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RJD को खल रही है लालू यादव की कमी, जेल से बाहर होते तो आज महागठबंधन की कुछ और होती तस्वीर 

By एस पी सिन्हा | Updated: March 18, 2019 19:19 IST

लालू के जेल में रहने के कारण वैसे नेताओं के सामने मुश्किल खड़ी हो गई है, जो टिकट के दावेदारी के साथ उनके दरबार में माथा टेकते रहते थे. इसी कड़ी में टिकट के उम्मीद में लालू से मिलने गये पूर्व मंत्री रमई राम को उस वक्त निराशा हांथ लगी जब उन्हें अस्पताल के गेट से वापस लौटा दिया गया.

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महागठबंधन के बीच जारी ऊहापोह के बीच अब यह महसूस होने लगा है कि रूपरेखा तय करने वाले राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव अगर बाहर होते तो आज यह स्थिति नहीं रहती. चारा घोटाला में सजायाफ्ता होने के बाद लालू रांची स्थित जेल-अस्पताल में भर्ती हैं. लेकिन उनके महत्व को इसी से आंका जा सकता है कि उनसे मिलने वाले नेताओं के कतार में कमे नही हो रही है. लेकिन जेल मैनुअल के अनुसार वह सप्ताह में केवल तीन व्यक्तियों से हीं मुलाकात कर सकते हैं.  

लालू के जेल में रहने के कारण वैसे नेताओं के सामने मुश्किल खड़ी हो गई है, जो टिकट के दावेदारी के साथ उनके दरबार में माथा टेकते रहते थे. इसी कड़ी में टिकट के उम्मीद में लालू से मिलने गये पूर्व मंत्री रमई राम को उस वक्त निराशा हांथ लगी जब उन्हें अस्पताल के गेट से वापस लौटा दिया गया. इस लोकसभा चुनाव में में लालू की कमी साफ दिख रही है. 

दरअसल, राजद की कमान संभाल रहे तेजस्वी यादव अभी से भाज्पा और जदयू के एजेंडे में फंसते दिख रहे हैं. 2015 के विधानसभा चुनाव में लालू यादव ने जातिगत जनगणना और आरक्षण को अपना प्रमुख हथियार बनाया जिसमें एनडीए ऐसा उलझा की महागठबंधन की सरकार बन गई, लेकिन चारा घोटाला मामले में जेल जाने के कारण लालू सक्रिय राजनीति से दूर हो गए हैं. वैसे लालू अस्पताल से ही पार्टी पर भी नजर रखे हुए हैं और अपने बेटे तेजस्वी से पार्टी और घर के बारे में जानकारी लेते रहते हैं.

तेजस्वी राजनीति में पूरी तरह सक्रिये भी हैं और एग्रेसिव भी, वह बिना समय गंवाए अपने विरोधियों पर हमला भी करते हैं. लेकिन तेजस्वी वह करने में नाकाम दिख रहे हैं जो लालू किया करते थे. हालांकि तेजस्वी को अपने समीकरण पर पूरा भरोसा है. उनका कहना है कि जनता नीतीश कुमार को पूरी तरह नकार चुकी है, हमारी लड़ाई जनता लड़ेगी.

तेजस्वी ने लालू यादव की गैर मौजूदगी में सीट समीकरण में जी जान से जुटे हुए हैं. वैसे पार्टी के लेवल पर अभी तक कोई कार्यक्रम तय नहीं हुए हैं और यहीं लालू यादव की कमी दिखती है. इससे पहले लालू ने हर मौके पर यह साबित किया है जनता की नब्ज और पार्टी की मजबूती पर किस तरह से पकड़ बनाकर रखनी है. 

शुरुआती दौर में चारा घोटाला मामले में पहली बार जेल जाते हुए लालू ने तुरत निर्णय लिया था और उस वक्त अपनी पत्नी राबड़ी देवी को किचन से निकालकर बिहार की मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठा दिया था. उस वक्त भी वह जेल में थे, लेकिन बिहार की सत्ता की चाबी खुद के पास रखते थे. लेकिन, इस बार दूर रहकर भी स्थिती पर नजर बनाये हुए हैं. बिहार में नब्बे के दशक सत्ता में आने के दौर को छोड़ दें तो लालू यादव भारतीय राजनीति के उन चंद नेताओं में से एक हैं, जिन्होंने कभी भी भाजपा से समझौता नहीं किया. 

देश के महत्वपूर्ण दल अलग-अलग समय में भाजपा के साथ गठबंधन बनाकर सरकार चला चुके हैं, भाजपा को अपना समर्थन दे चुके हैं. लेकिन, लालू ने कभी भाजपा के सामने घुटने नहीं टेके ना ही कभी उसका समर्थन किया. 

जानकारों की अगर मानें तो कई मामले में लालू अन्य नेताओं से अलग नजर आते हैं, शायद यही वजह है कि लालू और उनकी पार्टी की छवि सेक्यूलर नेता और पार्टी के रूप में रही है और इस बात को बिहार की जनता भी जानती है कि इस मुद्दे पर लालू कभी किसी से समझौता नहीं कर सकते हैं. 

लालू ने ही भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी के राम रथ को बिहार में रोका था और उन्हें गिरफ्तार कर नजरबंद भी किया था. जो किसी और में इतनी हिम्मत नहीं हो सकती थी. इसके बाद बिहार में इससे उनकी प्रतिष्ठा बढ़ी ही है. चारा घोटाला, मिट्टी घोटाला, रेलवे टेंडर घोटाला, इत्यादि कई घोटालों में नाम आने के बाद लालू यादव और उनके परिवार की, उनकी पार्टी राजद की परेशानी बढ़ी है. लेकिन उसी अनुपात में जनता के बीच आज भी उनकी उतनी ही स्वीकार्यता है, राजद का अपना वोट बैंक है जिसे बिहार में नकारा नहीं जा सकता और ये विरोधियों को भी पता है कि लालू जेल में रहें या बाहर उनकी ताकत में कभी कमी नहीं आई है.

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