कश्मीरी युवक चमकीला बर्तन के कारोबार को बचाने के लिए प्रयासरत
By भाषा | Published: December 1, 2021 06:16 PM2021-12-01T18:16:15+5:302021-12-01T18:16:15+5:30
श्रीनगर, एक दिसंबर श्रीनगर के 26 वर्षीय वाणिज्य स्नातक छात्र का उद्देश्य कश्मीर में मिट्टी के चमकीले बर्तन की ‘मृत’ हो रही दशकों पुरानी कला को फिर से जीवित करना है। वह करीब 80 वर्ष के बुजुर्ग से इस कला को सीख रहे हैं और उनका दावा है कि इस कला को जानने वाले यह बुजुर्ग ही एकमात्र जीवित व्यक्ति हैं।
यहां के नीशात के ईशबेर इलाके के निवासी मोहम्मद उमर कुमार ने अब अपने परिवार को इस कला में संलग्न किया है और वह कुछ युवकों को यह कौशल सीखाते भी हैं ताकि इसे विलुप्त होने से बचाया जा सके।
मिट्टी का चमकीला बर्तन ‘डल गेट पॉटरी’ के नाम से भी मशहूर है।
यह कला यहां काफी मशहूर थी और अन्य कश्मीरी कलाओं की तरह यह धीरे-धीरे समाप्त होती जा रही है क्योंकि घाटी की नई पीढ़ी ‘अपने हाथ गंदा नहीं करना चाहती।’
कुमार का परिवार मिट्टी के बर्तन बनाने का काम वर्षों से कर रहा है लेकिन उन्होंने चमकीले बर्तन की कला को जीवित करने का काम अपने हाथों में लिया है।
कुमार ने यहां ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, ‘‘हम मिट्टी के बर्तन बनाने का काम करते हैं लेकिन इसे जीवित करने के लिए हमने यह कला अपनाई। यह कला 70 वर्ष पुरानी है लेकिन कश्मीर में यह लगभग समाप्त हो चुकी है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘केवल एक व्यक्ति यह कला जानता है। वह 80 वर्षीय बुजुर्ग हैं जो खानयार इलाके में रहते हैं। मैंने सोचा कि उनके बाद यह कला मर जाएगी। लेकिन मैं ऐसा नहीं होने दूंगा। मेरे परिवार के सभी सदस्य मेरा सहयोग कर रहे हैं। मैंने उनसे कहा है कि अगर हमें नुकसान भी होता है तो हम कला को नहीं मरने देंगे।
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