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अकोला जिले में भाजपा के 4 विधायक, अब प्रत्याशियों का चयन टेढ़ी खीर!

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: September 10, 2019 16:17 IST

मौजूदा दौर में बालापुर के लिए प्रत्याशियों का चयन टेढ़ी खीर बन गया है। वर्ष-1999 के चुनाव में आखिरी बार कांग्रेस-भारिपा गठबंधन से कांग्रेस प्रत्याशी लक्ष्मणराव तायड़े चुनाव जीते थे। इसी प्रकार 2004 के चुनाव में भाजपा प्रत्याशी नारायणराव गव्हाणकर के सिर जीत का सेहरा बंधा था। 

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ठळक मुद्दे पिछला चुनाव कांग्रेस, राकांपा, भाजपा, शिवसेना, भारिप-बमसं ने बिना गठबंधन ‘एकला चलो रे’ की तर्ज पर लड़ा था।अब परिस्थितियां बदल चुकी हैं। भाजपा-शिवसेना मित्र दल का महागठबंधन है। कांग्रेस-राकांपा गठबंधन भी कायम है।

डॉ. अतीक-उर-रहमान

अकोला जिले में भाजपा के 4 विधायक हैं, मात्र बालापुर विधानसभा क्षेत्र में पिछले दो चुनाव से (भारिपा-बमसं) अब वंचित बहुजन आघाड़ी का वर्चस्व बना हुआ है। 

मौजूदा दौर में बालापुर के लिए प्रत्याशियों का चयन टेढ़ी खीर बन गया है। वर्ष-1999 के चुनाव में आखिरी बार कांग्रेस-भारिपा गठबंधन से कांग्रेस प्रत्याशी लक्ष्मणराव तायड़े चुनाव जीते थे। इसी प्रकार 2004 के चुनाव में भाजपा प्रत्याशी नारायणराव गव्हाणकर के सिर जीत का सेहरा बंधा था। उसके बाद 2009 व 2014 के चुनाव में भारिपा-बमसं प्रत्याशी बलिराम सिरस्कार ने जीत प्राप्त की।

 पिछला चुनाव कांग्रेस, राकांपा, भाजपा, शिवसेना, भारिप-बमसं ने बिना गठबंधन ‘एकला चलो रे’ की तर्ज पर लड़ा था। अब परिस्थितियां बदल चुकी हैं। भाजपा-शिवसेना मित्र दल का महागठबंधन है। कांग्रेस-राकांपा गठबंधन भी कायम है।

वंचित बहुजन आघाड़ी के स्वयं के बल पर मैदान में उतरने की तस्वीर लगभग साफ है। कांग्रेस से गठबंधन की संभावनाएं कम ही बची हैं तथा एमआईएम से गठबंधन टूट जाने के ताजा समाचार हैं। इस स्थिति में उक्त दलों के सामने, अपना दमदार प्रत्याशी उतारना एक चुनौती ही है। सबसे बड़ी मुश्किल भाजपा के सामने है।

 शिवसेना भी यहां अपनी दावेदारी पेश कर रही। साथ ही अन्य मित्र दलों में शिवसंग्राम भी मजबूती से अपना अधिकार जता रही है। दूसरी यह कि भाजपा में ही कई इच्छुक उम्मीदवार हैं। वंचित बहुजन आघाड़ी इस सीट को बरकरार रखने के लिए हरसंभव प्रयास करेगी किंतु प्रत्याशी चयन को लेकर जारी विविध अटकलों के बीच उनकी नजर कांग्रेस प्रत्याशी पर रहेगी। 

कांग्रेस-राकांपा गठबंधन के सामने अधिक उत्साह वाली स्थिति तो नहीं है फिर भी पिछले दो चुनाव में थोड़े अंतर से मिली पराजय को वे इस बार विजय में परिवर्तित करने के लिए मजबूत रणनीति के साथ दमदार प्रत्याशी उतारने की कोशिश जरूर करेगा।

टॅग्स :महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव 2019कांग्रेसभारतीय जनता पार्टी (बीजेपी)देवेंद्र फड़नवीसउद्धव ठाकरेसोनिया गाँधीSonia Gandhi
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