न्यायाधीशों का दायित्व है कि वे अपनी बात कहने में अत्यधिक विवेक का प्रयोग करें: राष्ट्रपति

By भाषा | Published: November 27, 2021 07:50 PM2021-11-27T19:50:24+5:302021-11-27T19:50:24+5:30

Judges have an obligation to exercise utmost discretion in speaking out: President | न्यायाधीशों का दायित्व है कि वे अपनी बात कहने में अत्यधिक विवेक का प्रयोग करें: राष्ट्रपति

न्यायाधीशों का दायित्व है कि वे अपनी बात कहने में अत्यधिक विवेक का प्रयोग करें: राष्ट्रपति

नयी दिल्ली, 27 नवंबर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने शनिवार को यहां कहा कि यह न्यायाधीशों का दायित्व है कि वे अदालत कक्षों में अपनी बात कहने में अत्यधिक विवेक का प्रयोग करें क्योंकि अविवेकी टिप्पणी, भले ही अच्छे इरादे से की गई हो, वह न्यायपालिका के महत्व को कम करने वाली संदिग्ध व्याख्याओं को जगह देती है।

उच्चतम न्यायालय द्वारा आयोजित दो दिवसीय संविधान दिवस कार्यक्रम के समापन समारोह को संबोधित करते हुए कोविंद ने कहा कि भारतीय परंपरा में, न्यायाधीशों की कल्पना 'स्थितप्रज्ञ' (स्थिर ज्ञान का व्यक्ति) के समान शुद्ध और तटस्थ आदर्श के रूप में की जाती है।

प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति एन वी रमण ने अपने संबोधन में कहा कि विधायिका कानूनों के प्रभाव का आकलन या अध्ययन नहीं करती है, जो कभी-कभी ‘‘बड़े मुद्दों’’ की ओर ले जाते हैं और परिणामस्वरूप न्यायपालिका पर मामलों का अधिक बोझ पड़ता है।

वहीं, केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा कि ऐसी स्थिति में नहीं रहा जा सकता, जहां विधायिका द्वारा पारित कानूनों और न्यायपालिका द्वारा दिए गए फैसलों को लागू करना मुश्किल हो।

राष्ट्रपति ने कहा, "हमारे पास ऐसे न्यायाधीशों की विरासत का एक समृद्ध इतिहास है, जो दूरदर्शिता से पूर्ण और निंदा से परे आचरण के लिए जाने जाते हैं, जो आने वाली पीढ़ियों के लिए विशिष्ट पहचान बन गए हैं।"

उन्होंने कहा कि उन्हें यह उल्लेख करने में खुशी हो रही है कि भारतीय न्यायपालिका इन उच्चतम मानकों का पालन कर रही है।

कोविंद ने कहा, ‘‘इसमें कोई संदेह नहीं है कि आपने अपने लिए एक उच्च स्तर निर्धारित किया है। इसलिए, न्यायाधीशों का यह भी दायित्व है कि वे अदालत कक्षों में अपने बयानों में अत्यधिक विवेक का प्रयोग करें। अविवेकी टिप्पणी, भले ही अच्छे इरादे से की गई हो, न्यायपालिका के महत्व को कम करने वाली संदिग्ध व्याख्याओं को जगह देती है।’’

राष्ट्रपति ने कहा, "शुरुआत से ही न्यायपालिका ने अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन करते हुए आचरण के उच्चतम मानकों का लगातार पालन किया किया है। लोगों की नजर में यह सबसे भरोसेमंद संस्थान है।"

कोविंद ने सोशल मीडिया पर न्यायाधीशों के खिलाफ की जाने वाली टिप्पणियों पर भी नाराजगी जताई।

उन्होंने कहा, ‘‘...सोशल मीडिया मंचों पर न्यायपालिका के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणियों के कुछ मामले सामने आए हैं। इन मंचों ने सूचनाओं को लोकतांत्रिक बनाने के लिए अद्भुत काम किया है, फिर भी उनका एक स्याह पक्ष भी है। इनके द्वारा दी गई नाम उजागर न करने की सुविधा का कुछ शरारती तत्व फायदा उठाते हैं। यह पथ से एक भटकाव है, और मुझे उम्मीद है कि यह अल्पकालिक होगा।’’

राष्ट्रपति ने लंबित मामलों और न्यायाधीशों की नियुक्ति के बारे में भी बात की और स्पष्ट किया कि उनका दृढ़ विचार है कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता के साथ कोई समझौता नहीं किया जा सकता। हालांकि, उन्होंने पूछा, "इसे थोड़ा भी कम किए बिना, क्या उच्च न्यायपालिका के लिए न्यायाधीशों का चयन करने का एक बेहतर तरीका खोजा जा सकता है?"

कोविंद ने कहा, "उदाहरण के लिए, एक अखिल भारतीय न्यायिक सेवा हो सकती है जो निचले स्तर से उच्च स्तर तक सही प्रतिभा का चयन कर सकती है और इसे आगे बढ़ा सकती है।"

प्रधान न्यायाधीश ने इस अवसर पर कहा कि विशेष बुनियादी ढांचे के निर्माण के बिना मौजूदा अदालतों को वाणिज्यिक अदालतों के रूप में पेश करने से लंबित मामलों पर कोई असर नहीं पड़ेगा। उन्होंने कहा, ‘‘एक और मुद्दा यह है कि विधायिका अपने द्वारा पारित कानूनों के प्रभाव का अध्ययन या आकलन नहीं करती है। यह कभी-कभी बड़े मुद्दों की ओर ले जाता है। परक्राम्य लिखत कानून की धारा 138 की शुरुआत इसका एक उदाहरण है। पहले से मुकदमों का बोझ झेल रहे मजिस्ट्रेट इन हजारों मामलों के बोझ से दब गए हैं। इसी तरह, मौजूदा अदालतों को एक विशेष बुनियादी ढांचे के निर्माण के बिना वाणिज्यिक अदालतों के रूप में पेश करने से लंबित मामलों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा।’’

परक्राम्य लिखत कानून की धारा 138 बैंक खातों में पर्याप्त धन नहीं रहने पर चेक बाउंस होने से संबंधित मामलों से जुड़ी है।

न्यायमूर्ति रमण ने केंद्रीय कानून मंत्री की इस घोषणा की सराहना की कि सरकार ने न्यायिक बुनियादी ढांचे के विकास के लिए 9,000 करोड़ रुपये का आवंटन किया है।

वहीं, केंद्रीय कानून मंत्री ने कहा कि कभी-कभी, अपने अधिकारों की तलाश में, लोग दूसरों के अधिकारों और अपने कर्तव्यों के बारे में भूल जाते हैं।

रिजिजू ने कहा कि मौलिक अधिकारों और मौलिक कर्तव्यों के बीच संतुलन तलाशने की जरूरत है।

उन्होंने रेखांकित किया कि संसद और राज्य विधानसभाओं द्वारा पारित विधेयक तथा उच्चतम न्यायालय द्वारा दिए गए फैसले देश के कानून होते हैं।

रिजिजू ने हिंदी में कहा, ‘‘ऐसी नौबत हम कैसे देख सकते हैं कि उच्चतम न्यायालय या उच्च न्यायालय, विधानसभा या संसद कानून पारित कर दे, फिर भी लागू करने में अगर मुसीबत होती है तो हम सबको सोचना होगा।’’

उन्होंने कहा, "विधायिका, न्यायपालिका, कार्यपालिका, समाज के सभी वर्गों को सोचना होगा क्योंकि देश संविधान के अनुसार चलता है।

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Web Title: Judges have an obligation to exercise utmost discretion in speaking out: President

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