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लोकसभा 2019: मोदी-शाह के लिए राजस्थान से भी बड़ी है गुजरात की चुनौती!

By प्रदीप द्विवेदी | Updated: January 12, 2019 18:59 IST

इस बार बीजेपी के लिए राह आसान नहीं दिख रही क्योंकि सियासी हालात 2009 से भी खराब हैं. इस बार भाजपा को कांग्रेस के अलावा पुराने अपनों, जो इस वक्त पीएम मोदी के विरोध में हैं, से भी मुकाबला करना है. अर्थात, इस बार मोदी टीम को दो मोर्चों पर लड़ना है.

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लोकसभा चुनाव करीब आते जा रहे हैं और इसके साथ ही भाजपा में बेचैनी इसलिए बढ़ती जा रही है कि उसके सामने 2014 में जीती हुई सीटों को बचाने की गंभीर चुनौती है, जबकि 2014 के बाद हुए राजस्थान, गुजरात, मध्यप्रदेश आदि राज्यों के विस चुनाव और उपचुनाव के सियासी संकेत अच्छे नहीं हैं.

लोकसभा चुनाव 2019 में कांग्रेस को क्या मिलता है, यह उतना महत्वपूर्ण नहीं है, जितना कि भाजपा कितना खो देती है. इन राज्यों में भाजपा के लिए 2014 से ज्यादा पाने के लिए कुछ नहीं है तो कांग्रेस के पास खोने के लिए कुछ नहीं है. 

लोस चुनाव 2014 में दो राज्य ऐसे थे, जहां से लोस की सारी सीटें भाजपा ने जीत लीं थी. राजस्थान में 25 में से 25 सीटें तो गुजरात में 26 में से 26 सीटें भाजपा ने जीत ली थीं. विस चुनाव के बाद गुजरात में भाजपा सरकार बनाने में कामयाब हो गई थी, लेकिन राजस्थान में कांग्रेस ने सरकार बनाई. बावजूद इसके, दोनों राज्यों की सियासी तस्वीर पर नजर डालें तो मोदी टीम के लिए राजस्थान से भी बड़ी गुजरात की चुनौती है.

गुजरात बीजेपी ने 2019 में होने वाले अगले आम चुनाव में 26 में से 26 लोकसभा सीट का लक्ष्य अपने लिए तय किया है, हालांकि यह आसान नहीं है. वर्ष 2009 के लोस चुनाव में बीजेपी को गुजरात में 15 सीट मिली थीं, जबकि 2014 के चुनाव में बीजेपी ने पूरी 26 सीटें जीत ली थीं. 

इस बार बीजेपी के लिए राह आसान नहीं दिख रही क्योंकि सियासी हालात 2009 से भी खराब हैं. इस बार भाजपा को कांग्रेस के अलावा पुराने अपनों, जो इस वक्त पीएम मोदी के विरोध में हैं, से भी मुकाबला करना है. अर्थात, इस बार मोदी टीम को दो मोर्चों पर लड़ना है.

सबसे बड़ा मुद्दा यह है कि 2014 में- गुजरात का गौरव नरेन्द्र मोदी, जो भावनात्मक लहर थी वह अब कमजोर पड़ चुकी है. 

यही नहीं, कम-से-कम 10 सीटें तो ऐसी हैं, जिन्हें बचाना भाजपा के लिए बेहद मुश्किल है, क्योंकि वर्तमान गुजरात सरकार तो कोई करिश्मा दिखा नहीं पाई है, पीएम मोदी भी इन पांच वर्षों में कोई चमत्कार नहीं कर पाए हैं.

हालांकि, भाजपा नेतृत्व कुछ सीटों के उम्मीदवार बदलने की सोच रहा है, किन्तु नए उम्मीदवारों को नए सियासी माहौल में कामयाबी मिलेगी, इसकी संभावना कम ही है.

पूर्व उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी तो 2014 में ही लोस चुनाव गुजरात से लड़ना नहीं चाहते थे, अब वे लड़ेंगे इसकी कोई उम्मीद नहीं है. अभिनेता से नेता बने परेश रावल तो पहले ही चुनाव नहीं लड़ने का मन बना चुके हैं. 

सियासी सोच के नजरिए से गुजरात कम-से-कम तीन भागों में बंटा है. पाटीदार बहुल क्षेत्र सौराष्ट्र में भाजपा की स्थिति कमजोर हुई है, जहां करीब आधा दर्जन सीटों पर प्रश्नचिन्ह है. इसी तरह विभिन्न राजनीतिक कारणों से पाटन, पोरबंदर जैसी सीटों पर भी सवालिया निशान है?

यदि गुजरात में पीएम मोदी टीम 2019 में 2014 नहीं दोहरा पाती है तो लोस में भाजपा के एकल बहुमत- 272 सीटें, पर तो असर पड़ेगा ही, भाजपा के भीतर भी मोदी विरोधियों को मोदी टीम को घेरने का मौका मिल जाएगा. इसीलिए माना जा रहा है कि- मोदी टीम के लिए राजस्थान से भी बड़ी है, गुजरात की चुनौती! 

टॅग्स :नरेंद्र मोदीअमित शाहराजस्थानलोकसभा चुनाव
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