नोटबंदी के बाद सबसे कम कीमतों पर बिक रहे नागपुरी संतरे, मुसीबत में किसान, आमदनी छोड़िए, लागत निकल जाए

By शिरीष खरे | Published: November 24, 2020 08:55 PM2020-11-24T20:55:41+5:302020-11-24T20:57:12+5:30

नोटबंदी और लॉकडाउन ने किसान का बुरा हाल कर दिया है। संतरे बिक नहीं रहे। किसान को लागत निकालना मुश्किल हो गया है। आमदनी को बहुत दूर की बात है।

maharashtra nagpur oranges sold lowest prices after demonetisation exploitation farmers | नोटबंदी के बाद सबसे कम कीमतों पर बिक रहे नागपुरी संतरे, मुसीबत में किसान, आमदनी छोड़िए, लागत निकल जाए

इस साल के मुकाबले पिछले साल किसानों को संतरे के दो से तीन गुना अधिक दाम मिले थे। (file photo)

Highlightsनागपुर, अमरावती और वर्धा जिलों में हर साल बड़े पैमाने पर संतरों का उत्पादन किया जाता है।नागपुर की मंडी समिति एशिया की सबसे बड़ी मंडी समिति मानी जाती है।नागपुर शहर के अलावा वरुड, परतवाड़ा, काटोल और नरखेड़ी की बाजार प्रमुख हैं।

नागपुरः नागपुर के प्रसिद्ध संतरा उगाने वाले किसानों को इस साल भारी मुसीबत का सामना करना पड़ रहा है।

कारण यह है कि नोटबंदी के बाद ऐसा पहला मौका है जब उन्हें सबसे कम कीमतों पर अपने संतरे बेचने पड़ रहे हैं। हालत यह है कि उन्हें छह से चौदह रुपए किलो की दर से व्यापारियों को अपने संतरे बेचने पड़ रहे हैं। यही वजह है कि इन दिनों उन्हें अपनी फसल की लागत तक निकालनी मुश्किल हो रही है।

बता दें कि महाराष्ट्र में विदर्भ के नागपुर, अमरावती और वर्धा जिलों में हर साल बड़े पैमाने पर संतरों का उत्पादन किया जाता है। इस इलाके के संतरों को नागपुरी संतरों के नाम से जाना जाता है। यहां के संतरों की देश और दुनिया में खासी मांग होती है। इस लिहाज से नागपुर की मंडी समिति एशिया की सबसे बड़ी मंडी समिति मानी जाती है। यहां से बड़ी मात्रा में हर साल नागपुर के संतरे अलग-अलग राज्यों में भेजे जाते हैं। वहीं, संतरों के मामले में नागपुर शहर के अलावा वरुड, परतवाड़ा, काटोल और नरखेड़ी की बाजार प्रमुख हैं।

छह से लेकर अधिकतम चौदह रुपए किलो के हिसाब से संतरे खरीदे जा रहे हैं

फिलहाल नागपुर और आसपास के इलाकों में किसानों से छह से लेकर अधिकतम चौदह रुपए किलो के हिसाब से संतरे खरीदे जा रहे हैं। संतरा व्यापारी राजेश ऑटोणे बताते हैं कि ऐसे किसानों की संख्या कम ही है जिन्हें चौदह रुपए किलो के हिसाब से संतरे का भाव मिल रहा है। जबकि, इस साल के मुकाबले पिछले साल किसानों को संतरे के दो से तीन गुना अधिक दाम मिले थे।

पिछले साल किसानों से बीस से तीस रुपए किलो की दर से संतरे खरीदे गए थे। वे बताते हैं कि नोटबंदी के दौरान भी ऐसे ही हालात बने थे। उस समय भी किसानों को भारी नुकसान झेलना पड़ा था और उस नुकसान से उभरने में उन्हें कुछ साल लग गए थे। ऐसे में इस साल फिर से उन्हें नुकसान उठाना पड़ रहा है। जाहिर है कि इस साल हुए नुकसान से उभरने में यहां के संतरा उत्पादक किसानों को लंबा समय लगेगा।

साल विदर्भ क्षेत्र में उत्पादित मौसांबी का भी रहा

यही हाल इस साल विदर्भ क्षेत्र में उत्पादित मौसांबी का भी रहा। हालांकि, शुरुआत में किसानों से मौसांबी बारह से पचास रुपए किलो की दर तक खरीदी गई थी। लेकिन, अब इसकी खरीदी के दाम भी दो से तीन गुना तक गिर चुके हैं। मौसंबी उगाने वाले किसान बताते हैं कि इस फल को खरीदने में ज्यादातर जूस बनाने वाली कंपनियां सबसे आगे होती हैं, जो कई बार संतरे से भी अधिक दाम देकर किसानों से भारी मात्रा में मौसंबी खरीदती हैं। लेकिन, इस बार खरीद की मात्रा प्रभावित हुई है।

दरअसल, इसका असर नोटबंदी के बाद से ही दिखने लगा था। तब कई सारी कंपनियां अचानक बंद हो गई थीं। इससे यहां के किसानों को नुकसान झेलना पड़ रहा है। इस साल भी बहुत बुरे हालात बन गए हैं। स्थिति यह है कि विदर्भ के मौसंबी उत्पादक किसान महज पांच रुपए किलो की दर से अपना माल बेचने के लिए मजबूर हो गए हैं।

विक्रेता बताते हैं कि इस साल संतरों में कीड़ों का प्रकोप भी ज्यादा रहा

दूसरी तरफ, कुछ विक्रेता बताते हैं कि इस साल संतरों में कीड़ों का प्रकोप भी ज्यादा रहा है। इसके अलावा बाजारों में मंदी को देखते हुए ज्यादातर किसानों ने इस बार अपना सारा माल एक साथ एक ही समय में बेच दिया था। ऐसे में इस साल संतरा और मौसंबी जैसे फलों का स्टॉक बहुत अधिक हो गया है।

इसका असर उनकी कीमतों पर आई गिरावट के तौर पर भी देखा जा सकता है। कारण यह है कि किसानों ने पहले ही सस्ती दर पर अपना माल बेच दिया था। अब इससे ज्यादा कीमत पर व्यापारी किसानों का माल लेने को तैयार नहीं है। इस तरह, कहा जा सकता है कि मौजूदा परिस्थितियों में संतरा उत्पादक किसानों का शोषण हो गया है।

दूसरी तरफ, काटोल तहसील में संतरा उत्पादक एक बड़े किसान अमिताभ पावडे बताते हैं कि यदि संतरा और मौसंबी जैसे फल आठ रुपए किलो की कीमत से भी कम पर खरीदे जाते हैं तो किसानों के लिए उनकी लागत निकालनी मुश्किल हो जाती है। वे बताते हैं कि इस बार मार्च महीने में संतरे की कीमत तीस रुपए किलो थी।

छोटे-छोटे गांवों गए और समय से पहले सस्ती दर पर फसल खरीदी की

लेकिन, फिर कई व्यापारी छोटे-छोटे गांवों गए और समय से पहले सस्ती दर पर फसल खरीदी की। इससे पूरे इलाके के किसानों पर संतरों के दामों को कम कीमत पर बेचने के लिए दबाव बना। नतीजा यह हुआ कि नरखेड और काटोल इलाकों में जहां संतरे की फसल पर कीड़ों का प्रकोप ज्यादा था और मंदी के कारण फसल बिकने की संभावना कम दिख रही थी वहां के किसानों ने पांच से छह रुपए किलो की दर तक से अपने संतरे बेच दिए। हालांकि, यह किसानों के लिए घाटे का सौदा था। लेकिन, उन्हें यही एक रास्ता दिखा जिसमें उन्हें घाटे की कुछ हद तक भरपाई होती हुई दिखी।

इस बारे में अमिताभ पावडे बताते हैं कि संतरा उत्पादक किसानों के पास भंडारण की सुविधा नहीं है। वहीं, संतरा भंडारण की पूरी व्यवस्था व्यापारियों के हाथों में है। वे इसका फायदा उठाते हैं और कई बार अपनी मनमर्जी से संतरे के दाम नियंत्रित करते हैं। इसलिए मुसीबत के समय किसान व्यापारियों को सस्ती दर पर अपना पूरा माल तत्काल बेचने के लिए आसानी से मजबूर हो जाते हैं।

वहीं, एक कंपनी में कार्यरत संतरा विक्रेता श्रीधर ठाकरे बताते हैं कि ग्रेडिंग और कोटिंग के बाद संतरे अच्छे दामों पर बिक जाते हैं। पर, नागपुर की संतरा पट्टी के कई इलाकों में संतरे की ग्रेडिंग और कोटिंग के लिए कोई व्यवस्था नहीं है। इसलिए, ऐसे इलाकों के संतरे कम दामों पर खरीदे जाते हैं। नागपुर की बजाय वरुड में संतरों की ग्रेडिंग और कोटिंग के लिए बड़ी संख्या में प्रकल्प स्थापित हैं। लिहाजा, इस इलाके में संतरों को ठीकठाक कीमतों पर खरीद लिया जाता है और यहां के किसानों को बाकी इलाकों के किसानों की तुलना में थोड़ा ज्यादा दाम मिल जाता है।

साल 2016 में यहां संतरे की कीमत पांच से आठ रुपए किलो हो गई थी

इसी का परिणाम है कि इस साल नागपुर के बाजार में संतरे की कीमत छह से लेकर चौदह रुपए किलो हो गई है। हालांकि, नोटबंदी के दौर यानी साल 2016 में यहां संतरे की कीमत पांच से आठ रुपए किलो हो गई थी। यह और बात है कि सामान्यत: नवी मुंबई के बाजारों में नागपुर के संतरों की कीमत सत्तर से सौ रुपए दर्जन तक रहती है। मतलब राज्य के ही कई बाजारों में संतरों को फुटकर खरीदने वाले ग्राहक इसकी अच्छी कीमत अदा करते हैं। जाहिर है कि किसानों को उनकी फसल का उचित दाम नहीं मिलना ही इस संतरा पट्टी की एक बुनियादी समस्या है।

आखिरी में कहा जा सकता है कि साल 2020 में कोरोना लॉकडाउन, अतिवृष्टि, फसल पर कीड़ों के बढ़ते प्रकोप, मंदी और भंडारण की समस्या जैसे कारणों से नागपुर के संतरों की कीमत घटती चली गई। इसका सबसे अधिक नुकसान किसानों को ही उठाना पड़ रहा है। फिलहाल किसानों की कोशिश है कि इस बार किसी तरह उनकी फसल की लागत निकल जाए।

लॉकडाउन के कारण नागपुर से होने वाले संतरों का निर्यात भी प्रभावित हुआ

वहीं, कोरोना-काल में लॉकडाउन के कारण नागपुर से होने वाले संतरों का निर्यात भी प्रभावित हुआ है। बांग्लादेश में नागपुरी संतरे की बहुत अधिक मांग रहती है। इसी को ध्यान में रखते हुए पिछले दिनों रेलमार्ग से बांग्लादेश के लिए संतरे भेजने की योजना बनाई गई थी। लेकिन, बांग्लादेश में ट्रेनें अभी सुचारू रुप से शुरू नहीं हुई है।

भारत से वहां रेल के तीस डिब्बों में संतरों को भेजा जाना था। लेकिन, फिलहाल तीस डिब्बों वाली रेल को खड़ी करने के लिए बांग्लादेश में रेल्वे का कोई प्लेटफॉर्म उपलब्ध नहीं है। हालांकि, संतरों को सड़क मार्ग से भी बांग्लादेश भेजा जा सकता है। लेकिन, रेलमार्ग के मुकाबले इस तरह से संतरे भेजने पर परिवहन लागत तीस प्रतिशत अधिक हो जाती है और जरूरत से अधिक समय भी खर्च होता है।

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