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लोकसभा चुनाव 2024ः दलित वोट पर नजर, पिछड़े और मुस्लिम समाज पर अखिलेश दे रहे ध्यान, रायबरेली में कांशीराम की प्रतिमा का अनावरण

By राजेंद्र कुमार | Updated: April 3, 2023 18:05 IST

Lok Sabha Elections 2024: बसपा के संस्थापक रहे कांशीराम की मिशनरी सोच के चलते ही वर्ष 1993 में सपा और बसपा का गठबंधन हुआ था. गठबंधन ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को सत्ता में आने से रोककर तब सरकार बनाई थी.

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ठळक मुद्देस्वामी प्रसाद मौर्य के कॉलेज में लगाई गई कांशीराम की प्रतिमा का अनावरण करते हुए यह पहल की. दलित, पिछड़े और मुस्लिम एकजुट हो जाए तो भाजपा को सत्ता में आने से रोक जा सकता है.कांशीराम के नाम पर और बाबा साहेब अंबेडकर के मान सम्मान के बहाने अखिलेश दलित समाज का वोट अपने पक्ष में करना चाहते हैं.

लखनऊः समाजवादी पार्टी (सपा) के मुखिया अखिलेश यादव सोमवार को बहुज़न समाज पार्टी (बसपा) के दलित वोट में सेंध लगाने की पहल कर दी. सपा के मुखिया अखिलेश यादव ने रायबरेली में बने स्वामी प्रसाद मौर्य के कॉलेज में लगाई गई कांशीराम की प्रतिमा का अनावरण करते हुए यह पहल की. 

बसपा के संस्थापक रहे कांशीराम की मिशनरी सोच के चलते ही वर्ष 1993 में सपा और बसपा का गठबंधन हुआ था. इस गठबंधन ने भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को सत्ता में आने से रोककर तब सरकार बनाई थी और यह साबित किया था, अगर दलित, पिछड़े और मुस्लिम एकजुट हो जाए तो भाजपा को सत्ता में आने से रोक जा सकता है.

अब उसी सोच के तहत अखिलेश यादव भी यूपी में दलित, पिछड़े और मुस्लिम समाज को अपने साथ जोड़ने में जुट गए हैं. जिसके तहत ही उन्होने रविवार को कांशीराम की प्रतिमा का अनावरण किया. कांशीराम के नाम पर और बाबा साहेब अंबेडकर के मान सम्मान के बहाने अखिलेश दलित समाज का वोट अपने पक्ष में करना चाहते हैं.

पिछले तीस-पैंतीस सालों से ये वोट बैंक लगातार बसपा के साथ रहा है. पहले कांशीराम और फिर मायावती के एक इशारे पर यह समाज बसपा को वोट करता रहा है. बीते विधानसभा चुनाव में इस वोट बैंक में सपा और भाजपा ने सेंध लगाई थी. जाटव समाज तो अभी भी मायावती के साथ है.

पर पासी, वाल्मीकि, धोबी और सोनकर जैसे दलित जाति के लोग कहीं सपा और कहीं भाजपा के साथ हैं. इस वोट बैंक को अपने पक्ष में करने के लिए अखिलेश यह  साबित करने में जुटे हैं कि भाजपा को हराने के लिए दलित अब मायावती नहीं उनका समर्थन करें. इसीलिए अखिलेश कभी कहते हैं कि मैं शूद्र है.

यहीं नहीं अखिलेश अब मायावती को भाजपा की बी-टीम बताते हैं और दावा करते हैं कि बसपा के उम्मीदवारों की लिस्ट तो भाजपा ऑफिस से आती है. फिलहाल अखिलेश यादव के कांशीराम की प्रतिमा का अनावरण करने का दांव मायावती के लिए खतरे की घंटी बन सकता है. इसीलिए तो मायावती ने गेस्ट हाउस कांड वाला इमोशनल कार्ड खेला है.

अब देखना यह है कि अखिलेश के खिलाफ उनका इमोशनल कार्ड कितना चलेगा? और आखिलेश अब कांशीराम के नाम पर दलित समाज को अपने साथ जोड़ते हुए यूपी में दलित, मुस्लिम और पिछड़े समाज को जोड़ कर भाजपा को कैसे चुनौती देंगे. कहा जा रहा है कि अखिलेश को अगर दलित समाज का समर्थन हासिल हो गया तो दलित, मुस्लिम और पिछड़े समाज के भरोसे अगले चुनाव में अखिलेश की साइकिल यूपी की राजनीति में रफ्तार पकड़ लेगी. 

टॅग्स :लोकसभा चुनाव 2024अखिलेश यादवसमाजवादी पार्टीस्वामी प्रसाद मौर्यबीएसपीBJPयोगी आदित्यनाथमायावती
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