बिहार-काराकाट लोकसभा सीट, जातीय समीकरण के जोड़-तोड़ में जुटे उपेंद्र कुशवाहा
By एस पी सिन्हा | Published: May 17, 2019 06:58 PM2019-05-17T18:58:41+5:302019-05-17T18:58:41+5:30
एनडीए गठबंधन को जहां मोदी फैक्टर और एनडीए के परंपरागत वोट का भरोसा है, वहीं, महागठबंधन को महागठबंधन से जुड़े दलों के वोट बैंक का भरोसा है. नजरें खासकर कुशवाहा जाति के वोट पर टिकी हुई है.

रालोसपा नेता उपेंद्र कुशवाहा की फाइल फोटो।
बिहार की 40 लोकसभा सीटों में से काराकाट बेहद महत्वपूर्ण सीट है. पहले यह बिक्रमगंज संसदीय क्षेत्र में था, लेकिन 2008 में इसे अलग सीट का दर्जा मिला. काराकाट रोहतास जिले में है जो कभी उर्दू का बड़ा केंद्र हुआ करता था. धान का कटोरा कहे जाने वाले काराकाट लोकसभा क्षेत्र में बड़ी राजनीतिक तपिश के बीच चुनावी सरगर्मी तेज है लेकिन, क्षेत्र के विकास के मुद्दे पीछे हैं. वैसे तो इस लोकसभा क्षेत्र से 27 प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं लेकिन बात मोदी पक्ष और विपक्ष की ही हो रही है. इस बार एक बार फिर महागठबंधन से रालोसपा के उपेंद्र कुशवाहा और जदयू के महाबली सिंह के बीच टक्कर है.
वहीं, भाकपा-माले के राजाराम सिंह और सपा के घनश्याम तिवारी चुनावी जंग को रोचक बना रहे हैं. ऐसे में जातियों की गोलबंदी की कोशिश कर उपेंद्र कुशवाहा समर्थकों को भरोसा है कि जनता उनका साथ देगी लेकिन इस बार काराकाट की राजनीतिक परिस्थितियां बदली हुई हैं. कुशवाहा बहुल इस सीट वर तीन प्रमुख कुशवाहा उम्मीदवार मैदान में हैं. रालोसपा के उपेंद्र कुशवाहा, जदयू के महाबली सिंह और भाकपा-माले के राजाराम सिंह इसी समाज से आते हैं.
2014 में रालोसपा एनडीए में थी और 2019 के चुनाव में वह महागठबंधन में है. बदली राजनीतिक परिस्थिति में उपेंद्र कुशवाहा जहां लगातार दूसरी बार प्रतिनिधित्व करने का लक्ष्य लेकर महागठबंन की ओर से चुनाव मैदान में उतरे हैं, वहीं महाबली सिंह एक बार पुनः अवसर मिलने की उम्मीद के साथ एनडीए गठबंधन से चुनाव मैदान में हैं. हालांकि 2014 के चुनाव में ये जदयू प्रत्याशी के रूप में तीसरे स्थान पर रहे थे.
वैसे विकास के मुद्दों के बजाय क्षेत्र के जातीय समीकरण पर सभी की निगाहें टिकी हुई हैं. अप्रत्यक्ष रूप से जातीय समीकरण को ही साधने का प्रयास किया जा रहा है. एनडीए गठबंधन को जहां मोदी फैक्टर और एनडीए के परंपरागत वोट का भरोसा है, वहीं, महागठबंधन को महागठबंधन से जुड़े दलों के वोट बैंक का भरोसा है. नजरें खासकर कुशवाहा जाति के वोट पर टिकी हुई है.
माना यह जा रहा है कि वोट बैंक की राजनीति के बीच कुशवाहा जाति का वोट चुनाव परिणाम में निर्णायक साबित हो सकता है. वैसे, भाकपा-माले का भी अपना एक अलग वोट बैंक है. स्वराज पार्टी (लो.) के नंदकिशोर यादव ने भी मुकाबले को और रोचक बना दिया है. सपा ने घनश्याम तिवारी को उम्मीदवार बनाया है. बसपा प्रत्याशी को भी कम कर इसलिए नहीं आंका जा सकता.
निर्दलीय प्रत्याशी भी चुनावी परिणाम को उथल-पुथल करने में भूमिका निभा सकते हैं. एनडीए व महागठबंधन के प्रत्याशियों के लिए परंपरागत वोट को अपने पाले में बनाये रखने की बडी चुनौती है. इन दोनों के स्वजातीय वोटरों के साथ-साथ दलित-महादलित एवं अतिपिछडा वोट निर्णायक साबित हो सकते हैं. फिलहाल, इस भीषण गर्मी में प्रत्याशी एवं उनके समर्थक खूब पसीना बहा रहे हैं.
अब वोट के महज चंद दिन रह गये हैं, मतदाताओं की आवाज मुखर होने लगी है. राजनीतिक प्रेक्षकों का मानना है कि अपने परंपरागत वोट बैंक को बचाये रखना चुनौती है. 27 प्रत्याशियों में से कई ऐसे प्रत्याशी हैं, जो खेल भी बिगाड़ सकते हैं. काराकाट लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र में 6 विधानसभा सीटें आती हैं. जिनमें रोहतास के 3 और औरंगाबाद के 3 विधानसभा शामिल हैं. रोहतास के 3 जिलों में नोखा, डेहरी और काराकाट विधानसभा क्षेत्र शामिल है. जबकि औरंगाबाद जिले से गोह, नवीनगर और ओबरा विधानसभा क्षेत्र शामिल है.
काराकाट संसदीय क्षेत्र में मतदाताओं की संख्या 17 लाख 59 हजार 358 हैं. जिसमें पुरुष वोटर 9 लाख 27 हजार 862 और 8 लाख 31 हजार 432 महिला मतदाता हैं. जबकि थर्ड जेंडर के वोटरों की संख्या 64 हैं. काराकाट लोकसभा क्षेत्र में सबसे अधिक आबादी यादव जाति का है. आंकडे के मुताबिक कुल जनसंख्या में यादव 17.39 प्रतिशत, राजपूत 10.6 प्रतिशत, कोइरी 8.12 प्रतिशत. जबकि मुसलमान 8.4 प्रतिशत और ब्राह्मण 4.8 प्रतिशत के अलावे भूमिहार 2.94 प्रतिशत हैं. ऐसे में नजरें उपेन्द्र कुशवाहा के राजनीतिक भविष्य पर टिकी हुई हैं.