लखीमपुर हिंसा : पूर्व न्यायाधीश की निगरानी में एसआईटी जांच कराने के सुझाव पर उप्र सरकार सहमत

By भाषा | Updated: November 15, 2021 18:59 IST2021-11-15T18:59:55+5:302021-11-15T18:59:55+5:30

Lakhimpur violence: UP government agrees on the suggestion of conducting SIT investigation under the supervision of former judge | लखीमपुर हिंसा : पूर्व न्यायाधीश की निगरानी में एसआईटी जांच कराने के सुझाव पर उप्र सरकार सहमत

लखीमपुर हिंसा : पूर्व न्यायाधीश की निगरानी में एसआईटी जांच कराने के सुझाव पर उप्र सरकार सहमत

नयी दिल्ली, 15 नवंबर उत्तर प्रदेश सरकार ने लखीमपुर खीरी हिंसा मामले में प्रतिदिन के आधार पर राज्य की एसआईटी जांच की निगरानी उच्चतम न्यायालय की पसंद से नियुक्त एक पूर्व न्यायाधीश से कराने के उसके सुझाव पर सोमवार को सहमति जताई।

शीर्ष अदालत लखीमपुर खीरी में तीन अक्टूबर को हुई इस हिंसा की घटना की सुनवाई कर रहा है। इस घटना में आंदोलनकारी किसानों पर एक एसयूवी वाहन ने चार किसानों को कुचल दिया था। इस घटना से आक्रोषित भीड़ ने भाजपा के दो कार्यकर्ताओं और एक वाहन चालक की पीट पीट कर हत्या कर दी थी। इस घटना में एक पत्रकार भी मारा गया था।

न्यायालय ने राज्य की सहमति का संज्ञान लेते हुए एसआईटी जांच में निम्न रैंक के पुलिस अधिकारियों के शामिल होने के मुद्दे को उठाया और उत्तर प्रदेश काडर के भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) के उन अधिकारियों के नाम भी मांगे जो राज्य के मूल निवासी नहीं हैं ताकि उन्हें जांच टीम में शामिल किया जा सके।

प्रधान न्यायाधीश एन वी रमण, न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ ने कहा, ‘‘दूसरी चिंता कार्य बल (एसआईटी) के बारे में है। इस कार्य बल के पुलिस अधिकारी कुछ अधिक उच्चतर ग्रेड के अधिकारी हों और लखीमपुर इलाके के नहीं हों...ज्यादातर सदस्य एस आई (उप निरीक्षक) हैं। ’’

पीठ ने कहा, ‘‘आप कुछ आईपीएस अधिकारियों के नाम क्यों नहीं देते। हमारा मतलब सीधी भर्ती किये गये आईपीएस अधिकारियों से है जो उप्र काडर से हैं, लेकिन उत्तर प्रदेश राज्य से नहीं है। कल शाम तक नाम दीजिए। ’’

न्यायालय ने कहा कि उसे पूर्व न्यायाधीश के नाम पर फैसला करने के लिए एक दिन का वक्त चाहिए होगा और वह उच्चतम न्यायालय या उच्च न्यायाय के न्यायाधीश हो सकते हैं तथा उनकी सहमति लेनी होगी।

पीठ ने कहा, ‘‘हमें और एक दिन का वक्त चाहिए क्योंकि हमें न्यायाधीश से बात करनी होगी...हम इसे फिर बुधवार को सूचीबद्ध करेंगे और यह कार्य करने को इच्छुक न्यायाधीश का पता लगाएंगे।’’

वहीं, राज्य सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने इससे सहमति व्यक्त की। उन्होंने कहा कि राज्य को जांच की निगरानी के लिए अपनी पसंद के किसी पूर्व न्यायाधीश को नियुक्त करने से कोई आपत्ति नहीं है लेकिन वह उत्तर प्रदेश का मूल निवासी नहीं होना चाहिए यह बात मन में नहीं होनी चाहिए क्योंकि संबंधित व्यक्ति एक प्रासंगिक कारक है।

साल्वे ने कहा, ‘‘जो कोई भी आपको उपयुक्त लगे, नियुक्त करें...राज्य के अंदर या बाहर से नहीं। ऐसा नहीं है कि राज्य के रहने वाले न्यायाधीश को नियुक्त नहीं किया जा सकता। व्यक्ति महत्वपूर्ण होता है ना कि राज्य।’’

शीर्ष अदालत ने उत्तर प्रदेश सरकार को राज्य एसआईटी जांच की निगरानी के लिए अलग उच्च न्यायालय के किसी पूर्व न्यायाधीश की नियुक्ति के सुझाव पर अपने रुख से अवगत कराने के लिए 15 नवंबर तक का समय दिया था।

उच्चतम न्यायालय ने आठ नवंबर को जांच पर असंतोष व्यक्त करते हुए सुझाव दिया था कि जांच में "स्वतंत्रत और निष्पक्षता" लाने के लिए, दूसरे उच्च न्यायालय" के एक पूर्व न्यायाधीश को दिन-प्रतिदिन आधार पर इसकी निगरानी करनी चाहिए।

पीठ ने यह भी कहा था कि उसे भरोसा नहीं है और वह नहीं चाहती कि राज्य द्वारा नियुक्त एक सदस्यीय न्यायिक आयोग मामले की जांच जारी रखे।

लखीमपुर खीरी जिले में तिकोनिया-बनबीरपुर मार्ग पर हुई हिंसा की जांच के लिए राज्य सरकार ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश प्रदीप कुमार श्रीवास्तव को नामित किया था।

शीर्ष अदालत ने 8 नवंबर को जांच पर असंतोष व्यक्त करते हुए इस जांच में ''स्वतंत्रता और निष्पक्षता'' को बढ़ावा देने के लिए, एक ''अलग उच्च न्यायालय'' के एक पूर्व न्यायाधीश को दैनिक आधार पर इसकी निगरानी कराने का सुझाव दिया था।रनी चाहिए।

न्यायालय ने इस जांच पर असंतोष व्यक्त करते हुए कहा था, ‘‘पहली नजर में ऐसा लगता है कि एक आरोपी विशेष (किसानों को कुचले जाने के मामले में) को किसानों की भीड़ द्वारा राजनीतिक कार्यकर्ताओं की पिटाई संबंधी दूसरे मामले में गवाहों से साक्ष्य हासिल करने के नाम पर लाभ देने का प्रयास हो रहा है।’’

शीर्ष अदालत ने गिरफ्तार किए गए 13 आरोपियों में से एक आशीष मिश्रा का मोबाइल फोन जब्त करने इस मामले में विशेष जांच दल की काफी आलोचना की थी। इस मामले में जब्त किए गए बाकी फोन किसानों को कथित रूप से कुचले जाने की घटना के गवाहों के थे।

न्यायालय ने कहा था, "हम दैनिक आधार पर जांच की निगरानी के लिए एक भिन्न उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश को नियुक्त करने के पक्ष में हैं और फिर देखते हैं कि अलग-अलग आरोप पत्र कैसे तैयार किए जाते हैं।"

पीठ ने सुनवाई के दौरान ही पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के दो पूर्व न्यायाधीशों- न्यायमूर्ति रंजीत सिंह और न्यायमूर्ति राकेश कुमार जैन के नामों का सुझाव दिया था। पीठ का कहना था कि दोनों न्यायाधीश आपराधिक कानून के क्षेत्र में अनुभवी हैं और मामलों में आरोपपत्र दाखिल होने तक एसआईटी की जांच की निगरानी करेंगे।

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Web Title: Lakhimpur violence: UP government agrees on the suggestion of conducting SIT investigation under the supervision of former judge

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