लोकसभा चुनाव: लेनिनग्राद कहे जाने वाले बेगूसराय में थमा चुनाव प्रचार, कन्हैया कुमार और गिरिराज सिंह की प्रतिष्ठा दांव पर
By एस पी सिन्हा | Updated: April 27, 2019 20:39 IST2019-04-27T20:39:37+5:302019-04-27T20:39:37+5:30
भूमिहारों के बीच अपनी पैठ बनाने के लिए कन्हैया कुमार ये लगातार हवा बनाने की कोशिश में लगे रहे कि ये मुकाबला गिरिराज बनाम कन्हैया है.

Lok Sabha election 2019: fourth phase election begusarai lok sabha seat fight Kanhaiya Kumar and Giriraj Singh
बिहार में चौथे चरण के तहत होने वाले चुनाव में वामपंथ का गढ लेनिनग्राद कहे जाने वाले बेगूसराय में चुनाव प्रचार का शोर आज शाम थम गया. यहां तीन महारथी चुनावी मैदान में हैं और लडाई कशमकश है. जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष रहे सीपीआइ प्रत्याशी कन्हैया कुमार का यह पहला चुनाव है.
वहीं, महागठबंधन से छात्र आंदोलन की उपज राजद के तनवीर हसन हैं. जबकि भाजपा सांसद भोला सिंह के निधन से खाली हुई सीट पर एनडीए ने भाजपा के फायरब्रांड नेता केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह को भेजा है. बेगूसराय की लडाई को नौजवान बनाम ताकतवर की जंग बना दिया है.
भूमिहार-मुस्लिम बहुल इस सीट पर गिरिराज सिंह बाहरी है, लेकिन नरेंद्र मोदी चुनावी मुद्दा होने से सभी उम्मीदवारों की सीधे उनसे ही टक्कर है. यहां 4.30 लाख भूमिहार वोटर हैं. इनमें करीब सवा लाख भाकपा का कैडर माना जाता है. यह आंकडा कन्हैया को बल दे रहा है.
भूमिहारों के बीच अपनी पैठ बनाने के लिए कन्हैया कुमार ये लगातार हवा बनाने की कोशिश में लगे रहे कि ये मुकाबला गिरिराज बनाम कन्हैया है. जबकि राजद के उम्मीदवार तनवीर हसन भी ताल ठोक रहे हैं कि मुकाबला कन्हैया बनाम गिरिराज नहीं बल्कि गिरिराज का मुकाबला राजद से है.
वहीं, दुनियाभर के वामपंथी नेता, सामाजिक कार्यकर्ता, फिल्मी-शिक्षा जगत के लोग उनका प्रचार करते रहे. एनडीए-सीपीआइ प्रत्याशी महागठबंधन को लडाई में नहीं मान रहे हैं. इसका प्रचार भी किया जा रहा है, लेकिन लोग बताते हैं, 2.8 लाख मुसलमान, 1.5 लाख यादव परंपरा के रास्ते बूथ तक पहुंचे, तो तनवीर हसन गेम चेंजर होंगे. उनकी जमीन है. छवि अच्छी है. लोकप्रिय भी हैं.
बेगूसराय के इतिहास में भूमिहार किस कदर छाये रहे इसका एक छोटा सा उदाहरण है कि पिछले 10 में से 9 बार लोकसभा में वहां से एक भूमिहार ही सांसद चुना गया. कन्हैया की एंट्री ने दोनों गठबंधनों के प्लान को मटियामेट कर दिया है, खासतौर पर नुकसान गिरिराज को होगा क्योंकि दोनों एक ही जाति से ताल्लुक रखते हैं. अगर कुमार भूमिहारों का वोट काटने में कामयाब रहे तो इसका सीधा फायदा राजद उम्मीदवार तनवीर हसन को मिलेगा. लेकिन राजद के लिए भी ये आसान नहीं है.
एक जमाने में बेगूसराय बिहार की औद्योगिक राजधानी मानी जाती थी. कल कारखानों की मौजूदगी के चलते वहां के राजनैतिक परिद्श्य में ट्रेड यूनियनों का बहुत महत्व था और वह काफी प्रभावशाली थे, वामदलों की इस इलाके में अच्छी पैठ है.
हालांकि दशकों के खराब शासन, बंद होते कारखानों के चलते वामदलों की हालत कमजोर होती चली गई. आखिरी बार सीपीआई ने यहां 1967 में जीत दर्ज की थी. हार के बावजूद सीपीआई हमेशा मुकाबले में बनी रही, 1967 के बाद से 3 बार वो दूसरे या तीसरे स्थान पर रहे. 2009 में भी सीपीआई का उम्मीदवार दूसरे स्थान पर था. 2014 के चुनाव में प्रचंड मोदी लहर में उसे 2 लाख वोट मिले. 2004 और 2009 में यहां से जदयू जीती जो उस वक्त एनडीए का हिस्सा थी लेकिन 2014 में वो एनडीए से अलग हो गई और भाजपा ने ये सीट उनसे छीन ली. इस दौरान भूमिहारों के बीच अपनी पैठ बनाने के लिए कन्हैया कुमार लगातार हवा बनाने की कोशिश में लगे रहे.
बेगूसराय के 19 लाख वोटरों में ऊंची जाति के भूमिहारों की संख्या लगभग 19 फीसदी है, जबकि दूसरे नंबर पर 15 फीसदी वोटरों के साथ मुसलमान हैं. 12 फीसदी यादव हैं और 7 फीसदी कुर्मी वोटर है. नीतीश की पार्टी का साथ मिलने के बाद भाजपा को पूरा भरोसा है कि वो करीब 37 फीसदी वोटों पर कब्जा कर लेगी. (भूमिहार 19 प्रतिशत, ऊंची जाति 11 प्रतिशत+ कुर्मी 7 प्रतिशत). वहीं, राजद को भी पूरा भरोसा है कि जीत के वह भी करीब हैं और करीब 35 फीसदी वोट उन्हें भी मिल सकते हैं. (मुस्लिम 15 प्रतिशत + यादव 12 प्रतिशत+ दलित 8 प्रतिशत). दोनों गुटों को इस बात का भरोसा है कि 22 प्रतिशत अन्य जातियों खास तौर पर महादलितों का वोट अगर उन्हें मिल जाता तो जीत पक्की हो जाती.