Lok sabha Elections 2019: पहले लोक सभा चुनाव में खर्च हुए थे मात्र 10 करोड़, पिछले चुनाव में खर्च हो गए 30000 करोड़

By स्वाति सिंह | Published: March 10, 2019 03:38 PM2019-03-10T15:38:43+5:302019-03-10T15:52:09+5:30

अगर आंकड़ो की बात करें तो लोकसभा चुनाव 2014 सबसे महंगा चुनाव था जिसमें राष्ट्रीय खजाने से केंद्र सरकार ने 3,426 करोड़ रूपए खर्च किए थे। साल 2009 के लोकसभा चुनाव में सरकारी खजाने से जितनी धनराशि खर्च की गई उससे 131 फीसदी ज्यादा रूपए मौजूदा लोकसभा चुनाव में खर्च किए गए थे।

Lok sabha Elections 2019: The first Lok Sabha election was spent only about 10 crore, the last expenditure was Rs 300 billion | Lok sabha Elections 2019: पहले लोक सभा चुनाव में खर्च हुए थे मात्र 10 करोड़, पिछले चुनाव में खर्च हो गए 30000 करोड़

Lok sabha Elections 2019: पहले लोक सभा चुनाव में खर्च हुए थे मात्र 10 करोड़, पिछले चुनाव में खर्च हो गए 30000 करोड़

Highlightsलोकसभा चुनाव 2014 सबसे महंगा चुनाव था जिसमें राष्ट्रीय खजाने से केंद्र सरकार ने 3,426 करोड़ रूपए खर्च किए थे। चुनाव आयोग के मुताबिक, 1952 में आम चुनाव कराने पर जितने रूपए खर्च हुए थे उससे 20 गुना ज्यादा धनराशि 2009 के चुनावों पर ही खर्च हो गई थी।साल 1952 में हर मतदाता पर 60 पैसे खर्च हुए थे जबकि 2009 में हर मतदाता पर 12 रूपए का खर्च हुआ।

चुनाव आयोग रविवार शाम पांच बजे लोकसभा और विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान कर सकता है। चुनाव अप्रैल-मई में होने की संभावना है। इस दौरान आयोग जम्मू-कश्मीर, सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश, ओडिशा और आंध्रप्रदेश के विधानसभा चुनावों का भी ऐलान हो सकता है। तारीखों के ऐलान के साथ ही देश में आदर्श आचार संहिता लागू हो जाएगी। इसके बाद सरकार कोई ही नीतिगत निर्णय नहीं ले सकेगी। एक अध्ययन के मुताबिक बीते 30 सालों में जब भी लोक सभा चुनाव होते हैं, उस साल देश की आर्थिक गतिविधियों में धीमापन आ जाता है। आइए जानते हैं बीते तीन लोक सभा चुनाव पर राष्ट्रीय खजाने से केंद्र सरकार ने कितने किए खर्च-

अगर आंकड़ो की बात करें तो लोकसभा चुनाव 2014 सबसे महंगा चुनाव था जिसमें राष्ट्रीय खजाने से केंद्र सरकार ने 3,426 करोड़ रूपए खर्च किए थे। साल 2009 के लोकसभा चुनाव में सरकारी खजाने से जितनी धनराशि खर्च की गई उससे 131 फीसदी ज्यादा रूपए मौजूदा लोकसभा चुनाव में खर्च किए गए थे।

दस साल पहले हुए लोकसभा चुनाव 2009 पर सरकारी खजाने से 1483 करोड़ रूपए खर्च किए गए थे। यह आधिकारिक खर्च 3,426 करोड़ रूपए के उस आंकड़े का हिस्सा है जिसके सरकार, राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों द्वारा नौ चरणों के चुनाव में खर्च किए जाने की संभावना जाहिर की गई थी। चुनाव आयोग का कहना था कि मतदाता जागरूकता एवं मतदान प्रतिशत बढ़ाने की दिशा में उसके प्रयासों पर हुए खर्च की वजह से आधिकारिक खर्च में बढ़ोत्तरी हुई। 

इसके अलावा कई राजनीतिक दल चुनाव मैदान में उतरे हैं और निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ने वालों की संख्या में भी इजाफा हुआ है। जितने अधिक उम्मीदवार होंगे, चुनाव पर खर्च भी उतना ही अधिक होगा। मतदाता जागरूकता अभियान, चुनाव की तारीख से पहले वोटर स्लिप का वितरण, इन चुनावों में पहली दफा वोटर वेरीफाइड पेपर ऑडिट ट्रेल के इस्तेमाल से भी खर्च में बढ़ोत्तरी हुई।

जबकि, सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज द्वारा चुनाव अभियान खर्च पर कराए गए एक अध्ययन के मुताबिक करोड़पति उम्मीदवारों, कॉरपोरेट्स और कांट्रैक्टरों द्वारा लगाए जा रहे बेहिसाबी पैसे ने चुनाव खर्च में काफी इजाफा किया है। 16वीं लोकसभा के लिए अनुमानित खर्च 30 हजार करोड़ रुपए में से सरकारी खजाने को चुनाव प्रक्रिया पर 7 हजार से 8 हजार करोड़ रुपए तक का था।

क्या कहते हैं  गैर-सरकारी आंकड़े

चुनावी खर्चे पर सेंटर फॉर मीडिया स्टडी (सीएमसी) के अनुसार 1996 में लोकसभा चुनावों में 2500 करोड़ रुपये खर्च हुए थे। इसके बाद साल 2009 में यह रकम 20 गुना ज्यादा बढ़कर 10,000 करोड़ रुपये हो गई। इसमें वोटरों को गैर कानूनी तरीके से दिया गया कैश भी शामिल है। लेकिन इस बार खर्च के मामले में सभी रेकार्ड टूटते नजर आ रहे हैं।

कुल खर्च 30,000 करोड़ रुपये से ज्यादा तक जा सकता है। हालांकि यह गैर-सरकारी आंकड़े हैं। लेकिन हर एक चुनावी क्षेत्र में 50 से 55 करोड़ रुपये से ज्यादा खर्च किए गए हैं।

प्रति वोटर यह खर्च 500 रुपये तक बैठता है। मीडिया रिपोर्ट की मानें तो चुनावी खर्चों में एक दिलचस्प बात यह है कि पार्टी से ज्यादा कैंडिडेट खर्च कर रहे हैं। इस पर पार्टियों को जरा भी ऐतराज नहीं है। वह बस एक तय राशि अपने कैंडिडेट्स को देती हैं। इसका नेगेटिव असर यह है कि जिसके पास पैसा नहीं है, उनको पार्टियों का टिकट नहीं मिलता। 

चुनाव आयोग के आंकड़े 

वहीं, चुनाव आयोग के मुताबिक, 1952 में आम चुनाव कराने पर जितने रूपए खर्च हुए थे उससे 20 गुना ज्यादा धनराशि 2009 के चुनावों पर ही खर्च हो गई थी। साल 1952 में हर मतदाता पर 60 पैसे खर्च हुए थे जबकि 2009 में हर मतदाता पर 12 रूपए का खर्च हुआ।

साल 1952 के आम चुनावों में सरकार ने कुल 10.45 करोड़ रूपए खर्च किए जबकि 2009 के चुनावों में कुल 1483 करोड़ रूपए सरकार की तरफ से खर्च किए गए। साल 2004 के आम चुनाव कराने में सरकारी खजाने पर 1,114 करोड़ रूपए का बोझ पड़ा।

(भाषा इनपुट के साथ)

English summary :
Lok Sabha Elections Expenditure data: Whenever the Lok Sabha elections are held in India, the economic activity of the country slows down. Election Commission can announce the dates of the Lok Sabha Chunav Programs and the Assembly elections in 4 states at five o'clock in the evening. General Election is likely to be held in April-May. During this press conference by EC the assembly elections schedule of Jammu and Kashmir, Sikkim, Arunachal Pradesh, Odisha and Andhra Pradesh can also be announced.


Web Title: Lok sabha Elections 2019: The first Lok Sabha election was spent only about 10 crore, the last expenditure was Rs 300 billion