अतुल कुलकर्णी
राकांपा नेता छगन भुजबल का शिवसेना में प्रवेश पार्टी के नेताओं के भीतरी विवाद के चलते अटका हुआ है. भुजबल को पार्टी में कौन सा पद दिया जाए, उन्हें कहां से उम्मीदवार बनाया जाए, विलंब की मुख्य वजह है. पहले भुजबल और नारायण राणे शिवसेना के दो कद्दावर नेता थे. लेकिन एक ने राकांपा में जबकि दूसरे ने कांग्रेस में प्रवेश किया. भले ही आगे चलकर राणे भाजपा की ओर से सांसद बने हों फिर भी उन्होंने 'महाराष्ट्र स्वाभिमान पक्ष' का दामन नहीं छोड़ा.
उन्हें भाजपा में प्रवेश करते वक्त जब तीन विधानसभा सीटों के लिए उम्मीदवारी चाहिए थी तब से ही भुजबल के शिवसेना में प्रवेश की चर्चा शुरू हुई थी. लेकिन भुजबल को शामिल किए जाने पर स्वयं की वरिष्ठता पर सवाल खड़े हो जाएंगे, इस डर के चलते कुछ नेताओं ने विरोध करना शुरू कर दिया. कुछ नेता का कहना है कि भुजबल पहले भी नेता थे इसलिए उन्हें नेतापद देना होगा. पार्टी इस बात पर एकमत नहीं है कि इतनी राजनीतिक उथल-पुथल के बाद क्या उन्हें फिर प्रवेश देना उचित होगा.
कुछ शिवसेना नेता सवाल उठा रहे हैं कि बालासाहब ठाकरे को इसी भुजबल ने गिरफ्तार करवाया था, तो क्या उन्हें पार्टी में प्रवेश दिया जाना चाहिए? जबकि, भुजबल को पार्टी में शामिल करने के लिए कुछ उत्सुक नेताओं का मानना है कि उनसे माफीनामा लिया जाए, ताकि शिवसैनिक कोई सवाल ना उठाएं. उनका कहना है कि बालासाहब की गिरफ्तारी के बाद हालांकि भुजबल और बालासाहब के बीच के आपसी मनमुटाव दूर हो गए थे.
भुजबल सपरिवार 'मातोश्री' पहुंचे और बालासाहब ने भी उनका स्वागत किया. यह जानकारी होने के बावजूद जानबूझकर यह विवाद फिर उठाया जा रहा है. इसके अलावा कुछ नेता ऐसा इसलिए कर रहे हैं ताकि यह कहा जा सके कि भुजबल का शिवसेना में प्रवेश उनकी वजह से हुआ है. भुजबल के शिवसेना में प्रवेश को लेकर जारी अटकलों के बीच फिलहाल उद्धव ठाकरे ने चुप्पी साध रखी है.