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लोकसभा चुनावः दिल्ली में आप के प्रदर्शन पर राजस्थान की नजर?

By प्रदीप द्विवेदी | Updated: May 12, 2019 17:57 IST

एक समय तो राजस्थान में आप के विस्तार की खासी चर्चा भी होने लगी थी, परन्तु कुमार विश्वास की राजस्थान में विवादास्पद एंट्री के साथ ही राजस्थान में आप की राजनीतिक स्थिति कमजोर होती गई. 

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ठळक मुद्देउल्लेखनीय है कि विधानसभा चुनाव 2018 में आप ने राजस्थान में चुनाव लड़ा था.प्रदेशाध्यक्ष रामपाल जाट का मानना था कि- बीजेपी, बेरोजगारी और किसानों की समस्या के बजाए सैन्य कार्रवाई जैसे मुद्दों पर चुनाव लड़ रही है.

दिल्ली में लोकसभा चुनाव की सियासी जंग के नतीजे क्या रहेंगे, इस पर सारे देश की नजर है, लेकिन राजस्थान में इस बात को लेकर विशेष उत्सुकता है कि- वहां आप का क्या होगा?

आप का उदय दिल्ली में हुआ तो इसके साथ ही राजस्थान, हरियाणा, पंजाब जैसे पड़ौसी राज्यों में भी इसका असर नजर आने लगा.

एक समय तो राजस्थान में आप के विस्तार की खासी चर्चा भी होने लगी थी, परन्तु कुमार विश्वास की राजस्थान में विवादास्पद एंट्री के साथ ही राजस्थान में आप की राजनीतिक स्थिति कमजोर होती गई. 

उल्लेखनीय है कि विधानसभा चुनाव 2018 में आप ने राजस्थान में चुनाव लड़ा था, लेकिन कोई खास कामयाबी नहीं मिल पाई थी, लिहाजा इस बार लोस चुनाव नहीं लड़ने का निर्णय लिया गया.

आप के प्रदेशाध्यक्ष रामपाल जाट का प्रेस को कहना था कि- विस चुनाव में पार्टी के प्रदर्शन के मद्देनजर लोस चुनाव नहीं लड़ने का फैसला लिया गया. 

आप ने राजस्थान विस चुनाव में 142 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे और आधा प्रतिशत से भी कम वोट मिले थे. यही नहीं, ज्यादातर सीटों पर जमानत जब्त हो गई थी और नोटा से भी कम कुल वोट मिले थे.

राजस्थान में आप के कुल 142 उम्मीदवारों को 0.4 प्रतिशत (कुल मत 1,26,909) वोट मिले थे, जबकि नोटा पर 1.3 प्रतिशत (4.45 लाख) वोट आए थे.

दरअसल, देश में सियासी समीकरण बदल गया है और अब आप को कांग्रेस के साथ से कोई सियासी वैचारिक परेशानी नहीं है. राजस्थान में भी आप का मुख्य विरोध बीजेपी से ही है. 

प्रदेशाध्यक्ष रामपाल जाट का मानना था कि- बीजेपी, बेरोजगारी और किसानों की समस्या के बजाए सैन्य कार्रवाई जैसे मुद्दों पर चुनाव लड़ रही है.

उन्होंने देशहित में पीएम मोदी सरकार को फिर से नहीं चुनने की बात कही और कहा था कि- पीएम मोदी सरकार को सबक सिखाने का अवसर आ गया है.

लेकिन, आप नेता देवेन्द्र शास्त्री का यह भी कहना था कि पार्टी लोस चुनाव के बाद होने वाले पंचायत और नगर निकाय चुनावों में अपने उम्मीदवार उतारेगी.

यदि लोस चुनाव में दिल्ली में आप और कांग्रेस में समझौता हो जाता तो शायद भविष्य में आप के लिए राजस्थान में भी नई राजनीतिक राह तैयार हो जाती, किन्तु ऐसा नहीं हुआ. अब राजस्थान में भविष्य होने वाले चुनाव आप को अकेले ही लड़ने होंगे.

लोकसभा चुनाव में दिल्ली में आप कितनी सीटें जीतती है, इससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण यह है कि आप का प्रदर्शन कैसा रहता है, उसे कितने प्रतिशत वोट मिलते हैं.

यदि दिल्ली में आप बेहतर प्रदर्शन करेगी तो राजस्थान में फिर से उम्मीदें जाग जाएंगी, वरना तो कार्यकर्ताओं में जोश जगा कर उन्हें सक्रिय करना मुश्किल हो जाएगा.

टॅग्स :लोकसभा चुनावराजस्थानआम आदमी पार्टी
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