लोकसभा चुनाव 2019: ये हैं- बीजेपी की जीत की उम्मीदें और संभावित हार के कारण?
By प्रदीप द्विवेदी | Published: April 8, 2019 04:55 PM2019-04-08T16:55:12+5:302019-04-08T16:55:12+5:30
बीजेपी की कामयाबी की राह में सबसे बड़ी बाधा यह है कि प्रदेश की सत्ता उसके हाथ से निकल गई है. प्रदेश के ज्यादातर नेताओं, कार्यकर्ताओं की सियासत राज्य की सत्ता पर ही निर्भर है, केन्द्र सरकार की भूमिका तो अप्रत्यक्ष और बहुत कम है.
राजस्थान में लोकसभा चुनाव में बीजेपी 2014 की तरह सारी सीटें जीतने का लक्ष्य लेकर जरूर चल रही है, किन्तु इस बार उसकी राह आसान नहीं है, क्योंकि विस चुनाव 2018 के नतीजों ने बता दिया है कि राजस्थान के मतदाताओं की सोच बदल गई है और यही सोच बनी रही तो लक्ष्य की आधी सीटें हांसिल करना भी बीजेपी के लिए संभव नहीं होगा.
बीजेपी की कामयाबी की राह में सबसे बड़ी बाधा यह है कि प्रदेश की सत्ता उसके हाथ से निकल गई है. प्रदेश के ज्यादातर नेताओं, कार्यकर्ताओं की सियासत राज्य की सत्ता पर ही निर्भर है, केन्द्र सरकार की भूमिका तो अप्रत्यक्ष और बहुत कम है. जाहिर है, लोस चुनाव के लिए इन नेताओं, कार्यकर्ताओं में जमीनी जोश जगाना बहुत मुश्किल है, जबकि कांग्रेस के नेता, कार्यकर्ता भविष्य में राजनीतिक लाभ के नजरिए से सक्रिय हैं.
कभी गुटबाजी केवल कांग्रेस का सियासी रोग थी, किन्तु अब इससे बीजेपी भी प्रभावित है. यह गुटबाजी भले ही भितरघात तक नहीं पहुंचे, किन्तु यदि इसकी वजह से नेताओं, कार्यकर्ताओं में उदासीनता भी आई तो करीब आधा दर्जन सीटें बीजेपी के हाथ से निकल जाएंगी.
कांग्रेस की ओर से प्रादेशिक मोर्चे पर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट सक्रिय और आक्रामक हैं, जबकि बीजेपी की ओर से ऐसा कोई प्रभावी नेतृत्व नजर नहीं आ रहा है. पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे भी विस चुनाव की तरह न तो सक्रिय हैं और न ही आक्रामक हैं, जबकि पूरे प्रदेश में प्रभाव और पहचान रखने वाला कोई और नेता भाजपा के पास नहीं है.
बीजेपी के पास पाकिस्तान, आतंकवाद का खात्मा जैसे अस्थाई प्रभाव वाले इमोशनल मुद्दें तो हैं, परन्तु स्थाई असर दिखाने वाली उपलब्धियों का अभाव है. मतदान के समय इमोशनल और सोशल मुद्दों में से जो भी प्रभावी होंगे, नतीजे भी उसके सापेक्ष ही आएंगे.
चुनाव के दौरान जैसी तस्वीर उभर रही है, उससे साफ है कि उम्मीदवारों को अपने दम पर कामयाबी हांसिल करनी होगी, अलबत्ता पीएम मोदी का नाम कितना काम आएगा, यह तो समय ही बताएगा. हालांकि, राजनीतिक जानकारों का मानना है कि अच्छे दिनों का सपना टूट जाने के बावजूद, पीएम मोदी से पूरी जनता का मोहभंग अभी नहीं हुआ है.
आरएलपी को साथ लेने से भले ही बीजेपी को एक सीट का नुकसान हुआ है, परन्तु प्रदेश के जाट प्रभावित करीब आधा दर्जन लोस क्षेत्रों में बीजेपी को इसका फायदा मिल सकता है.
राजस्थान में बीजेपी की हार-जीत प्रमुखता से संघ के स्वयंसेवकों की सक्रियता पर निर्भर है. लेकिन, सवाल यह है कि जो उम्मीदवार संघ की पृष्ठभूमि से नहीं हैं, क्या उन्हें भी उतना ही सक्रिय सहयोग और समर्थन मिल पाएगा?
बीजेपी नेतृत्व का सियासी प्रबंधन, कांग्रेस से बेहतर माना जाता है, लेकिन यदि मतदान के दौरान आवश्यक सक्रिय स्थानीय समर्थन नहीं मिल पाया तो बीजेपी के लिए 2014 दोहराना मुश्किल हो जाएगा.