लोकसभा चुनाव 2019: 8 राज्य, 15 सीट और हर बार बदलते हैं सांसद
By लोकमत समाचार ब्यूरो | Published: April 11, 2019 05:31 AM2019-04-11T05:31:11+5:302019-04-11T05:31:11+5:30
7वें लोकसभा चुनाव का आगाज गुरुवार को होने जा रहा है। इस चरण में 20 राज्यों की 91 सीटें हैं। इनमें से 8 राज्यों की 15 सीटें ऐसी हैं, जहां हर बार सांसद बदल जाते हैं। यहां हर लोकसभा चुनाव में सत्ता विरोधी लहर चलती है।
लोकतंत्र का सबसे बड़ा पर्व शुरू हो चुका है। चुनावी संग्राम में हर सियासी पाले की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। पुराने सियासी प्रतीकों की परीक्षा होगी तो जमीन पर दलों के दम का अंदाज भी लगेगा। आखिरकार वो घड़ी आ गई है, जिसे सबको बेसब्री से इंतजार था। 17वें लोकसभा चुनाव का आगाज गुरुवार को होने जा रहा है।
इस चरण में 20 राज्यों की 91 सीटें हैं। इनमें से 8 राज्यों की 15 सीटें ऐसी हैं, जहां हर बार सांसद बदल जाते हैं। यहां हर लोकसभा चुनाव में सत्ता विरोधी लहर चलती है। इन सीटों के वोटर हर 5 साल में नई सरकार को मौका देते हैं। अब देखना ये है कि इस बार इन सीटों पर किसको कुर्सी मिलती है और किसकी सरकार बनती है।
आइए जानते हैं वह सीट
कैराना: उत्तर प्रदेश की कैराना सीट पर 2004 में आरएलडी की अनुराधा चौधरी सांसद थीं। साल 2009 में इस सीट पर बसपा की तबस्सुम बेगम ने कब्जा जमा लिया, लेकिन 2014 में यह सीट भाजपा के हुकुम सिंह की झोली में गई।
मुजफ्फरनगर: यूपी की इस सीट पर 2004 में सपा के मुनव्वर हसन का कब्जा था। साल 2009 में इस पर बसपा के कादिर राणा ने पांव जमा लिया, लेकिन 2014 में यह सीट भाजपा के डॉ. संजीव कुमार बाल्यान के खाते में चली गई।
सहारनपुर: उत्तर प्रदेश की इस सीट पर 2004 में सपा के राशिद मसूद सांसद थे। साल 2009 में इस सीट पर बसपा के जगदीश सिंह राणा ने कब्जा जमा लिया, लेकिन 2014 में यह सीट भाजपा के राघव लखनपाल की झोली में गई।
हरिद्वार: उत्तराखंड की इस सीट को 2004 में सपा के राजेंद्र कुमार ने जीता। साल 2009 में यह कांग्रेस के हरीश रावत के पास चली गई। 2014 में फिर इस सीट पर भाजपा के रमेश पोखरियाल निशंक ने वापस कब्जा कर लिया।
अदिलाबाद: तेलंगाना राज्य की यह सीट 2004 के लोकसभा चुनाव में टीआरएस के सांसद मधुसूदन रेड्डी टकाला के कब्जे में थी। साल 2009 में यह टीडीपी के रमेश राठौड़ के पास चली गई। 2014 में टीआरएस के गोदाम नागेश ने इस पर फिर कब्जा कर लिया।
अल्मोड़ा: उत्तराखंड की इस सीट पर 2004 में भाजपा के सांसद बच्ची सिंह रावत ने पांव जमा रखे थे। 2009 में यह कांग्रेस के प्रदीप टाम्टा के खाते में चली गई। 2014 में फिर इस सीट पर भाजपा के अजय टाम्टा ने वापस कब्जा कर लिया।
अरुणाचल पश्चिम: अरुणाचल प्रदेश की इस सीट को 2004 में भाजपा के किरेन रिजीजू ने जीता। साल 2009 में यह कांग्रेस के तकाम संजय के पास चली गई। 2014 में फिर इस सीट पर भाजपा के किरेन रिजिजू ने वापस कब्जा कर लिया।
डिब्रूगढ़: असम की यह सीट 2004 के लोकसभा चुनाव में असम गण परिषद के सर्बानंद सोनेवाल के कब्जे में थी। साल 2009 में यह कांग्रेस के पबन सिंह घाटोवार के पास चली गई। 2014 में भाजपा के रामेश्वर तेली ने इस पर कब्जा कर लिया।
गढ़वाल: उत्तराखंड की इस सीट पर 2004 में भाजपा के भुवन चंद्र खंडूरी ने पांव जमा रखे थे। 2009 में यह कांग्रेस के सतपाल महाराज के खाते में चली गई। 2014 में फिर इस सीट पर भाजपा के भुवन चंद्र खंडूरी ने वापस कब्जा कर लिया।
कालाहांडी: ओडिशा की कालाहांडी सीट 2004 में भाजपा के बिक्रम केशरी देव के कब्जे में थी। साल 2009 में यह कांग्रेस के भक्त चरण दास के पास चली गई। 2014 में बीजेडी के अरका केशरी देव ने इस पर कब्जा कर लिया।
खम्मम: तेलंगाना राज्य की इस सीट पर 2004 में कांग्रेस की रेणुका चौधरी काबिज थीं। 2009 में यह टीडीपी के नामा नागेश्वर राव के खाते में चली गई। 2014 में इस सीट पर वाईएसआरपी के पोंगुलेटी श्रीनिवास रेड्डी ने कब्जा कर लिया।
लखीमपुर: असम की यह सीट 2004 के लोकसभा चुनाव में असम गण परिषद के डॉ. अरुण कुमार शर्मा के कब्जे में थी। साल 2009 में यह कांग्रेस की रानी नाराह के पास चली गई। 2014 में भाजपा के सर्बानंद सोनेवाल ने इस पर कब्जा कर लिया।
लक्षद्वीप: इस सीट पर 2004 में जेडीयू के डॉ. पी. पुकुनिकोया सांसद थे। साल 2009 में इस सीट पर कांग्रेस के मो. हमदुल्ला सईद ने कब्जा जमा लिया, लेकिन 2014 में यह सीट एनसीपी के मो. फैजल पीपी की झोली में गई।
तेजपुर: असम की यह सीट 2004 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के मोनी कुमार सुब्बा के कब्जे में थी। साल 2009 में यह असम गण परिषद के जोसेफ टोप्पो के पास चली गई। 2014 में भाजपा के राम प्रसाद शर्मा ने इस पर कब्जा कर लिया।
तूरा: मेघालय की इस सीट पर 2004 में एआईटीसी के पीए संगमा सांसद थे। साल 2009 में इस सीट पर एनसीपी की अगाथा संगमा ने कब्जा जमा लिया, लेकिन 2014 में यह सीट एनपीइपी के पीए संगमा की झोली में गई।