वाराणसी (उत्तर प्रदेश), 13 दिसंबर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने काशी विश्वनाथ गलियारे के निर्माण कार्य में शामिल रहे श्रमिकों के एक समूह पर सोमवार को फूल बरसाए और यहां काशी विश्वनाथ धाम के उद्घाटन कार्यक्रम में शामिल हुए।
प्रधानमंत्री ने परिसर के हॉल में श्रमिकों के साथ भोजन भी किया।
देश के विभिन्न हिस्सों से श्रमिकों, इंजीनियरों और शिल्पकारों ने काशी गलियारे के निर्माण और प्राचीन काशी विश्वनाथ मंदिर परिसर को नया रूप देने में योगदान दिया है, जिस पूरे क्षेत्र को अब काशी विश्वनाथ धाम के नाम से जाना जा रहा है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गंगा में डुबकी लगाने और मंदिर में पूजा अर्चना करने के बाद अपने लोकसभा क्षेत्र वाराणसी में गलियारे का लोकार्पण किया।
मोदी ने पूजा अर्चना के बाद श्रमिकों के एक समूह से मुलाकात की जो मंदिर के नजदीक एक बरामदानुमा गैलरी में बैठे हुए थे। उनके बीच से फूलों की एक टोकरी लेकर गुजरते हुए प्रधानमंत्री ने उन पर फूल बरसाये। वे लोग निर्माण स्थल के जैकेट पहने हुए थे। उन्होंने तालियां बजाई और हाथ जोड़ कर अभिवादन किया।
प्रधानमंत्री उनके साथ बैठे भी। वहां लाल कालीन बिछा था। उन्होंने उनके साथ तस्वीरें भी खिंचवाई।
इसकी पृष्ठभूमि में मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की तस्वीर वाला एक विशाल पोस्टर लगा हुआ था जिसमें काशी के सपने को साकार करने के लिए प्रधानमंत्री का आभार प्रकट किया गया था।
प्रधानमंत्री ने कार्यक्रम में अपने संबोधन में कहा कि काशी (वाराणसी का पुराना नाम) आध्यात्मिक चेतना का केंद्र रहा है। उन्होंने कहा, ‘‘और अब भव्य स्वरूप में काशी इस चेतना में ऊर्जा का संचार करेगा।’’
बिहार के रहने वाले राजमिस्त्री और परियोजना स्थल पर पांच-छह महीने से काम कर रहे रामचंद कुमार ने प्रधानमंत्री के हाव-भाव की सराहना की।
उन्होंने कहा, ‘‘हम, आम लोगों से उनका मिलना, महत्व देना अच्छा लग रहा है।’’
करीब 339 करोड़ रुपये की लागत से निर्मित श्री काशी विश्वनाथ धाम परियोजना के प्रथम चरण में सोमवार को कुल 23 भवनों का उद्घाटन किया गया।
इनमें श्रद्धालुओं के लिए कई सुविधाएं होंगी, जैसे कि यात्री सुविधा केंद्र, वेद केंद्र, भोगशाला, नगर संग्रहालय, दर्शक दीर्घा, फूड कोर्ट आदि।
यह परियोजना अब पांच लाख वर्ग फुट में विस्तृत है, जबकि पहले का परिसर महज 3,000 वर्ग फुट तक सीमित था।
प्रधानमंत्री कार्यालय ने रविवार को एक बयान में कहा कि कोविड-19 महामारी के बावजूद परियोजना का कार्य निर्धारित समय पर पूरा किया गया।
मंदिर के मौजूदा ढांचे का निर्माण महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने करीब 1780 में कराया था और महराजा रणजीत सिंह ने उसके ऊपर एक स्वर्ण शिखर स्थापित कराया था।
Disclaimer: लोकमत हिन्दी ने इस ख़बर को संपादित नहीं किया है। यह ख़बर पीटीआई-भाषा की फीड से प्रकाशित की गयी है।