पुण्यतिथिः सुरेंद्रनाथ बनर्जी के आगे अंग्रेजों ने इस वजह से टेक दिए थे घुटने, जानिए क्या था स्वाधीनता में उनका रोल?
By रामदीप मिश्रा | Published: August 6, 2018 07:45 AM2018-08-06T07:45:57+5:302018-08-06T07:45:57+5:30
सुरेन्द्रनाथ बनर्जी का जन्म 10 अगस्त 1848 को कलकत्ता में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। वे अपने पिता दुर्गा चरण बनर्जी के उदार व प्रगतिशील विचारों से बहुत प्रभावित थे।
नई दिल्ली, 06 अगस्तः भारत को आजाद कराने में सैकड़ों महापुरुषों ने अथक परिश्रम किया और देश को गुलामी की जंजीरों से आजाद कराया। ऐसे ही अंग्रेजों के खिलाफ स्वाधीनता की आवाज उठाने वालों की पहली कतार में सुरेन्द्रनाथ बनर्जी खड़े थे, जिनकी आज पुण्यतिथि है। उन्होंने 'इंडियन नेशनल एसोसिएशन' की स्थापना की जो भारत के प्रारंभिक राजनैतिक संगठनों में एक था। आगे जाकर वे भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस के वरिष्ठ नेता बने।
10 अगस्त को हुआ था उनका जन्म
सुरेन्द्रनाथ बनर्जी का जन्म 10 अगस्त 1848 को कलकत्ता में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। वे अपने पिता दुर्गा चरण बनर्जी के उदार व प्रगतिशील विचारों से बहुत प्रभावित थे। उनकी प्रारंभिक शिक्षा परिवार के पैत्रिक शिक्षा संस्थान 'हिन्दू कॉलेज' में हुई। कलकत्ता विश्वविद्यालय से स्नातक करने के बाद सन 1868 में वे भारतीय सिविल सेवा परीक्षा में बैठने के लिए इंग्लैंड चले गए। उन्हें 1869 में प्रतिस्पर्धात्मक परीक्षा की मंजूरी मिल गई थी, लेकिन उनकी सही उम्र पर विवाद के कारण रोक लगा दी गई। अदालत में इस मामले पर फैसले के बाद बैनर्जी को फिर से इस परीक्षा में 1871 में मंजूरी मिली और वे सिलहट में सहायक मजिस्ट्रेट के रूप में पदस्थापित किए गए।
'राष्ट्रगुरु' के उपनाम से बुलाए गए
सुरेन्द्रनाथ बनर्जी कांग्रेस के उन नरमपंथी नेताओं में शामिल थे, जिन्होंने ब्रिटिश शासन का सदैव विरोध किया और देशवासियों के हितों को आगे बढ़ाया। उन्हें 'राष्ट्रगुरु' के उपनाम से लोग बुलाते थे। बताया जाता है कि बनर्जी ने हमेशा देशवासियों के हितों के लिए अंग्रेजी हुकुमत पर दबाव डाला और कानून में बदलाव के लिए आवाज उठाई। सबसे पहले उन्होंने सन 1875 में मेट्रोपोलिटन इंस्टीट्युशन, फ्री चर्च इंस्टीट्युशन और रिपन कॉलेज में अंग्रेजी के प्रोफेसर के तौर पर कार्य किया। इसके बाद 26 जुलाई 1876 को उन्होंने आनंद मोहन बोस के साथ मिलकर 'इंडियन नेशनल एसोसिएशन' की स्थापना की।
दो बार रहे कांग्रेस के अध्यक्ष
बताया जाता है कि इंडियन नेशनल एसोसिएशन भारत के सबसे शुरुआती राजनैतिक संगठनों में एक था। उन्होंने इस संगठन के माध्यम से 'भारतीय सिविल सेवा' में भारतीय उम्मीदवारों के आयु सीमा के मुद्दे को उठाया था। उन्होंने देश भर में अपने भाषणों के माध्यम से ब्रिटिश अधिकारियों द्वारा नस्ल-भेद की नीति की घोर निंदा की और धीरे-धीरे पूरे देश में प्रसिद्द हो गए। सन 1879 में उन्होंने 'द बंगाली' समाचार पत्र की स्थापना की। इसके बाद 1885 में सुरेन्द्रनाथ बनर्जी ने अपनी पार्टी का विलय भारतीय राष्ट्रिय कांग्रेस के साथ कर लिया और वे दो बार कांग्रेस के अध्यक्ष रहे।
बंगाल विभाजन का किया विरोध
कहा जाता है कि सुरेन्द्रनाथ बनर्जी ने बंगाल विभाजन का पुरजोर विरोध किया था। उन्होंने आगे बढ़कर आन्दोलन में भाग लिया और जमकर विरोध प्रदर्शन किए। उनके विरोध के चलते अंग्रेजी हुकूमत ने उनके आगे घुटने टेक दिए और बंगाल विभाजन के फैसले को सन 1912 में वापस ले लिया। वे गोपाल कृष्ण गोखले और सरोजिनी नायडू जैसे उभरते नेताओं के संरक्षक भी बने। वे स्वदेशी आन्दोलन के बहुत बड़े प्रचारक और प्रवर्तक थे। उन्होंने लोगों से विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार और स्वदेशी अपनाने का आग्रह किया।
राष्ट्रवाद विकसित करने में निभाया अहम रोल
कई लोगों का मानना है कि भारत में राष्ट्रवाद विकसित करने में बनर्जी की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। उन्होंने देश के शासन में अधिक हिस्सा दिये जाने के लिए कई दशकों तक संघर्ष किया, लेकिन बदलते समय के साथ राष्ट्रिय आन्दोलन स्वाधीनता की मांग में बदल गया जो सुरेन्द्रनाथ की कल्पना से परे था। उनका निधन साल 1923 के चुनाव में स्वराज पार्टी के बिधान चन्द्र रॉय से हारने के बाद 6 अगस्त, 1925 को गया था।
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