Madhya Pradesh Assembly Election 2023:दिग्गी की भूमिका पर सवाल, MP में दिग्विजय सिंह ने संभाली थी 69 सीटों की कमान, केवल 7 पर मिली जीत

By आकाश सेन | Published: December 8, 2023 06:37 PM2023-12-08T18:37:34+5:302023-12-08T18:40:21+5:30

मध्यप्रदेश में भाजपा की तरह कांग्रेस ने भी कठिन मानी जाने वाली सीटों को चिह्नित किया था। दिग्विजय सिंह ने 6 माह के भीतर एक-एक सीट का दौरा किया। कार्यकर्ताओं के साथ बैठक करके चुनाव की तैयारी की। लेकिन मेहनत सफल साबित नहीं हुई और पार्टी की करारी हार हुई।

Madhya Pradesh:Question on Diggi's role, Digvijay Singh took command of 69 seats in MP, won only 7 | Madhya Pradesh Assembly Election 2023:दिग्गी की भूमिका पर सवाल, MP में दिग्विजय सिंह ने संभाली थी 69 सीटों की कमान, केवल 7 पर मिली जीत

Madhya Pradesh Assembly Election 2023:दिग्गी की भूमिका पर सवाल, MP में दिग्विजय सिंह ने संभाली थी 69 सीटों की कमान, केवल 7 पर मिली जीत

HighlightsMP में दिग्विजय सिंह ने संभाली थी 69 सीटों की कमान, केवल सात पर मिली जीत।दतिया, बालाघाट, ग्वालियर ग्रामीण समेत इन सीट पर ही मिली जीत।छह माह से चल रही थी तैयारी, अति आत्मविश्वास पड़ गया भारी।

भोपाल  मध्य प्रदेश की सत्ता में 15 वर्ष बाद वर्ष 2018 में कांग्रेस की वापसी का बड़ा कारण पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के 'पंगत में संगत' कार्यक्रम को माना गया था। इसमें उन्होंने कार्यकर्ताओं से सीधे बात की थी और उसका असर भी दिखा था। इस बार भी उन्होंने 69 सीटों की कमान संभाली। छह माह के भीतर एक-एक सीट का दौरा किया। कार्यकर्ताओं के साथ बैठक करके चुनाव की तैयारी की।
जहां उन्होंने आपसी मतभेद भुलाकर  कार्यकर्ताओं से पार्टी के लिए काम में जुटने का संकल्प दिलाया पर यह सफल नहीं हुआ। पार्टी इन चिह्नित सीटों में से केवल सात सीटें पर ही जीत पाई। जिसमें दतिया, बालाघाट, ग्वालियर ग्रामीण, बीना, सेमरिया, टिमरनी और मंदसौर सीट आती है । बाकी बची ऐसी सीटें जहां पार्टी थोड़ी मेहनत से जीत सकती थी, उनकी ओर ध्यान ही नहीं दिया गया और यही अति आत्मविश्वास कांग्रेस को भारी पड़ गया।

टक्कर की सीटों को किया था चिन्हिंत
भाजपा की तरह कांग्रेस ने भी कठिन मानी जाने वाली सीटों को चिह्नित किया। इसमें वे सीटें शामिल की गईं जिनमें लगातार तीन चुनाव से कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ रहा था। इन्हें जिताने की जिम्मेदारी दिग्विजय सिंह ने ली। पूर्व सांसद रामेश्वर नीखरा के साथ उन्होंने सभी सीटों पर पहुंचकर बूथ, सेक्टर और मंडलम की बैठक की। नाराज कार्यकर्ताओं से अलग से संपर्क किया।
कार्ययोजना यह थी कि इन सीटों पर भाजपा की घेराबंदी की जाए पर ऐसा नहीं हुआ। न तो पार्टी की ओर से इन सीटों के प्रत्याशी पहले घोषित हो सके और न ही इन पर भाजपा प्रत्याशियों को घेर सके। यहां कांग्रेस प्रत्याशी भाजपा के मुकाबले में टिक तक नहीं सके।

दिग्गज अति आत्मविश्वास के चलते हारे 
दरअसल, भाजपा ने इन सीटों पर तो कार्यकर्ताओं को सक्रिय किया ही कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं की घेराबंदी उन्हीं के क्षेत्र में करने की कार्ययोजना पर काम किया। इसका परिणाम भी सामने है। कांग्रेस के डा.गोविंद सिंह, हुकुम सिंह कराड़ा, जीतू पटवारी, तरुण भनोत, कमलेश्वर पटेल, सज्जन सिंह वर्मा सहित अन्य कई दिग्गज नेता चुनाव हार गए। ये सभी नेता पहले दिन से ही यह मानकर चल रहे थे कि अपना चुनाव आसानी से जीत जाएंगे। यही अति आत्मविश्वास भारी पड़ गया।

विंध्य में ऐस कम हुईं सीटें
लगातार छह चुनाव से पिछोर विधानसभा सीट से जीत रहे केपी सिंह को शिवपुरी भेजा जाना भारी पड़ा। वे अपना चुनाव तो हारे ही पिछोर सीट भी कांग्रेस के हाथ से चली गई। दिग्गज नेता भी अपने क्षेत्र में नहीं दिखा पाए कमाल विंध्य अंचल में पूर्व नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह और कमलेश्वर पटेल को पार्टी ने आगे किया था। टिकट वितरण में भी कुछ परख हुई। इसके बावजूद दोनों कोई कमाल नहीं दिखा पाए। अजय सिंह अपना चुनाव तो जीत गए लेकिन कमलेश्वर पटेल स्वयं भी हार गए। यहां सीटें बढ़ने के स्थान पर एक कम और हो गई।

नेता प्रतिपक्ष भी हारे
इसी तरह डा. गोविंद सिंह को ग्वालियर अंचल में आगे किया गया था। उन्होंने अपने भांजे राहुल भदौरिया को मेहगांव से टिकट भी दिलाया पर न तो वे उसे जिता सके और न ही खुद ही जीत पाए।

मालवा और निमाड़ भी कांग्रेस के हाथ से फिसला
चुनाव अभियान समिति के अध्यक्ष और पूर्व केंद्रीय मंत्री कांतिलाल भूरिया भी इसी तरह अपने बेटे डा. विक्रांत भूरिया के चुनाव में ही उलझ कर रह गए। जबकि, इन्हें मालवांचल की आदिवासी सीटों पर सक्रिय किया गया था। पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अरुण यादव निमाड़ की कुछ सीटों पर ही गए पर परिणाम अनुकूल नहीं रहे। उनके भाई सचिन यादव जरूर कसरावद सीट से चुनाव जीत गए।

पार्टी की करारी हार के बाद अब समीक्षा और मंथन का दौर है ऐसे में पूर्व सीएम और कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह पर भी सवाल उठ रहे है । क्योकिं पार्टी में सबसे ज्यादा खराब परफार्मेंस उन्ही की रही है ।क्योकिं कमलनाथ अपना गढ़ जितानें में कामयाब रहे और उनके करीबी बाला बच्चन उमंग सिंघार समेत आदिवासी सीटों पर जीतने में कामयाब रहे । लेकिन ऐसे में दिग्विजय सिंह की चुनाव में भूमिका को लेकर जरुरी पार्टी के अंदर खाने सवाल उठ रहे है। 

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