आम चुनाव की खास कहानियां: स्मृति ईरानी ने कभी मांगा था पीएम मोदी का इस्तीफा, दी थी आमरण अनशन की धमकी
By लोकमत न्यूज़ डेस्क | Published: April 11, 2019 05:27 PM2019-04-11T17:27:28+5:302019-04-11T17:27:28+5:30
स्मृति जुबिन ईरानी, वेटर, एक्टर से लेकर एक राजनेता तक का सफर तय करने वाली महिला, जो 2014 मोदी कैबिनेट का सबसे युवा चेहरा भी हैं। मोदी सरकार में राज्यसभा सांसद से उन्हें पहली बार एक अहम मंत्रालय मानव संसाधन विकास मंत्रालय की जिम्मेदारी सौंपी गई। बाद में कैबिनेट में फेरबदल हुआ तो उन्हें टेक्सटाइल मिनिस्टर बना दिया गया। लेकिन यही स्मृति ईरानी जो आज मोदी सरकार का सबसे खास चेहरा हैं, कभी इन्होंने ही नरेंद्र मोदी की कड़ी आलोचना करते हुए इस्तीफे की मांग तक कर दी थी।
साल था 2004। नरेंद्र मोदी उस वक्त गुजरात के सीएम थे। उन पर 2002 में हुए गुजरात दंगों का आरोप था। इसी के चलते स्मृति ने उनके इस्तीफे की मांग तक कर डाली। उन्होंने यहां तक कह दिया कि वे इसके लिए भूख हड़ताल पर भी बैठेंगी। हालांकि वे न तो भूख हड़ताल पर बैठीं और न ही नरेंद्र मोदी ने इस्तीफा दिया। लेकिन सवाल ये था कि भारतीय जनता पार्टी में होने के बावजूद उन्होंने ऐसा किया क्यों?
माना जाता है कि ऐसा करने के पीछे की वजह कुछ और थी, दरअसल 2003 में बीजेपी के साथ आने के बाद 2004 आम चुनावों ने उन्हें दिल्ली की चांदनी चौक सीट से टिकट दिया गया। इसी सीट पर कांग्रेस के दिग्गज नेता कपिल सिब्बल भी चुनाव लड़ रहे थे नतीजन वे बुरी तरह से चुनाव हार गईं। स्मृति अपनी हार के पीछे की वजह नरेंद्र मोदी को मानतीं थीं। यही वजह थी कि नरेंद्र मोदी के खिलाफ उनमें गुस्सा था, जो उन्होंने ऐसा किया। वे 25 दिसंबर 2004 को आमरण अनशन शुरू करने वाली थीं। इससे कुछ दिन पहले उन्होंने मीडिया के सामने बयान भी दिया था कि वे तब तक भूख हड़ताल करेंगी, जब तक नरेंद्र भाई गुजरात के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा नहीं देते या वे मर नहीं जातीं। खैर वो दिन नहीं आया, जब उन्हें भूख हड़ताल पर बैठना पड़ा हो जाहिर है पार्टी हाईकमान ने मामला रफा-दफा करवा दिया।
लेकिन बावजूद इसके उनकी इस हार या उनके तरह की बयानबाजी का उनकी पार्टी में हैसियत पर कोई फर्क नहीं पड़ा। 2004 में स्मृति को महाराष्ट्र यूथ विंग का उपाध्यक्ष बना दिया गया। स्मृति पांच बार केंद्रीय समिति के कार्यकारी सदस्य के रूप में मनोनीत हुईं और पार्टी के लिए राष्ट्रीय सचिव के रूप में भी काम किया। पार्टी ने स्मृति पर भरोसा जताते हुए 2010 में बीजेपी महिला मोर्चा की कमान सौंपी।
खास बात तो ये है कि 2011 में इन्हीं मोदी के गुजरात में मुख्यमंत्री रहते हुए उन्हें यहां से राज्यसभा भेज दिया गया। इसी साल स्मृति को हिमाचल प्रदेश में महिला मोर्चे की भी कमान सौंप दी गई।
2014 में हुए लोकसभा चुनाव में स्मृति, कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के खिलाफ अमेठी से चुनाव हार गईं। लेकिन फिर भी मोदी ने अपनी सरकार में स्मृति को एक मानव संसाधन जैसे महत्वपूर्ण मंत्रालय का जिम्मा सौंप दिया।
एक दशक बाद उन्होंने 2004 वाली उस घटना पर अपनी प्रतिक्रिया दी। 2014 में ही चुनाव के दौरान उन्होंने एक सभा में कहा था कि गुजरात दंगों के लिए नरेंद्र मोदी की आलोचना को वे वापस लेती हैं"
स्मृति ने भले ही नरेंद्र मोदी के खिलाफ कभी हमलावर रुख अख्तियार किया हो लेकिन बीजेपी या मोदी सरकार में उल्टे उन्हें इनाम ही मिला है। स्मृति आज उन खास चेहरों में से एक हैं जिन पर पीएम मोदी सबसे ज्यादा भरोसा करते हैं। अब 2019 लोकसभा के मद्देनजर वे एक बार फिर मैदान में हैं और उन्होंने उसी अमेठी सीट से राहुल गांधी के खिलाफ पर्चा दाखिल किया है, जहां से पांच साल पहले उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा था।
लेखक- अमन गुप्ता