पुलवामा हमले के लिए स्थानीय कश्मीरी नागरिक बना था मानव बम, अब भी खतरा बरकरार
By सुरेश एस डुग्गर | Published: February 14, 2023 11:06 AM2023-02-14T11:06:16+5:302023-02-14T11:31:00+5:30
अभी तक आत्मघाती हमलों से सांसत में फंसे हुए सुरक्षाबल उनसे निपटने के 100 प्रतिशत सफल तरीकों को खोज नहीं पाए हैं। यही हाल मानव बमों के प्रति है क्योंकि सभी को मानब बमों के हमलों के रूप में नई मुसीबत का सामना करना पड़ रहा है।
जम्मू। कश्मीर में फैले आतंकवाद के इतने सालों के बाद भी मानव बम कश्मीर में तैनात सुरक्षाबलों के लिए खतरा बने हुए हैं। यह कहने में कोई अतिश्योक्ति नहीं है कि पुलवामा हमले ने मानव बमों के इस्तेमाल को इस हालात तक पहुंचा दिया कि अभी तक इसका कोई तोड़ सुरक्षाधिकारी तलाश नहीं कर पाए हैं।
कश्मीर में मानव बमों के बारे में तो अब हर दिन नई चेतावनी दी जाने लगी है। इससे अक्सर दहशत का माहौल बनता रहता है। जबकि यह एक सच्चाई है कि जम्मू कश्मीर में सुरक्षाबल अब तक कितने मानव बमों के हमलों को सहन कर चुके हैं, यह अब किसी को याद भी नहीं।
अभी तक आत्मघाती हमलों से सांसत में फंसे हुए सुरक्षाबल उनसे निपटने के 100 प्रतिशत सफल तरीकों को खोज नहीं पाए हैं। यही हाल मानव बमों के प्रति है क्योंकि सभी को मानब बमों के हमलों के रूप में नई मुसीबत का सामना करना पड़ रहा है। कश्मीर में सर्वप्रथम दो मानव बम हमले हुए थे। पहला 2000 की 25 दिसम्बर को हुआ था जिसमें हमलावर मानव बम समेत 11 लोगों की मौत हुई थी। वहीं दूसरा 2000 में ही 19 अप्रैल को हुआ था। तब मानव बम अकेला ही मारा गया था। ताजा मानव बम हमला पुलवामा में पिछले साल 14 फरवरी को हुआ इसमें 40 सुरक्षाकर्मी मारे गए थे। इसे स्थानीय कश्मीरी ने अंजाम दिया था।
मानव बम के हमलों से कश्मीर में हमेशा दहशत का माहौल रहा है। इसके चलते कई बार सुरक्षाकर्मी आम नागरिक की जामा तलाशी लेते हुए हिचकिचाते हैं कि कहीं वह मानव बम न हो। वहीं राह चलते लोगों को एक दूसरे से ठीक इसी प्रकार का भय रहता है।
अब जबकि इन सालों में सेना के ठिकानों को उड़ाने के लिए अनेकों मानव बम हमले हो चुके हैं, भविष्य में उनके हमले की अधिक आशंका बढ़ने लगी है। क्योंकि जैश-ए-मुहम्मद गुट ऐसे मानव बमों के हमलों की झड़ी लगाने की बात करता रहा है। इससे अधिकारी भी इनकार नहीं करते हैं। क्योंकि आतंकी गुटों ने अब उन्होंने स्थानीय युवकों को भी इसके लिए तैयार करना शुरू कर दिया है।
मानव बमों से बचाव का साधन, जरीया और रास्तों की अभी तलाश जारी है। शहरों, कस्बों आदि में घूमने वाले आतंकियों में से कौन मानव बम के रूप में प्रशिक्षित होगा कहा नहीं जा सकता। मानव बमों को तलाश करने की कठिनाई इसलिए आती है क्योंकि आतंकियों द्वारा मानव बमों के लिए आरडीएक्स के स्थान पर टीएनटी विस्फोटक का इस्तेमाल किया जाने लगा है जो मेटल डिटेक्टर की पकड़ में नहीं आता है।