लोकसभा चुनावः ओडिशा में BJP जीतना तो चाहती है, लेकिन भविष्य के मद्देनजर बीजेडी से उलझना भी नहीं चाहती?
By प्रदीप द्विवेदी | Updated: March 2, 2019 05:24 IST2019-03-02T05:24:52+5:302019-03-02T05:24:52+5:30
ओडिशा में बीजेपी का वोट बढ़ रहा है, इसलिए बीजेपी को ओडिशा से उम्मीदें जरूर हैं, लेकिन बगैर किसी सशक्त सहयोगी के अकेले दम पर बीजेपी कोई बड़ी कामयाबी शायद ही दर्ज करवा सके.

लोकसभा चुनावः ओडिशा में BJP जीतना तो चाहती है, लेकिन भविष्य के मद्देनजर बीजेडी से उलझना भी नहीं चाहती?
लोकसभा चुनावों की तारीख जैसे-जैसे नजदीक आ रही है पीएम मोदी सहित बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह भी ओडिशा के दौरे कर रहे हैं, क्योंकि बीजेपी उत्तर भारत की कमी को ओडिशा, पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों से पूरी करना चाहती है. लेकिन, बीजेपी सत्ताधारी बीजेडी पर दो कारणों से आक्रामक नहीं है, एक- केन्द्र में किसी विषम परिस्थिति में बीजेडी के सहयोग-समर्थन की जरूरत पड़ सकती है, और दो- कहीं बीजेडी, कांग्रेस या महागठबंधन के साथ नहीं हो जाए.
ओडिशा में बीजेपी का वोट बढ़ रहा है, इसलिए बीजेपी को ओडिशा से उम्मीदें जरूर हैं, लेकिन बगैर किसी सशक्त सहयोगी के अकेले दम पर बीजेपी कोई बड़ी कामयाबी शायद ही दर्ज करवा सके.
ओडिशा में कुल 21 लोकसभा सीटें हैं. ओडिशा के सीएम नवीन पटनायक ने साफ कर दिया कि वे किसी भी पार्टी के साथ गठबंधन नहीं करेंगे. बीजेपी के लिए ओडिशा इसलिए भी खास है क्योंकि, वहां लोकसभा चुनावों के साथ विधानसभा चुनाव भी होने वाले हैं. जरूरत पड़ने पर केन्द्र में तो बीजेडी का साथ बीजेपी को मिल ही सकता है, हो सकता है, किसी विषम सियासी परिस्थिति में प्रदेश की सत्ता में भी बीजेपी को भागीदारी मिल जाए.
वर्ष 2014 के लोकसभा चुनावों में बीजेपी को यहां केवल एक ही सीट मिली थी, परन्तु उसका वोट 20 प्रतिशत से ज्यादा था. विधानसभा चुनावों में भी बीजेपी को 18 प्रतिशत से ज्यादा वोट मिले थे, जो कि 2009 के चुनावों के सापेक्ष 2-4 प्रतिशत ज्यादा थे. वर्ष 2014 के लोकसभा चुनावों में बीजेडी ने 20 सीटों पर जीत दर्ज की थी और उसका वोट 2009 से करीब एक प्रतिशत ज्यादा- 44.8 प्रतिशत था.
उल्लेखनीय है कि बीजेडी वर्ष 2000 से ओडिशा की सत्ता पर काबिज है. कभी बीजेडी और बीजेपी का गठबंधन भी था, लेकिन 2009 लोकसभा चुनावों से पहले दोनों की राहें जुदा हो गई. हालांकि, 2009 में बीजेडी ने अकेले दम पर 14 सीटें जीती, लेकिन 2014 में तो 20 सीटों पर कब्जा जमा लिया. राजनीतिक जानकारों का मानना है कि नवीन पटनायक की लोकप्रियता में तो कुछ खास कमी नहीं आई है, किन्तु इस बार बीजेडी सत्ता विरोधी लहर का शिकार हो सकती है और बीजेपी नहीं चाहती कि इसका फायदा कांग्रेस को मिले.
ओडिशा के कुछ क्षेत्रों में पंचायत चुनावों के दौरान बीजेपी का प्रदर्शन अच्छा था और वह कांग्रेस से आगे भी निकल गई थी, लिहाजा लोकसभा चुनाव में कुछ लोकसभा क्षेत्रों, खासकर पश्चिम ओडिशा से बीजेपी को बड़ी उम्मीदें हैं. बीजेपी के साथ-साथ ओडिशा पर अब कांग्रेस भी ध्यान दे रही है. वहां कांग्रेस के पास खोने के लिए कुछ नहीं है, इसलिए जो भी लोस सीट मिलेगी वह केन्द्र में कांग्रेस की ताकत बढ़ानेवाली होगी.
वर्ष 2014 तक ओडिशा में बीजू जनता दल का एकछत्र राज रहा है, लेकिन वोट प्रतिशत के लिहाज से कांग्रेस दूसरे नंबर पर रही है और भाजपा तीसरे नंबर पर. वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में ओडिशा में बीजेडी को 44.8 प्रतिशत, कांग्रेस को 26.4 प्रतिशत तो बीजेपी को 21.9 प्रतिशत वोट मिले थे.
वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के 6 सांसद निर्वाचित हुए थे. जब कांग्रेस को कुल 32.7 प्रतिशत वोट मिले थे, जबकि बीजेडी को 37.2 प्रतिशत वोट के साथ 14 सीटें मिली थी और बीजेपी को 16.9 प्रतिशत वोट तो मिले, लेकिन वह एक भी सीट हांसिल नहीं कर पाई थी. वर्ष 1996 में यहां कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी थी, जब उसने 16 सीटें जीती थीं. बहरहाल, पूरे देश का सियासी समीकरण तेजी से बदल रहा है, इसलिए यह कहना मुश्किल है कि 2019 में बीजेडी, कांग्रेस और बीजेपी में से किसके खाते में बड़ी कामयाबी दर्ज होगी?