लोकसभा चुनावः बिहार की तरह राजस्थान में भी बैकफुट पर बीजेपी, क्या पार्टी वाकई कमजोर हो गई है?
By प्रदीप द्विवेदी | Published: April 6, 2019 04:34 PM2019-04-06T16:34:41+5:302019-04-06T16:35:49+5:30
राजस्थान की नागौर लोकसभा सीट से वर्तमान एमपी बीजेपी के सीआर चौधरी हैं, जिन्होंने वर्ष 2014 के लोस चुनाव में मोदी लहर के बावजूद कांग्रेस की ज्योति मिर्धा को मात्र 75, 218 वोटों से हराया था.
पिछले लोस चुनाव में राजस्थान में लोस की 25 में से 25 सीटें जीतने वाली बीजेपी ने इस बार भी मिशन- 25 लक्ष्य रखा था, लेकिन अब नागौर सीट आरएलपी को देने के बाद बीजेपी का मिशन- 24 ही रह गया है.
राजस्थान की नागौर लोकसभा सीट से वर्तमान एमपी बीजेपी के सीआर चौधरी हैं, जिन्होंने वर्ष 2014 के लोस चुनाव में मोदी लहर के बावजूद कांग्रेस की ज्योति मिर्धा को मात्र 75, 218 वोटों से हराया था. कांग्रेस ने ज्योति मिर्धा पर फिर भरोसा जताया है, लेकिन बीजेपी ने यह सीट आरएलपी से समझौते के बाद हनुमान बेनीवाल को दे दी है.
इस समझौते को लेकर राजस्थान के उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट का कहना था कि- हम तो अपने कुनबे में ही जिताउ उम्मीदवार ला रहे हैं, लेकिन बीजेपी तो इतनी कमजोर हो गई है कि उन्हें तो अपनी पार्टी में ही उम्मीदवार नहीं मिल रहे हैं.
सवाल यह है कि बीजेपी को बिहार की तरह बैकफुट पर जा कर जीती हुई सीट सहयोगी दल को क्यों देनी पड़ी? क्या वाकई बीजेपी कमजोर हो गई है?
वर्ष 2014 में नागौर लोस सीट पर बीजेपी के सीआर चौधरी को 414791 वोट मिले थे, कांग्रेस की ज्योति मिर्धा को 339573 वोट, तो हनुमान बेनीवाल को 159980 वोट मिले थे. बीजेपी और आरएलपी के वोट मिला दें तो कुल वोट होंगे- 574771, अर्थात- कांगे्रस से 2 लाख से ज्यादा वोट, जबकि विस चुनाव 2018 में बीजेपी-आरएलपी को साढ़े छह लाख से ज्यादा, तो कांग्रेस को छह लाख से ज्यादा वोट मिले. जाहिर है, एक लाख वोटों की बदली नागौर में हार-जीत की तस्वीर बदल सकती है.
सियासी संकेत यही हैं कि राजस्थान में बीजेपी के लिए 2014 दोहराना मुश्किल है और यही वजह है कि बीजेपी ने आरएलपी के साथ गठबंधन किया है. देखना रोचक होगा कि क्या हनुमान बेनीवाल नागौर से जीत दर्ज करवा पाते हैं? और, आरएलपी जाट प्रभावित लोस क्षेत्रों में बीजेपी को कितना फायदा पहुंचाती है?