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लखनऊ ग्राउंड रिपोर्टः इस बार नवाबों के शहर का मतदाता किसे कर रहा पसंद, राजनाथ सिंह के कट्टर समर्थक हैं खामोश

By शीलेष शर्मा | Updated: April 28, 2019 09:46 IST

लोकमत ने पूरे शहर में घूम घूम कर पड़ताल की और यह जानने की कोशिश की कि मतदाताओं का रुझान किधर है. चूंकि लंबे समय से लखनऊ भाजपा की परंपरागत सीट रही है इसलिए माना जा रहा है कि इस बार भी भाजपा के उम्मीदवार गृह मंत्री राजनाथ सिंह 2019 के चुनाव में बाजी मार लेंगे. लेकिन हार-जीत का अंतर कितना होगा इसको लेकर राजनाथ के कट्टर समर्थक खामोश हैं.

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विशेष गंगा जमुनी तहजीब और लखनवी शान-ओ-शौकत के लिए मशहूर लखनऊ चुनाव को लेकर पूरी तरह उदास है. चौक, पान दरीबा, आलामबाग, गोमतीनगर, गोतमपल्ली, नाका हिंडोला, जैसे तमाम इलाके सूने पड़े है. पान की दुकानों पर भी चुनाव को लेकर कोई चर्चा नही. शहर का मतदाता भी अपना दिल खोलने को तैयार नहीं. घंटों कुरेदने पर उसके दिल की बात जुबान पर आती है और फिर खामोशी छा जाती है.लोकमत ने पूरे शहर में घूम घूम कर पड़ताल की और यह जानने की कोशिश की कि मतदाताओं का रुझान किधर है. चूंकि लंबे समय से लखनऊ भाजपा की परंपरागत सीट रही है इसलिए माना जा रहा है कि इस बार भी भाजपा के उम्मीदवार गृह मंत्री राजनाथ सिंह 2019 के चुनाव में बाजी मार लेंगे. लेकिन हार-जीत का अंतर कितना होगा इसको लेकर राजनाथ के कट्टर समर्थक खामोश हैं.सपा-बसपा ने फिल्म अभिनेता शत्रुघ्न सिन्हा की पत्नी पूनम सिन्हा को चुनाव मैदान में उतार कर चुनाव की गरमी बढ़ा दी है. कांग्रेस ने कल्कीपीठ के आचार्य प्रमोद कृष्णम को चुनाव मैदान में उतारा है. प्रमोद कृष्णम सपा-बसपा गठबंधन के लिए गले की फांस बन गए हैं. वे जो भी वोट जुटा रहे है वो वोट सपा-बसपा गठबंधन के खाते से जा रहा है. पूनम सिन्हा को गठबंधन ने उम्मीदवार बनाते हुए सोचा था कि उनको कायस्थ, सिंंधी, मुस्लिम और दलितों का वोट मिलेगा. लेकिन जमीनी हकीकत बताती है कि ऐसा होने नहीं जा रहा.लोकमत ने कायस्थों के इलाके याहियागंज में जाकर जायजा लिया तो पाया कि कायस्थ लंबे समय से भाजपा को वोट देता आ रहा है और इस बार भी उसकी प्राथमिकता भाजपा को वोट देने की है. याहियागंज के निवासी अशोक निगम से जब लोकमत ने बातचीत की तो उन्होंने बताया कि कायस्थ वोट बटेगा लेकिन इसकी अधिकांश संख्या भाजपा को वोट करेगी . जहां तक सिंंधी परिवारों का प्रश्न है सिंधी समुदाय के अधिकांश मतदाता सिंधी परिवार के पक्ष में दिखे.लखनऊ शहर की कुल जनसंख्या 28 लाख के ऊपर है जिसमें हिंदू 71 फीसदी, मुस्लिम 26 फीसदी, सिख, ईसाई, जैन, बौद्ध और अन्य समुदाय एक फीसदी से भी कम है. जिससे भाजपा का पलड़ा भारी पड़ता नजर आ रहा है. मुस्लिम मतदाता पूरी तरह खामोश है वह यह बताने को तैयार नहीं कि उसका वोट कितन जाएगा.मोहम्मद नसीम जो चिकन कपड़ों का काम करते हैं ने बताया कि मुसलमान लखनऊ में एक मुश्त भाजपा को हराने वाली पार्टी को वोट करेगा चाहे वह कांग्रेस हो या गठबंधन. वहीं हजरतगंज के व्यापारी प्रमोद की नाराजगी चुनाव में सेना का प्रचार में उपयोग को लेकर थी उन्होंने एक के बाद सवाल दागे और कहा कि भाजपा चुनाव तो जीत जाएगी लेकिन बहुत कम मतों से, केवल शिया मुसलमानों को छोड़कर कोई दूसरा मुसलमान भाजपा को वोट देने नहीं जा रहा.लोकमत की पड़ताल ने यह भी पाया कि हिंदू मतदाता भी बंटा हुआ है. जीएसटी और नोटबंदी ने कई व्यापारियों की कमर तोड़ दी है. पेशे से सिक्योरिटी गार्ड दुर्गाप्रसाद ने कहा भाजपा को बहुमत नहीं मिलेगा और गठबंधन बड़े बहुमत से जीतेगा. क्योंकि मोदी ने जो उम्मीद जगाई थी वह पांच सालों में कोई पूरी नहीं हुई. कपड़ा दुकान में काम करनेवाले मुकेश महरोत्रा भाजपा के पक्ष में कसीदे पढ़ते है और कहते है कि लखनऊ से चुनाव भाजपा जीतेगी लेकिन उत्तरप्रदेश में वह लड़खड़ा जाएगी.लखनऊ वाजपेयी का शहर रहा है और राजनाथ सिंह ने व्यक्तिगत रिश्ते निभाए है इसलिए लोग उन्हें वोट देगें. लखनऊ का चुनाव कड़ा और पेचीदा रहेगा कांग्रेस भले ही वोट कटुवा का काम करे लेकिन उसके मैदान में आने से लखनऊ का चुनाव त्रिकोणीय संघर्ष में बदल गया है.

टॅग्स :लोकसभा चुनावराजनाथ सिंहभारतीय जनता पार्टी (बीजेपी)कांग्रेसलखनऊउत्तरा प्रदेश लोकसभा चुनाव 2019
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