क्या बनारस से पीएम नरेंद्र मोदी को लोकसभा चुनाव हराना नामुमकिन है?
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Updated: April 19, 2019 19:57 IST2019-04-19T19:44:13+5:302019-04-19T19:57:24+5:30
बीजेपी ने वाराणसी लोकसभा सीट से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को उम्मीदवार घोषित किया है। कांग्रेस और सपा-बसपा-रालोद ने अभी तक प्रत्याशी की घोषणा नहीं की है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछला आम चुनाव वाराणसी और वडोदरा दोनों सीटों से लड़ा था और दोनों जगह जीत हासिल की थी।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ वाराणसी लोकसभा सीट से कांग्रेस और सपा-बसपा-रालोद महागठबंधन ने शुक्रवार तक उम्मीदवार की घोषणा नहीं की है।
पिछले हफ्ते तक वाराणसी से पीएम मोदी के खिलाफ चुनावी ताल ठोकने वालों की लाइन लगी हुई थी, लेकिन इस हफ्ते एक-एक कर उनके चैलेंजर ख़ुद-ब-ख़ुद अखाड़ा छोड़ते जा रहे हैं।
सबसे पहले तमिलनाडु के उन 111 किसानों ने पीएम मोदी के खिलाफ चुनाव लड़ने के अपने पुराने ऐलान को वापस लेते हुए चुनाव न लड़ने की घोषणा कर दी।
उसके बाद भीम आर्मी के मुखिया चंद्रशेखर आजाद ने भी वाराणसी से चुनाव लड़ने की अपनी पुरानी घोषणा को पलटते हुए अब बनारस से चुनाव नहीं लड़ने की बात कही है।
भारत-पाकिस्तान सीमा पर खराब खानपान मिलने की शिकायत करने वाले पूर्व बीएसएफ जवान तेजबहादुर यादव, कोलकाता हाई कोर्ट के पूर्व जस्टिस सीएस कर्णन जैसे कई चर्चित शख्सियतों ने अभी तक अपने विकल्प खुले रखे हैं लेकिन इनमें से किसी को भी पीएम मोदी को गंभीर चुनौती देने वाला उम्मीदवार मानना मुश्किल है।
प्रियंका गांधी के वाराणसी से लड़ने की संभावना
एक तरफ जहाँ पूरे देश की निगाहें वाराणसी लोकसभा सीट की तरफ लगी हुई हैं, दूसरी तरफ विपक्षी दलों द्वारा प्रधानमंत्री के खिलाफ उम्मीदवार के नाम की घोषणा न करने की वजह से अंदरखाने यह सुगबुगाहट होने लगी है कि प्रतिद्वंद्वी कायदे का मुकाबला कर सकने लायक उम्मीदवार नहीं खोज पा रहे हैं।
कांग्रेस की तरफ से पार्टी महासचिव प्रियंका गांधी के भी वाराणसी से चुनाव लड़ने की खबरें मीडिया में आ रही हैं। इस अटकल को ख़ुद प्रियंका ने भी हवा दी। उन्होंने एक सार्वजनिक सभा में पार्टी कार्यकर्ताओं से मजाक में पूछ लिया कि 'वाराणसी से चुनाव लड़ जाऊँ?'
माना जा रहा है कि वाराणसी से जो भी कांग्रेस उम्मीदवार होगा उसे सपा-बसपा-रालोद गठबंधन का समर्थन हासिल होगा, ताकि मुकाबला कड़ा हो।
पिछले लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी बनाम अरविंद केजरीवाल
केजरीवाल को दो लाख से ज्यादा वोट भले मिले हों, लेकिन उन्हें पीएम मोदी से तीन लाख 80 हजार से ज्यादा वोटों से हार का सामना करना पड़ा था।
नरेंद्र मोदी को पाँच लाख 81 हजार वोट मिले थे, वहीं अरविंद केजरीवाल को दो लाख नौ हजार मत मिले थे।
कांग्रेस प्रत्याशी अजय राय तीसरे स्थान पर रहे थे, लेकिन उन्हें 75 हजार से ज्यादा वोट मिले थे।
वाराणसी पर विपक्ष दलों की हिचक की वजह?
वाराणसी संसदीय सीट के लिए 1991 से लेकर 2014 तक हुए कुल सात लोकसभा चुनावों में छह में बीजेपी को जीत मिली।
2004 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के राजेश मिश्रा ने बीजेपी के शंकर प्रसाद जायसवाल को 50 हजार से ज्यादा वोटों से हराया था। खास बात यह है कि 2004 के चुनाव में तीसरे, चौथे और पाँचवें स्थान पर रहे अपना दल, बसपा और सपा के उम्मीदवारों को 50 हजार से ज्यादा वोट मिले थे।
साल 2009 के चुनाव में बीजेपी के वरिष्ठ नेता मुरली मनोहर जोशी ने बसपा उम्मीदवार मुख्तार अंसारी को करीब 17 हजार वोटों के अंतर से हराया था। 2009 के चुनाव में अजय राय वाराणसी सीट से सपा के उम्मीदवार थे और उन्हें एक लाख 13 हजार वोट मिले थे और वह तीसरे स्थान पर रहे थे।
प्रधानमंत्री का चुनावी क्षेत्र होने से मिलने वाली सुविधाएँ और आत्मतुष्टि के अलावा वाराणसी में बीजेपी की जबरदस्त सियासी पकड़ की वजह यहाँ का जातिगत समीकरण है।
वाराणसी का जातिगत समीकरण और बीजेपी की ताकत
साल 2011 की जनगणना के अनुसार वाराणसी में करीब 70 प्रतिशत हिन्दू और करीब 28 प्रतिशत मुस्लिम आबादी है।
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार वाराणसी लोकसभा क्षेत्र में करीब 15 लाख 32 हजार वोटर हैं। इनमें से करीब तीन लाख मतदाता मुसलमान, करीब ढाई लाख ब्राह्मण, करीब डेढ़ लाख पटेल-कुर्मी वोटर हैं।
वाराणसी में करीब डेढ़ लाख यादव, 65 हजार कायस्थ, दो लाख वैश्य, 80 हजार चौरसिया, डेढ़ लाख भूमिहार और करीब 80 हजार दलित हैं।
मंडल-कमंडल की राजनीति के बाद सवर्ण हिन्दू बीजेपी का स्थायी जनाधार बनते गए जिसका फायदा बनारस जैसी सीटों पर उसे मिलता रहा है।
केवल ब्राह्मण-बनिया वोटर ही बनारस में साढ़े चार लाख हैं। अगर इसमें, भूमिहार, राजपूत और कायस्थ वोटरों की संख्या भी जोड़ दें तो यह आँकड़ा करीब सात लाख पहुंच जाएगा।
बीजेपी ने पिछला चुनाव अपना दल (सोनेलाल) से गठबंधन कर के लड़ा था। इस चुनाव में भी बीजेपी और अपना दल (एस) मिलकर लड़ रहे हैं। बनारस में कुर्मी-पटेल वोटरों की संख्या करीब डेढ़ लाख वोटर है।
यानी बनारस के करीब साढ़े आठ लाख वोटर मोटे तौर पर बीजेपी समर्थक माने जा सकते हैं। इनके अलावा चौरसिया और यादवों का एक बड़ा वर्ग भी बीजेपी को वोट देता आया है।
ऐसे में वाराणसी के 60 फीसदी से ज्यादा मतदाता बीजेपी समर्थक प्रतीत होते हैं। साल 2014 के लोकसभा चुनाव में बनारस में पिछले ढाई दशकों की रिकॉर्ड वोटिंग हुई थी और 10 लाख 30 हजार से ज्यादा मतदाताओं ने अपना वोट डाला था।
कुल मतदान का करीब 56 प्रतिशत नरेंद्र मोदी को मिला था। करीब 20 प्रतिशत मत अरविंद केजरीवाल को मिला था।
बनारस का राजनीतिक इतिहास देखें तो तीन लाख वोट पाने वाले उम्मीदवार की जीत लगभग पक्की हो जाती है। वाराणसी के पिछले आठ चुनावों को देखें तो केवल नरेंद्र मोदी ही 2014 में तीन लाख वोटों का आंकड़ा पार कर सके।
काशी के चुनावी अंकगणित साफ है कि बनारस में बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का पलड़ा काफी ज्यादा भारी है।
