झारखंडः जानिए-क्या है पत्थलगढ़ी, जिसकी वजह से पुलिस ने भांजी आदिवासियों पर लाठियां

By लोकमत समाचार हिंदी ब्यूरो | Updated: June 27, 2018 15:51 IST2018-06-27T15:49:36+5:302018-06-27T15:51:32+5:30

एक साधारण मान्यता के मुताबिक, पत्थलगढ़ी झारखंड के आदिवासियों का एक वह रिवाज है, जिसमें वे क्षेत्र को चिंहित कर अपने अधिकारों की मांग करते हैं।

know about patthalgari tradition of jharkhand | झारखंडः जानिए-क्या है पत्थलगढ़ी, जिसकी वजह से पुलिस ने भांजी आदिवासियों पर लाठियां

झारखंडः जानिए-क्या है पत्थलगढ़ी, जिसकी वजह से पुलिस ने भांजी आदिवासियों पर लाठियां

रांची 27 जून: हाल ही में झारखंड की राजधानी रांची से अस्सी किलोमीटर दूर खूंटी जिले के कोचांग गांव में कुछ ऐसा हुआ जिससे वहां का आदिवासी समुदाय एक बार फिर चर्चा में आ गया। यहां एक स्कूल में लगभग 100 गांवों के आदिवासी इकट्ठा हुए थे, जिसकी वजह 'पत्थलगढ़ी' थी। यहां परंपरा के अनुसार, पत्थलगढ़ी पर होने वाले कार्यक्रम के दौरान पुलिस ने मंगलवार (26 जून) को लाठी चार्ज कर दिया था।  

दरअसल, मामला ऐसा है कि एक साधारण मान्यता के मुताबिक, पत्थलगढ़ी झारखंड के आदिवासियों का एक वह रिवाज है, जिसमें वे क्षेत्र को चिंहित कर अपने अधिकारों की मांग करते हैं। इस क्षेत्र में बाहरी लोगों के प्रवेश पर एक तरह की चेतावनी है कि उनके लिए प्रदेश या केंद्र सरकार नहीं बल्कि सबसे बड़ी 'ग्राम सभा' है। 

ऐसा भी माना जाता है इसका क्षेत्र या सीमा निर्धारित करने और अधिकारों की मांग करने से संबंध जरूर था, लेकिन बाहरियों के आने–जाने पर चेतावनी से कोई लेना-देना नहीं था। यह मरे हुए लोगों की कब्र पर 'यू' के आकार का पत्थर लगाकर उस पर उनका नाम लिखवाया जाता था। इसके अलावा और कुछ नहीं था।

इस आधार पर पत्थलगढ़ी रिवाज में अपने हित के अनुसार बदलाव करना राज्य के 26 प्रतिशत आदिवासियों का राजनैतिक हित है, लेकिन सरकार का आदिवासियों पर लाठीचार्ज का कारण अभी तक साफ नहीं हो सका है, जिसके लिए प्रशासन को सीधे तौर पर कठघरे में खड़ा किया जा रहा है। लेकिन, इस मामले में खूंटी के पुलिस अधीक्षक का कहना है कि उन्होंने तब तक कोई कार्रवाही नहीं की जब तक पत्थलगढ़ी आड़ में कुछ अप्रिय नहीं हुआ। हालांकि उन्होंने यह कारण भी स्पष्ट नहीं किया है कि किस वजह से लाठी चार्ज किया गया है। 

गौर करने वाली बात यह है कि ऐसे मौकों पर प्रशासन और आदिवासी समुदाय दोनों के लिए ही स्थिति गंभीर हो जाती है। इस तरह के हालातों में सरकार के लिए यह पहचानना बेहद जरूरी होता है कि परंपरा के आड़ में कहीं आदिवासी समुदाय के अस्तित्व को नुकसान तो नहीं पहुंच रहा है? ऐसी परम्पराएं आदिवासी समाज का अटूट हिस्सा हैं इसलिए इनका बने रहना और होते रहना बहुत जरूरी है। 
(विभव देव शुक्ला की रिपोर्ट)

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