लोकसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद लालू परिवार में घमासान, तेजस्वी यादव पर उठे सवाल

By एस पी सिन्हा | Published: May 27, 2019 04:52 AM2019-05-27T04:52:45+5:302019-05-27T04:52:45+5:30

पूरे बिहार में मोदी लहर में महागठबंधन के जो उद्देश्य थे वह बिखर गए. बिहार की 40 सीटों में से 39 सीटें जीत कर एनडीए ने अब तक की सबसे बडी जीत हासिल की. हालांकि कांग्रेस ने किशनगंज सीट जीत कर महागठबंधन को सूपड़ा साफ होने से बचा लिया.

Lalu family feared after losing results in Lok Sabha polls, tejaswi yadav, congress, RJD | लोकसभा चुनाव में मिली करारी हार के बाद लालू परिवार में घमासान, तेजस्वी यादव पर उठे सवाल

लालू प्रसाद यादव के छोटे बेटे तेजस्वी यादव पर बड़ी जिम्मेदारी थी कि वह पार्टी को आगे लेकर जाएं

Highlightsराजद लालू प्रसाद यादव चारा घोटाले में रांची जेल में बंद हैं. यह पहला लोकसभा चुनाव है जो लालू प्रसाद यादव की अनुपस्थिति में लड़ा गया.

लोकसभा चुनाव में चारो खाने चित हुई राजद के अंदर खाने में घमाशान की स्थिती बनती जा रही है. इन नतीजों ने न सिर्फ राजद नेता तेजस्वी यादव के नेतृत्व क्षमता पर सवाल खड़े किए हैं बल्कि लालू परिवार के बीच जारी खींचतान के बीच विरासत के लिए घमासान की नौबत आ गई है. शायद यही कारण है कि जेल में बंद राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव की भी बेचैनी भी बढ़ गई है.

राजद लालू प्रसाद यादव चारा घोटाले में रांची जेल में बंद हैं. यह पहला लोकसभा चुनाव है जो लालू प्रसाद यादव की अनुपस्थिति में लड़ा गया. ऐसे में लालू प्रसाद यादव के छोटे बेटे तेजस्वी यादव पर बड़ी जिम्मेदारी थी कि वह पार्टी को आगे लेकर जाएं, लेकिन मिसमैनेजमेंट और गलत उम्मीदवारों के चयन के कारण तेजस्वी ने पार्टी की लुटिया डुबो दी.

 तेजस्वी यादव अपनी जिम्मेदारी पर खरे नहीं उतरे. ऐसे में एक बार फिर से लालू प्रसाद यादव के परिवार में उत्तराधिकारी को लेकर घमासान छिड़ सकता है. जानकारों के अनुसार इस लोकसभा चुनाव में तेजस्वी यादव का बड़बोलापन और गलत लोगों के मार्गदर्शन ने पार्टी का बेडा गर्क कर दिया. 

कारण कि बिहार में महागठबंधन का नेतृत्व राजद नेता तेजस्वी यादव कर रहे थे, लेकिन वह अपनी पार्टी के एक भी उम्मीदवार को चुनाव नहीं जितवा पाए. जाहिर है वह जितना दावा करते थे नतीजे इसके उलट आ गए. इस तरह राजद के लिए यह चुनाव बुरे सपने की तरह रहा. सूबे में राजद ने जिस जातिगत समीकरण को साधने के लिए महागठबंधन बनाया था, उस महागठबंधन की बिहार में एक न चली. 

पूरे बिहार में मोदी लहर में महागठबंधन के जो उद्देश्य थे वह बिखर गए. बिहार की 40 सीटों में से 39 सीटें जीत कर एनडीए ने अब तक की सबसे बडी जीत हासिल की. हालांकि कांग्रेस ने किशनगंज सीट जीत कर महागठबंधन को सूपड़ा साफ होने से बचा लिया.

राजनीतिक जानकारों की मानें तो यह साफ है कि तेजस्वी यादव ने पूरे लोकसभा चुनाव कैम्पेन को सेल्फ सेंटर्ड कर लिया था. इससे उनके परिवार में भी काफी खींचतान दिखी. 

हालांकि कुछ समय के लिए यह थम जरूर गया था, लेकिन आने वाले समय में अंदरखाने लगी आग सतह पर भी दिख सकती है. वहीं, राजद के एक दिग्गज नेता ने नाम नही छापने के शर्त पर कहा कि हम लोग लालू प्रसाद यादव के सिपाही हैं और रहेंगे. लेकिन, जुम्मा-जुम्मा चार दिन जिसको पार्टी में आए हुए हुआ है वह व्यक्ति पार्टी को लेकर बड़ा फैसला ले रहा है. जिस पार्टी की औकात एक सीट नहीं देने की थी उसको चार-चार सीट दे दी गई.

 सालों से पार्टी के लिए खून-पसीना बहाने वाले हमारे जैसे सैकड़ो कार्यकर्ताओं को नजरअंदाज कर हेलीकॉप्टर से उम्मीदवार उतार दिया. पार्टी के कई वरिष्ठ नेताओं की राय को भी दरकिनार कर दिया गया. अब समय आ गया है कि हमारे जैसे कई लोग लालू जी से मिलकर उस नेता के बारे में शिकायत करेंगे. 

यहां बता दें कि बिहार में 15 सालों तक राज करने वाली राजद इस लोकसभा चुनाव में एक सीट के लिए तरस गई. बिहार में एनडीए की ऐसी आंधी चली कि महागठबंधन का पूरा कुनबा ही उड़ गया. 1997 में राजद का गठन हुआ था, जब जनता दल से अलग होकर राष्ट्रीय जनता दल बना था. 

लालू प्रसाद यादव ने इस पार्टी को 15 सालों तक बिहार की सत्ता के शीर्ष पर रखा, लेकिन अपने गठन के बाद पहली बार राजद अपने सबसे खराब दौर से गुजर रही है. पार्टी के गठन के बाद पहली बार ऐसा समय आया है, जब राजद लोकसभा की एक भी सीट नहीं जीत पाई.

 इससे पहले लालू यादव के बडे बेटे तेज प्रताप यादव ने शिवहर और जहानाबाद सीट पर भी अपने उम्मीदवार अंगेश कुमार और चंद्रप्रकाश को टिकट दिलाने के लिए तेजस्वी यादव को कहा तो वह नहीं माने. अब नतीजा सबके सामने है और इन दोनों ही सीटों पर राजद के प्रत्याशियों की हार हो गई है.

वहीं, चुनाव प्रचार के दौरान भी तेज प्रताप काफी नाराज नजर आ रहे थे. उन्हें तेजस्वी के साथ प्रचार के लिए हेलीकॉप्टर में जगह नहीं मिली थी. इसको लेकर कई बार उन्होंने निशाना भी साधा. तेजस्वी की सलाहकार समिति पर हमला भी बोला. 

राजद के कई वरिष्ठ नेताओं के खिलाफ तो तेज प्रताप ने झंडा बुलंद कर लिया था. ऐसे में जानकारों का मानना है कि लोकसभा चुनाव के नतीजों के बाद तेज प्रताप को रोकना मुश्किल हो सकता है. पार्टी के साथ-साथ परिवार के खिलाफ भी वो मुखर हो सकते हैं. इससे लालू परिवार पर समस्याओं का बोझ और भी बढ़ सकता है. 

राजद के नहीं होने से परिवार पहले से ही परेशानी झेल रही है. अब, नई मुसीबतों का सामना करना लालू परिवार के लिए कठिन हो सकता है. उधर, खबरें आ रही हैं कि लालू यादव भी काफी परेशान नजर आ रहे हैं. चुनाव नतीजों के बाद खाना-पीना समय से नहीं लेने से तबीयत ज्यादा बिगड़ने का डर है. 

लालू का इलाज कर रहे डॉक्टर उमेश प्रसाद ने बताया है कि पिछले 2 दिनों से लालू यादव चिंतित देखे जा रहे हैं, जिस कारण उनके खाने-पीने की दिनचर्या भी बदल गई है. एक बार सुबह में नाश्ता करने के बाद फिर सीधे रात में ही खाना खाते हैं, जिस वजह से हम लोगों को दवाइयां देने में भी काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है.

इसबीच कांग्रेस नेता और पूर्व मंत्री रविंद्र मिश्रा ने कहा है कि बिहार में महागठबंधन ने तेजस्वी यादव के नेतृत्व में चुनाव लड़ा. उन्होंने कहा कि तेजस्वी यादव के नेतृत्व में महागठबंधन का प्रदर्शन चिंताजनक रहा है और ऐसे में नैतिक जिम्मेदारी तेजस्वी यादव की बनती है. 

राज्य, दल और गठबंधन के हित में उन्हें इस्तीफा देना चाहिए और पार्टी की कमान किसी और को सौंपना चाहिए.

वहीं, जदयू ने भी कहा है कि राहुल गाधी-ममता बनर्जी की तर्ज पर तेजस्वी यादव को इस्तीफा देना चाहिए. राजद का इतना खराब प्रदर्शन तेजस्वी यादव के नेतृत्व में हुआ है इसलिए उन्हें हटाकर तेजप्रताप को कमान मिलनी चाहिए. 

तेजप्रताप ने पार्टी के बुरे हालातों के लिए लगातार चेतावनी दी थी. हालांकि राजद के वरिष्ठ नेता शिवानंद तिवारी ने कहा है कि ये हमारी पार्टी का मामला है. किसको नेता रखना है ये हम तय करेंगे. उन्होंने कहा है कि अभी हमारी पार्टी की बैठक नहीं हुई है. बैठक में सभी मुद्दों पर बात की जाएगी.

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