लोक सभा 2019: राजस्थान में दलितों और मुस्लिमों का मन बदला तो क्षेत्रीय दल मुश्किल में पड़ जाएंगे!
By प्रदीप द्विवेदी | Updated: December 31, 2018 07:53 IST2018-12-31T07:53:06+5:302018-12-31T07:53:06+5:30
विधानसभा चुनाव खत्म होने के साथ ही भाजपा और कांग्रेस ने लोक सभा 2019 की तैयारी शुरू कर दी है। राजस्थान में जहां काग्रेस को 99, भाजपा को 73 सीटें मिलीं वहीं बसपा को 6 सीटें मिलीं. वोट प्रतिशत के हिसाब से तो स्थिति और भी चिंताजनक है.

(बाएं से दाएं) राजस्थान की पूर्व सीएम वसुंधरा राजे, वर्तमान सीएम अशोक गहलोत और डिप्टी सीएम सचिन पायलट।
लोकसभा चुनाव में दलित और मुस्लिम मतदाता किसका साथ देंगे? यह सवाल इसलिए गंभीर है कि राजस्थान विस चुनाव में इन वर्ग के मतदाताओं ने कांग्रेस-भाजपा को छोड़ कर किसी और दल के प्रति कोई खास दिलचस्पी नहीं दिखाई है. इसका नतीजा यह रहा कि एमपी, राजस्थान ही नहीं छत्तीसगढ़ में भी बसपा का प्रदर्शन बेहद निराशाजनक रहा है.
राजस्थान में जहां काग्रेस को 99, भाजपा को 73 सीटें मिलीं वहीं बसपा को 6 सीटें मिलीं. वोट प्रतिशत के हिसाब से तो स्थिति और भी चिंताजनक है. जहां कांग्रेस को 39.3 प्रतिशत, भाजपा को 38.8 प्रतिशत तो बसपा को 4 प्रशित वोट मिले हैं. एसपी को तो महज 0.2 प्रतिशत वोट ही मिले हैं. सपा-बसपा के मिलाकर करीब 15 लाख वोटों के दम पर कितनी लोकसभा सीटें मिलेंगी?
उधर, एमपी में भाजपा को 41 प्रतिशत, कांग्रेस को 40.9 प्रतिशत तो बीएसपी को 5 प्रतिशत वोट मिले हैं, जबकि छत्तीसगढ़ में कांग्रेस को 43 प्रतिशत, भाजपा को 33 प्रतिशत और बीएसपी को 3.9 प्रतिशत मत मिले हैं.
राजनीतिक जानकार इस बदलाव की दो बड़ी वजह मानते हैं, पहली- उन्हें लगता है कि भाजपा को केवल कांग्रेस टक्कर दे सकती है, दूसरे किसी दल में यह क्षमता नहीं है, दूसरी- उन्हें लग रहा है कि क्षेत्रीय दलों के नेता केवल अपनी राजनीतिक महत्वकांक्षाएं पूरी के लिए सक्रिय हैं, उन्हें महागठबंधन की जरूरतों की खास परवाह नहीं है.
इसीलिए इन वर्ग में यह धारणा बनती जा रही है कि राज्यों के विधानसभा चुनाव में भले ही अपनी पसंद के क्षेत्रीय दल को वोट दे दें, लेकिन लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को वोट दें. लेकिन, इस बार के विधानसभा चुनाव के नतीजों को देख कर लगता है कि राज्यों के विधानसभा चुनाव में भी मतदाताओं ने क्षेत्रीय दलों में कोई विशेष दिलचस्पी नहीं दिखाई है.
दलित और मुस्लिम मतदाता के दम पर ही विभिन्न क्षेत्रीय दल खड़े हैं. यदि इन्होंने लोकसभा चुनाव में अपना इरादा बदल दिया तो क्षेत्रीय दल को लिए बड़ा प्रश्नचिन्ह लग जाएगा. अगर ऐसा होता है तो सबसे तगड़ा झटका तीसरे मोर्चे को लगेगा.
शायद इन दलों को भी इस बदलाव का अहसास होता जा रहा है और इसीलिए ये दल, कांग्रेस से लगातार दूरी बना रहे हैं?
याद रहे, विभिन्न क्षेत्रीय दलों के वोट बैंक का नेचर कांग्रेस से काफी मिलता है, इसलिए इन मतदाताओं का कांग्रेस की ओर चले जाना कोई आश्चर्य की बात नहीं है.
उधर, इस बदलाव से भाजपा के सामने भी सवालिया निशान है, क्योंकि यदि यह वोट बैंक कांग्रेस की ओर शिफ्ट हो गया तो कांग्रेस को केन्द्र की सत्ता हांसिल करने से रोकना आसान नहीं होगा.