कभी बाघों का गढ़ रहे पलामू अभयारण्य में अब तेंदुओं का राज

By भाषा | Published: June 6, 2021 02:41 PM2021-06-06T14:41:58+5:302021-06-06T14:41:58+5:30

Leopards now rule in Palamu Sanctuary, once a stronghold of tigers | कभी बाघों का गढ़ रहे पलामू अभयारण्य में अब तेंदुओं का राज

कभी बाघों का गढ़ रहे पलामू अभयारण्य में अब तेंदुओं का राज

(नमिता तिवारी)

रांची, छह जून आजादी से पहले कभी बाघों का गढ़ रहे पलामू बाघ अभयारण्य में अब तेंदुओं का राज है। यह सुनने में थोड़ा अजीब जरूर लग सकता है लेकिन यह सच है कि कभी बाघों की अपनी आबादी के लिए गौरवान्वित रहा यह अभयारण्य अब करीब 150 तेंदुओं का पनाहगाह है।

अधिकारियों ने बताया कि इन दिनों पलामू बाघ अभयारण्य में आने वाले पर्यटक तेंदुओं को देखते हैं और उनकी तस्वीरें खींचते हैं। उन्होंने बताया कि फरवरी 2020 में बेतला राष्ट्रीय उद्यान में एक शेरनी के मृत पाए जाने के बाद से यहां कोई बाघ नहीं देखा गया।

मुख्य वन संरक्षक और पीटीआर परियोजना निदेशक वाई. के. दास ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘यहां करीब 150 तेंदुओं की आबादी है जो पलामू बाघ अभयारण्य (पीटीआर) आ रहे पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र बन गए हैं। पर्यटकों को खुश होकर अकसर तेंदुओं को छलांग लगाते हुए, उनके साथ सेल्फी लेते हुए देखा जाता है। हालांकि, हम बाघों की वापसी के लिए भी हरसंभव कोशिशें कर रहे हैं।’’

दास ने बाघों के 1130 वर्ग किलोमीटर में फैले इस स्थान को छोड़ने और पड़ोसी छत्तीसगढ़, ओडिशा आदि राज्यों में जाने के पीछे वाम चरमपंथी गतिविधियों, सुरक्षा कर्मियों की गतिविधियों, इंसानों के बढ़ते अतिक्रमण और शिकार करने के ठिकाने कम होने को मुख्य वजह बताया। उन्होंने बताया कि बाघों को वापस लाने के लिए शिकार करने के ठिकाने बहाल करने समेत अन्य कदम उठाए जा रहे हैं।

उन्होंने बताया कि आखिरी ‘ऑल इंडिया टाइगर एस्टीमेशन’ में कोई बाघ नहीं पाया गया था, लेकिन फरवरी 2020 में पीटीआर में एक शेरनी मृत पायी गयी जो यह साबित करता है कि बाघ वहां थे।

दास ने कहा, ‘‘हम बाघों की वापसी के लिए पीटीआर की पारिस्थितिकी को संरक्षित करने तथा उसके शिकार करने के ठिकानों को सुधारने के लिए स्थान परिवर्तन की परियोजना पर काम कर रहे हैं। हम लातू और कुजरुम गांवों के लोगों को पीटीआर के बाहर बसाएंगे। इस परियोजना में 300 वर्ग किलोमीटर इलाके की आवश्यकता है। हम इन दो गांवों के 22 परिवार को कहीं और बसाएंगे और वे इस पर राजी हो गए हैं।’’

पलामू को 1973-74 में संरक्षित वन अभयारण्य घोषित किया गया था जब प्रोजेक्ट टाइगर शुरू किया गया था। इसका मकसद देश की बाघ आबादी का संरक्षण करने में मदद के लिए बाघों के रहने के अनुकूल स्थानों की कमी से निपटना और उन्हें हुए नुकसान को सुधारना था।

इस अभयारण्य में 1995 में सबसे अधिक 71 बाघ थे लेकिन तब से उनकी आबादी कम होती गयी और 2014 में महज तीन बाघ थे लेकिन अभी यहां एक भी बाघ नहीं है।

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Web Title: Leopards now rule in Palamu Sanctuary, once a stronghold of tigers

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