‘क्राल कूर’ कश्मीर में पुरानी परंपरा के मिट्टी के बर्तनों को पुनजीर्वित करने का प्रयास कर रहीं

By भाषा | Updated: February 7, 2021 19:18 IST2021-02-07T19:18:00+5:302021-02-07T19:18:00+5:30

'Kral Kur' is trying to revive the old tradition pottery in Kashmir | ‘क्राल कूर’ कश्मीर में पुरानी परंपरा के मिट्टी के बर्तनों को पुनजीर्वित करने का प्रयास कर रहीं

‘क्राल कूर’ कश्मीर में पुरानी परंपरा के मिट्टी के बर्तनों को पुनजीर्वित करने का प्रयास कर रहीं

(सुमीर कौल)

श्रीनगर, सात फरवरी जम्मू-कश्मीर के लोक निर्माण विभाग में सिविल इंजीनियर के तौर पर कार्यरत साइमा शफी मिट्टी के बर्तन बनाने के लिए घाटी में और ऑनलाइन दुनिया में ‘क्राल कूर’ यानी ‘कुम्हार लड़की’ के रूप में जानी जाती हैं। वह कश्मीर के आधुनिक रसोई घरों में सदियों पुरानी परंपरा को जीवित करने के काम में जुटी हुई हैं।

वह बताती हैं कि मिट्टी के बर्तन बनाने की उनकी यात्रा अवसाद को दूर करने के एक जरिए के रूप में शुरू हुई। इसके लिए 32 वर्षीय शफी चीन के दार्शनिक लाओ त्सु के उद्धरण को याद करती हैं, ‘‘ हम मिट्टी को एक आकार देते हैं लेकिन उसके भीतर का जो खालीपन है, वही उसे वह रूप देता है, जो हम बनाना चाहते हैं।’’

शफी ने कहा, ‘‘मैंने अपने अवसाद को वहीं रखने के बारे में सोच लिया।’’

मिट्टी से शफी को बचपन से ही लगाव रहा है। वह कहती हैं, ‘ ‘मैं दरअसल कुछ अलग करना चाहती थी और बचपन से ही मिट्टी से बने खिलौनों में मेरी दिलचस्पी थी, इसलिए मैंने कुम्हार बनने का निर्णय लिया।’’

वह फिलहाल दक्षिणी कश्मीर के एक गांव में कार्यरत हैं।

वह बताती हैं कि उन्होंने जब इस यात्रा की शुरुआत की तो काफी कठिनाइयों का सामना भी करना पड़ा।

उन्होंने कहा, ‘‘मैंने महसूस किया कि इसके लिए आर्थिक रूप से मजबूत होना होगा ताकि इसके लिए जरूरी आधुनिक उपकरणों को मंगवाया जा सके। इसके लिए एक बिजली की चाक और एक गैस भट्ठी की जरूरत थी, जिससे उसके मिट्टी के बर्तनों को पकाने का काम हो सके। लेकिन ये सामान घाटी में उपलब्ध नहीं थे।’’

वह ऐसे सामनों को मंगवाने के लिए ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म पर पूरी तरह से निर्भर थीं। वह भी ऐसे समय में जब कश्मीर घाटी में इंटरनेट 2जी की स्पीड से काम कर रहा था।

वह बताती हैं कि इसके अलावा एक और बड़ी दिक्कत थी। टेराकोट से बनने वाले बर्तनों का इस्तेमाल माइक्रोवेव में नहीं किया जा सकता है जबकि कश्मीर में इसकी उपलब्धता थी। वहीं हरियाणा में स्टोनवेयर मिट्टी (एक खास तरह की मिट्टी जिसे बेहद ऊंचे तापमान पर पकाया जाता है) से बर्तनों को बनाया जाता है, जिसका इस्तेमाल माइक्रोवेव में किया जा सकता है।

घाटी में मिट्टी के बर्तनों के निर्माण को सिखाने वाले लोग भी कम हैं इसलिए उन्होंने बेंगलुरु का रुख किया।

शफी अपनी ड्यूटी खत्म करने और सप्ताह में छुट्टियों वाले दिन घाटी के उन हिस्सों में जाती हैं, जो कुछ दशक पहले तक मिट्टी के बर्तनों के निर्माण के लिए प्रसिद्ध थे। इंजीनियर और कुम्हार के रूप में लोग उनकी पहचान जानकर ताज्जुब करते हैं।

वह कहती हैं, ‘‘इतने वर्षों से वे हमेशा खुद को कमतर देखते रहे लेकिन जब वह पाते हैं कि एक पढ़ी-लिखी लड़की इस काम में जुटी है तो उन्हें अपनी कुशलता को लेकर एक उम्मीद मिलती है और धीरे-धीरे ही सही उन्हें उनके हिस्से का सम्मान मिल रहा है।

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Web Title: 'Kral Kur' is trying to revive the old tradition pottery in Kashmir

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