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Maharashtra Assembly Election 2019: पिछले विधानसभा चुनाव में बढ़ीं थीं शिवसेना की 19 सीटें, NCP की घटी 21 सीटें 

By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: September 1, 2019 08:40 IST

दरअसल, वर्ष 2009 की तुलना में कांग्रेस को 3.6 प्रतिशत कम वोट मिले थे लेकिन केवल इतनी की कमी के चलते इस पार्टी को 40 सीटें गवांनी पड़ी थी. इसके विपरीत शिवसेना के मतों में 2 प्रतिशत की कमी होने के बावजूद उसे 19 सीटों का लाभ हुआ था.

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ठळक मुद्देवर्ष 2014 में भाजपा-शिवसेना और कांग्रेस-राकांपा जैसी चारों पार्टियां अपने बूते पर ही चुनाव मैदान में उतरी थीं.अब तक कांग्रेस के साथ रहनेवाले विदर्भ ने वर्ष 2014 के विधानसभा  चुनाव में भाजपा को एकतरफा साथ दिया.

नंदकिशोर पाटिल

वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में आई मोदी की सुनामी के चलते देशभर में कांग्रेस को भारी नुकसान हुआ था, लेकिन सबसे अधिक क्षति महाराष्ट्र में पहुंची. राज्य में कांग्रेस सांसदों की संख्या 17 से लुढ़ककर सीधे दो पर पहुंच गई. इसके साथ ही लगातार पंद्रह वर्ष सत्ता में रही इस पार्टी को सत्ताच्युत होना पड़ा.

किसी राजनीतिक लहर में मतों का प्रतिशत और सीटों का गणित किस तरह बिगड़ जाता है यह वर्ष 2014 में हुए विधानसभा चुनाव में दिखाई दिया था.ऐसा नहीं है कि आम चुनाव के गणित हमेशा औसत मतों पर अवलंबित रहते हों. महाराष्ट्र के पिछले दो विधानसभा (2009-2014) चुनाव के पार्टीवार मिले मत और सीटों के विश्लेषण करने पर चौंकानेवाले परिणाम मिले थे.

दरअसल, वर्ष 2009 की तुलना में कांग्रेस को 3.6 प्रतिशत कम वोट मिले थे लेकिन केवल इतनी की कमी के चलते इस पार्टी को 40 सीटें गवांनी पड़ी थी. इसके विपरीत शिवसेना के मतों में 2 प्रतिशत की कमी होने के बावजूद उसे 19 सीटों का लाभ हुआ था. उल्लेखनीय है कि वर्ष 2014 में भाजपा-शिवसेना और कांग्रेस-राकांपा जैसी चारों पार्टियां अपने बूते पर ही चुनाव मैदान में उतरी थीं.

युती न करके अपने बूते पर लड़ने का फैसला भाजपा-शिवसेना के पक्ष में गया, वहीं गठबंधन किए बगैर मैदान में उतरने का खामियाजा कांग्रेस-राकांपा को उठाना पड़ा. ऐसा क्यों हुआ इसके कुछ कारण हैं. पहला-केंद्र में मोदी सरकार के होने का लाभ भाजपा को मिला. दूसरा- 2009 के चुनाव में राज ठाकरे की मनसे ने शिवसेना के बड़ी मात्र में वोट हड़पे थे, वह ‘‘राज’करिश्मा वर्ष 2014 के चुनाव में नहीं दिखाई दिया. जिसके चलते शिवसेना का वोट बैंक साबुत रहा और कांग्रेस-राकांपा की मुंबई की करीब 19 सीटों पर पानी फिर गया.

विदर्भ ने दिया भाजपा का साथ

अब तक कांग्रेस के साथ रहनेवाले विदर्भ ने वर्ष 2014 के विधानसभा  चुनाव में भाजपा को एकतरफा साथ दिया. केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी और तत्कालीन भाजपा प्रदेशाध्यक्ष देवेंद्र फडणवीस के नेतृत्व पर विश्वास दिखाते हुए विदर्भ ने भाजपा के हिस्से में 43 सीटें डाल दी. यह वर्ष 2009 की तुलना में 34 सीटों की बढ़ोतरी थी. इसके विपरीत कांग्रेस ने विदर्भ की 14 जबकि राकांपा ने 3 सीटें खोईं. शिवसेना को भी 3 सीटों पर नुकसान ङोलना पड़ा.

मुंबई में शिवसेना ही बड़ा भाई!

वर्ष 2014 के चुनाव में मुंबई महापालिका कब्जे में लेने का भाजपा का सपना धूल धूसरित करते हुए मुंबई, ठाणो और कोंकण में 28 सीटें जीतकर शिवसेना ने यह सिद्ध कर दिया कि कोंकण के तटीय क्षेत्रों और मायानगरी में वही बड़ा भाई है. भाजपा को 24 सीटें मिलीं, पर कोंकण में वह एक भी सीट नहीं जीत सकी. इसके विपरीत कांग्रेस (14) और राकांपा को (5) इस विभाग की 19 सीटों पर नुकसान उठाना पड़ा.

पश्चिम महाराष्ट्र में राकांपा की हार 

राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा)के वर्चस्व वाले पश्चिम महाराष्ट्र में पार्टी को गत विधानसभा चुनाव में भारी झटका लगा. पार्टी के मुखिया शरद पवार समेत पूर्व उपमुख्यमंत्री अजित पवार, प्रदेशाध्यक्ष जयंत पाटिल, दिलीप वलसे पाटिल, हसन मुश्रीफ, विजयसिंह मोहिते-पाटिल (भाजपा में जाने से पूर्व) जैसे दिग्गज नेताओं के रहने के बावजूद राकांपा 24 सीटों से 19 पर पहुंच गई. बारामती से सटे दौंड निर्वाचन क्षेत्र में रासप के राहुल कुल चुनकर आ गए. इन्हीं विधायक कुल की पत्नी रंजना कुल ने लोकसभा चुनाव में सुप्रिया सुले को चुनौती दी थी.

टॅग्स :महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव 2019शिव सेना
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