लोकसभा चुनाव 2019: पीएम मोदी की योजना 'मेक इन इंडिया' का क्या हाल है?
By विकास कुमार | Updated: March 8, 2019 16:30 IST2019-03-08T14:08:48+5:302019-03-08T16:30:03+5:30
MAKE IN INDIA: लोकसभा चुनाव से पहले प्रधानमंत्री मोदी से उनकी महत्वाकांक्षी योजना 'मेक इन इंडिया' के बारे में सवाल पूछे जायेंगे. बीजेपी और पीएम मोदी ने इसी योजना के भरोसे 5 साल में 10 करोड़ रोज़गार पैदा करने का वादा किया था.

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यूपीए शासनकाल के अंतिम वर्षों में देश की अर्थव्यवस्था लगातार हिचकोले खा रही थी. साल 2013 में जीडीपी का आंकड़ा लुढ़क कर 5 प्रतिशत पर आ जाता है जो पिछले एक दशक में सबसे निम्न स्तर पर था. देश लोक सभा चुनाव की और बढ़ रहा था और बीजेपी के प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी गुजरात से बाहर निकलकर अपने राज्य के विकास का मॉडल देश के सामने पेश कर रहे थे. उनके द्वारा बताया जा रहा था कि कैसे उन्होंने गुजरात को मैन्युफैक्चरिंग का हब बना दिया. मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में क्रांति के रास्ते देश के युवाओं को रोज़गार के सपने बेच कर बीजेपी सत्ता में आई थी.
16 मई 2014 को नरेन्द्र मोदी देश के प्रधानमंत्री बने. मोदी सरकार ने हर साल 2 करोड़ रोज़गार पैदा करने का वादा किया था और इसके लिए सितम्बर 2014 में मेक इन इंडिया प्रोग्राम लांच किया गया.
एक कार्यक्रम में प्रधानमंत्री ने कहा, "हमने मेक इन इंडिया अभियान की शुरुआत युवाओं के लिए रोज़गार और स्व-रोज़गार मुहैया करवाने के लिए की है. हम भारत को मैन्युफ़ैक्चरिंग हब बनाने की जी-तोड़ कोशिश कर रहे हैं."
क्या था मकसद
- मेक इन इंडिया प्रोग्राम लांच करने के पीछे मुख्य रूप से दो महवपूर्ण वजहें थीं
- देश की अर्थव्यवस्था में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर का योगदान 16 प्रतिशत था जिसे सरकार 2022 तक 25 प्रतिशत करने का लक्ष्य लेकर चल रही है.
- मोदी सरकार ने इस योजना से 10 करोड़ रोज़गार पैदा करने का लक्ष्य तय किया था.
क्या है धरातल पर हकीक़त
- नरेन्द्र मोदी के पीएम बनने से पहले मई 2014 में औद्योगिक उत्पादन में वृद्धि दर 4.6 प्रतिशत थी जो मई 2017 में गिरकर 2.7 प्रतिशत रह गई है.
- CMIE के मुताबिक, 2016 में नोटबंदी के बाद 15 लाख लोगों का रोज़गार छिन गया.
- CMIE के आंकड़ों के मुताबिक साल 2018 में 1 करोड़ 10 लाख लोगों की नौकरी चली गई.
- CMIE की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक, फरवरी 2019 में देश में बेरोज़गारी दर 7.2 प्रतिशत पर पहुंच गई है. नोटबंदी से पहले देश में लेबर पार्टिसिपेशन रेट 47 फीसदी था जो अब 42.7 फीसदी हो गया है. इसका मतलब नौकरी मानने वाले लोगों की सख्या में कमी आई है और यह अर्थव्यवस्था के लिए कहीं से भी शुभ संकेत नहीं है.
- बिज़नेस स्टैण्डर्ड अखबार में NSSO की छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक साल 2017-18 में भारत की बेरोज़गारी दर पिछले 45 सालों में सबसे ज्यादा थी.
'मेक इन इंडिया' (MAKE IN INDIA) की सफलता में कौन सी वजहें बनी अवरोध
- नोटबंदी को मेक इंडिया के लिए सबसे बड़ा धक्का बताया गया. क्योंकि नोटबंदी से छोटे और मझोले उद्योगों की कमर टूट गई जिससे देश के MSME सेक्टर पर बहुत बुरा असर पड़ा.
- मार्केट से अचानक 85 प्रतिशत करेंसी वापस लेने के कारण लोगों ने पैसे खर्च करने कम कर दिए जिसके कारण डिमांड और सप्लाई के चेन पर प्रतिकूल असर पड़ा और इसके कारण औद्योगिक उत्पादन कुछ वक्त के लिए ठप सा पड़ गया.
मोदी सरकार ने कुछ इनिशिएटिव लिए जिसका असर दिखा
- मोदी सरकार ने देश में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को बढ़ावा देने के लिए नियमों का सरलीकरण किया और इसके साथ ही निवेश के लिए बेहतर माहौल तैयार करने के लिए टैक्स स्ट्रक्चर को सरल किया, बिजली की निर्बाध आपूर्ति को आश्वस्त किया जिसकी बदौलत वर्ल्ड बैंक द्वारा जारी होने वाले इज ऑफ डूइंग बिज़नेस के रैंकिंग में भारत पिछले 2 वर्षों में 131 वें स्थान से चढ़ कर 77 वें स्थान पर पहुंच गया.
- मोदी सरकार में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में लगातार बढ़ोतरी हुई है. आंकड़े कुछ इस प्रकार हैं.
मोदी सरकार में आये प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (source- dipp)
- 2014- 36.05 billion dollar
-2015- 45.15 billion dollar
2016- 55.56 billion dollar
2017- 60.08 billion dollar
2018- 48.20 billion dollar
- 'मेक इन इंडिया' के कारण देश के ऑटोमोबिल सेक्टर, टेक्सटाइल सेक्टर और टेलीकम्युनिकेशन क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में अप्रत्याशित रूप से बढ़ोतरी हुई है. सैमसंग ने बीते साल ही नॉएडा में विश्व का सबसे बड़ा मैन्युफैक्चरिंग प्लांट खोला है तो वही चीन की कंपनी श्याओमी ने आंध्रप्रदेश को अपना गढ़ बनाया है. कंपनी ने हैदराबाद में मैन्युफैक्चरिंग प्लांट बनाया है. यहां काम करने वाले क्रमचारियों में 90 प्रतिशत महिलाओं की संख्या है जो लगभग 5000 है.
- डिफेंस सेक्टर में कई देश भारत में मेक इन इंडिया के तहत हथियारों का निर्माण कर रहे हैं. राफ़ेल विमान और F-21 इनमें महत्त्वपूर्ण है. अमेरिकी कंपनी लॉकहीड मार्टिन ने 118 F-21 फाइटर जेट का करार भारत सरकार के साथ किया है और यह डील कूल 18 बिलियन डॉलर की है.
मेक इन इंडिया की सफलता के लिए सरकार ने कई प्रयास किए लेकिन योजना का असर उस असर पर नहीं दिख रहा है जितना सरकार ने दावा किया था. सबसे बड़ा सवाल है कि जब सरकार के दौरान बड़े पैमाने एफडीआई आया तो फिर उस अनुपात में नौकरियों की संख्या क्यों नहीं बढ़ी. क्या नोटबंदी ने मेक इन इंडिया के रफ्तार को बहुत हद तक थाम दिया?
मेक इन इंडिया की सफलता का सही मूल्यांकन करने के लिए आर्थिक विशेषज्ञ थोड़ा और इंतजार करने की सलाह दे रहे हैं. नोटबंदी के बाद सुस्त पड़े बाजार में सक्रियता बढ़ने लगी है. सरकार ने इस साल कई महत्त्वपूर्ण कदम उठाये हैं जिससे आने वाले समय में मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में बड़े बदलाव की उम्मीद की जा सकती है.