लेबर डे २०२०: 1923 में भारत में हुई मजदूर दिवस की शुरुआत, कम्युनिस्ट नेता सिंगारावेलु ने पहली बार लहराया लाल झंडा
By निखिल वर्मा | Published: April 28, 2020 12:53 PM2020-04-28T12:53:27+5:302020-05-01T09:01:53+5:30
labour day 2020: एक मई को लेबर डे, मई दिवस, श्रमिक दिवस और मजदूर दिवस भी कहा जाता है. ये दिन मेहनतकश मजदूरों को समर्पित है. भारत में इस दिन राष्ट्रीय अवकाश होता है.
एक मई को दुनिया के कई देशों में अंतरराष्ट्रीय श्रमिक दिवस (International Labour Day 2019) मनाया जाता है। मजदूर दिवस या लेबर डे मनाने की शुरुआत साल 1886 में संयुक्त राज्य अमेरिका से शुरू हुई थी। मजदूर दिवस पर दुनिया के 80 से अधिक देशों में राष्ट्रीय अवकाश (नेशनल हॉलिडे) होता है, इसमें भारत भी शामिल हैं। इस दिन को मजूदरों के सम्मान, उनकी एकता और उनके हक के समर्थन में मनाया जाता है।
भारत में मद्रास में पहली बार मना मजदूर दिवस
भारत में मजदूर दिवस की शुरुआत चेन्नई में 1 मई 1923 में हुई थी। लेबर किसान पार्टी ऑफ हिन्दुस्तान के नेता और कामरेड सिंगारावेलु चेट्यार के नेतृत्व में मद्रास में पहली बार मजूदर दिवस मनाया गया। चेट्यार के नेतृत्व में मद्रास हाईकोर्ट सामने बड़ा प्रदर्शन किया गया और इस दिन को पूरे भारत में “मजदूर दिवस” के रूप में मनाने का संकल्प लिया। साथ ही छुट्टी का ऐलान किया था।
1920 के दशक में भारत कई राजनीतिक घटनाओं का साक्षी बना है। एक ओर देश में कांग्रेस और महात्मा गांधी के नेतृत्व में असहयोग आंदोलन हुआ वहीं देश में पहली बार कम्युनिस्ट आंदोलन की शुरुआत भी हुई। इंडियन एक्सप्रेस में छपी खबर के अनुसार, 1 मई 1923 को ही उस कम्युनिस्ट नेता सिंगारावेलु चेट्यार के नेतृत्व में पहली बार चेन्नई में लाल झंडा फहराया है। यह भारत के इतिहास में पहली बार था कि लाल झंडा फहराया गया था।
भारत में कम्युनिस्ट आंदोलन ने राष्ट्रवादी आंदोलन के बीच जन्म लिया था और वास्तव में इसके साथ गहराई से जुड़ा था। सिंगारावेलु कम्युनिस्ट आंदोलन का हिस्सा बनने से पहले एक कट्टर गांधीवादी थे। 1 मई जब उन्होंने पहली बार लाल झंडा उठाया तो उन्होंने अपनी पार्टी द लेबर किसान पार्टी ऑफ हिंदुस्तान की भी स्थापना की। देश को मजदूर दिवस की अवधारणा से परिचित कराते हुए सिंगारावेलु ने चेन्नई में दो बैठकों की अध्यक्षता की। एक समुद्र तट पर और दूसरा मद्रास उच्च न्यायालय में। अपनी पार्टी के महत्व और सामान्य रूप से श्रमिक आंदोलन के बारे में बताते हुए सिंगारावेलु ने 1 मई को छुट्टी घोषित करने का आह्वान किया था।
बैठक में अध्यक्ष के रूप में सिंगारावेलु ने पार्टी के अहिंसक सिद्धांतों को समझाया। वित्तीय सहायता के लिए अनुरोध किया। उन्होंने इस बात पर जोर दिया गया कि दुनिया के श्रमिकों को स्वतंत्रता प्राप्त करने के लिए एकजुट होना चाहिए। इस घटना को उस समय 'द हिन्दू' ने भी रिपोर्ट किया था। सिंगारावेलु ने यह भी घोषणा की कि उनकी पार्टी कांग्रेस के मजदूर और किसान ईकाई के साथ मिलकर काम करेगी। हालांकि उनकी पार्टी अगले दो वर्षों में खत्म हो गई लेकिन भारत में मजदूर दिवस मनाने का प्रचलन जारी है।
जानें मजदूर दिवस मनाने की शुरुआत कैसे हुई
मजदूर दिवस की शुरुआत एक मई 1886 को संयुक्त राज्य अमेरिका में मजूदरों के आंदोलन से हुई थी। अमेरिका में लाखों मजदूर काम के 8 घंटे निर्धारित करने के लिए की मांग को लेकर हड़ताल पर चले गए थे। इस दिन लाखों अमेरिकी मजदूर शोषण के खिलाफ सड़कों पर उतर आए।
इस दौरान हेमाकेर्ट में हड़ताली मजूदरों पर पुलिस ने गोली चला दी थी जिसमें कई श्रमिकों की मौत हो गई और 100 से ज्यादा लोग घायल हो गए। इसके बाद फ्रांस की राजधानी पेरिस में 1889 में अंतरराष्ट्रीय समाजवादी सम्मेलन की बैठक में एक प्रस्ताव पारित किया गया जिसमें यह ऐलान किया गया कि 1 मई को अंतर्राष्ट्रीय मजदूर दिवस के रूप में मनाया जाएगा। साथ ही इस दिन सभी कामगारों और श्रमिकों का अवकाश रहेगा।