते हैं। अगर उन्होंने गांधी की बात मान ली होती तो बारत-पाकिस्तान का बंटवारा नहीं होता।'
#WATCH Dalai Lama says, "Mahatma Gandhi ji was very much willing to give Prime Ministership to Jinnah but Pandit Nehru refused." pic.twitter.com/WBzqgdCJaJ
— ANI (@ANI) August 8, 2018
एक छात्र द्वारा ये पूछने पर कि कोई कैसे तय करें कि उसने जो फैसला लिया है वो सही है और गलतियां करने से बचा सकता है। इस सवाल का जवाब देते हुए उन्होंने कहा- 'मेरा मानना है कि सामंती व्यवस्था के बजाय प्रजातांत्रिक प्रणाली बहुत अच्छी होती है। सामंती व्यवस्था में कुछ लोगों के हाथों में निर्णय लेने की शक्ति होती है, जो बहुत खतरनाक होता है।'
दलाई लामा ने पंडित नेहरू के बारे में बात करते हुए कहा- 'मैं नेहरू को बहुत अच्छी तरह जानता हूं। वो बेहद अनुभवी और बुद्धिमान व्यक्ति थे, लेकिन कभी-कभी गलतियां हो जाती हैं।' जिंदगी में सबसे बड़े भय का सामना करने के सवाल पर आध्यात्मिक गुरू ने उस दिन को याद किया जब उन्हें उनके समर्थकों के साथ तिब्बत से निष्कासित कर दिया गया था। उन्होंने याद किया कि कैसे तिब्बत और चीन के बीच समस्या बदतर होती जा रही थी। चीन के अधिकारियों का रवैया दिन ब दिन अधिक आक्रामक होता जा रहा था। उन्होंने याद किया कि स्थिति को शांत करने करने के उनके तमाम प्रयासों के बावजुद 17 मार्च 1959 की रात को उन्होंने निर्णय किया वह यहां नहीं रहेंगे और वह निकल आये।
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