कर्नाटक स्पेशलः 6 हिस्सों में बंटा है कर्नाटक, जानिए कहां कांग्रेस चटाती है BJP-JDS को धूल
By खबरीलाल जनार्दन | Published: May 9, 2018 08:04 AM2018-05-09T08:04:50+5:302018-05-09T08:47:23+5:30
Karnataka assembly election 2018: हैदराबाद कर्नाटक में बीजेपी को करारी मात देती है कांग्रेस। साल 2013 चुनाव में हैदराबाद कर्नाटक की 40 में बीजेपी महज 5 पर सिमट गई थी।
बंगलुरु, 9 मईः कर्नाटक को संस्कृति और जनसंख्या के आधार पर कुल छह क्षेत्रों में बांटते हैं, मैसूर क्षेत्र, बंगलुरु क्षेत्र, हैदराबाद कर्नाटक, बॉम्बे कर्नाटक, सेंट्रल कर्नाटक और करावली (कोस्टल एंड हील्स)। ज्यादातर उत्तर भारतीय राज्यों में ऐसा कोई वर्गीकरण नहीं है, इसलिए यह थोड़ी नई बात लगती है। लेकिन कर्नाटक एक अद्भुत समागम वाला प्रदेश है, जिसमें वाकई छह अलग-अलग संस्कृति के लोग रहते हैं। कर्नाटक में कुल 30 जिले, 28 लोकसभा क्षेत्र और 224 विधानसभा सीटें हैं, लेकिन आप किसी भी स्थानीय कन्नड़ शख्स बात करेंगे तो वह आपको क्षेत्रों की पहचान रीजन अनुसार ही बताएगा।
असल में कर्नाटक किसी एक खास राज्य से टूटकर या जुड़कर नहीं बना है। यह पहले मैसूर, हैरादाबाद व महाराष्ट्र की रियासतों का हिस्सा हुआ करता था। साथ ही गोवा से ज्यादा खूबसूरत समुद्री तट और करावली क्षेत्र की सुंदर पहाड़ियों से घिरा यह प्रदेश साल 1952 से ही कांग्रेस का गढ़ रहा है। कालांतर में यहां जनता दल, भारतीय जनता पार्टी और जनता दल (सेकूलर) जैसी पार्टियों की भी सरकारें बनीं। लेकिन बीते विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस ने स्पष्ट बहुमत पाई थी।
इतना ही नहीं साल 2013 के चुनाव में कांग्रेस ने बीजेपी और जेडीएस के 110-110 उम्मीदवारों की जमानत जब्त करा दी थी। जबकि कांग्रेस के सीएम का चेहरा एक एक ऐसा शख्स था जो कर्नाटक की प्रमुख आबादी लिंगायत-वोक्कालिग्गा दोनों से ही वास्ता नहीं रखता। बल्कि इन्हीं दोनों अगड़ी जातियों वाले समुदाय के दो दिग्गजों से जिनमें वोक्कालिग्गा से आने वाले उसके अपने गुरु भी शामिल थे। हम बात कर रहे हैं कांग्रेस सीएम कैंडिडेट सिद्धारमैया की।
सिद्धारमैया पहले जनता दल का हिस्सा हुआ करते थे। सिद्धारमैया कुरबा समुदाय से आते हैं। लेकिन राजनीति में उनके गुरु वोक्कालिग्गा समुदाय के नेता एचडी देवगौड़ा थे। लेकिन बाद में सिद्धारमैया देवगौड़ा के पुत्रमोह से आहत होकर कांग्रेस में आ गए। जेडीएस से कांग्रेसी हुए सिद्धारमैया जब कांग्रेस के सीएम कैंडिडेट बने तो विरोधियों ने तगड़ा हमला बोला। लेकिन कर्नाटक विधानसभा 2013 खुलेआम सिद्धारमैया अपने दम चुनाव लड़े और कांग्रेस को 122 सीटें जीतकर दीं। जानिए, तब कर्नाटक के किस रीजन में किस पार्टी का कैसा प्रदर्शन रहा-
रीजन | कांग्रेस | बीजेपी | जेडीएस | अन्य | कुल |
ओल्ड मैसूर | 30 | 4 | 25 | 5 | 64 |
बंगलुरु सिटी | 13 | 12 | 3 | 0 | 28 |
हैदराबाद कर्नाटक | 23 | 5 | 1 | 7 | 40 |
बॉम्बे कर्नाटक | 31 | 13 | 1 | 5 | 50 |
सेंट्रल कर्नाटक | 12 | 3 | 6 | 2 | 23 |
करावली (कोस्टल एंड हील्स) | 13 | 3 | 6 | 2 | 23 |
कुल | 122 | 40 | 40 | 22 | 224 |
इन आंकड़ों को करीब से देखने पर पता चलता है कि सबसे ज्यादा बॉम्बे कर्नाटक में सीटें हैं। साल 2013 के चुनावों में बीजेपी बॉम्बे कर्नाटक की 50 सीटों में महज 13 सीटें ही जीत पाई थी। जबकि बीजेपी को करारी मात देते हुए कांग्रेस ने यहां 31 सीटें जीत ली थीं। लेकिन इससे ज्यादा बीजेपी की हालत हैदराबाद कर्नाटक में हुई। यहां की 40 सीटों में बीजेपी को महज 5 सीटें ही मिलीं। जबकि कांग्रेस ने यहां 23 सीटें हासिल कीं। (जरूर पढ़ेंः कर्नाटक चुनावः CM सिद्धारमैया कर बैठे पीएम नरेंद्र मोदी की तारीफ, फिर ऐसे सुधारी गलती)
मैसूर रीजन में कांग्रेस को कोई टक्कर दे पाया था तो वो है जनता दल (सेक्यूलर)। मैसूर की 64 सीटों में कांग्रेस को 30 और जेडीएस को 25 सीटें मिली थीं। यहां बीजेपी फ्लॉप रही थी। इसीलिए इस बार इन क्षेत्रों में बीजेपी केवल कांग्रेस पर हमलावर है। वह जेडीएस को यहां से बढ़ने देना चाह रही है। क्योंकि इस क्षेत्र में कांग्रेस को सही चुनौती जेडीएस ही दे पाती है। अब जरा वोटों का शेयर देखिए-
रीजन | कांग्रेस | बीजेपी | जेडीएस | अन्य |
ओल्ड मैसूर | 33.7 | 9.4 | 32.7 | 24.2 |
बंगलुरु सिटी | 40.5 | 32 | 18.7 | 8.8 |
हैदराबाद कर्नाटक | 34.7 | 16.9 | 16.1 | 32.2 |
बॉम्बे कर्नाटक | 37.7 | 27.3 | 11 | 24 |
सेंट्रल कर्नाटक | 35.6 | 14.8 | 18.9 | 30.7 |
करावली (कोस्टल एंड हील्स) | 42.6 | 32.3 | 10 | 14.2 |
वोट शेयर के आंकड़ों को देखकर पता चलता है कि साल 2013 में अच्छा खासा वोट शेयर तीनों प्रमुख पार्टियों कांग्रेस, बीजेपी और जेडीएस के अलावा दूसरी पार्टियां खींच ले गई थीं। इसकी वजह थी। बीएस येदियुरप्पा की पार्टी कर्नाटक जनता पक्ष और श्रीरामलू की पार्टी बीएसआर कांग्रेस। साल 2013 में हुई ऐतिहासिक 71.8 फीसदी मतदान में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी। कर्नाटक ने कुल मतदान का 36.5 फीसदी वोट हासिल कर 122 सीटें जीती थीं। लेकिन करीब से देखने पर पता चलता है कि कांग्रेस को सबसे ज्यादा वोट करावली के पहाड़ी क्षेत्र से मिला था। बीजेपी ने यहां उसे कड़ी टक्कर दी थी। मैसूर क्षेत्र में बीजेपी फिसड्डी साबित हुई थी। वहां कांग्रेस और जेडीएस ने करीब-करीब बराबर वोट शेयर किए थे लेकिन सीटें कांग्रेस की ज्यादा थीं। (जरूर पढ़ेंः चुनाव स्पेशलः उत्तर कर्नाटक में बोलती है बीजेपी की तूती, तो दक्षिण कर्नाटक में है जेएसडी का वर्चस्व)
इन्हीं छह रीजन में कर्नाटक के 30 जिले भी समाहित हैं। ऐसे में जो लोग कर्नाटक की राजनीति को जिले से समझते हैं। उन्हें यह आंकड़ा देखना चाहिए। इसमें यह साफ हो जाता है कि मैसूर में क्षेत्र में लोग जबर्दस्त तरीके वोटिंग करते हैं। लेकिन यहां वोटिंग मतलब सत्ता बदलना नहीं होता। ये परंपरागत तरीके से कांग्रेस और जेडीएस के वोटर हैं। लेकिन बस बार मैसूर क्षेत्र सबसे ज्यादा रोमांचक हो गया है। रामनगरम जो कुमार स्वामी का गढ़ है। वहां सेंध लगाने के लिए बीजेपी भी कोशिश कर रही है। दूसरी ओर चामुंडेश्वरी सीट भी इसी क्षेत्र में आती है। (जरूर पढ़ेंः चुनाव स्पेशल: क्या बीएस येदियुरप्पा के कारण कर्नाटक हार जाएगी बीजेपी?)
रीजन | जिले | जिले में कुल सीटें | कांग्रेस | बीजेपी | जेडीएस | मतदान फीसदी |
ओल्ड मैसूर | 8 | 55 | 25 | 2 | 23 | 78.8 |
बंगलुरु सिटी | 2 | 32 | 15 | 12 | 5 | 60.6 |
हैदराबाद कर्नाटक | 5 | 31 | 19 | 4 | 4 | 66.5 |
बॉम्बे कर्नाटक | 6 | 50 | 31 | 13 | 1 | 72.8 |
सेंट्रल कर्नाटक | 5 | 35 | 19 | 4 | 7 | 75.8 |
करावली (कोस्टल एंड हील्स) | 4 | 21 | 13 | 5 | 0 | 74.9 |
कुल | 30 | 224 | 122 | 40 | 40 | 71.8 |
जिलेवार सीटों के विभाजन में हम पाते हैं कि कर्नाटक के दक्षिणी हिस्से यानी कि मैसूर और बंगलुरु के अलावा जेडीएस बाकी क्षेत्रों में जेडीएस अपनी जमीन तलाश रही है। जबकि बीजेपी को कमोबेश सभी छह रीजन से कुछ ना कुछ सीटें मिलती हैं। लेकिन बीते चुनाव में जिसने बड़ा अंतर पैदा किया था वो है हैदाराबाद और बॉम्बे कर्नाटक के 11 जिले जिनमें 81 सीटें हैं और बीजेपी को इनमें महज 14 सीटें ही मिली थीं। जबकि कांग्रेस इसमें बाजी मारते हुए 50 सीटें जीत ले गई थी। इसीलिए इस बार इन क्षेत्रों में बीजेपी ने रेड्डी बंधुओं, श्रीरामलु आदि को मैदान में उतार दिया है। अब 15 मई को आने वाले परिणामों यह पता चलेगा कि बीजेपी के तुरुप के इक्के कितने कारगर साबित हुए।