जम्मू-कश्मीर: दो संविधान, दो निशान तो चले गए पर ‘दरबार मूव’ सालता रहेगा उनको जो अनुच्छेद 370 के विरोधी थे
By सुरेश एस डुग्गर | Published: April 18, 2020 11:42 PM2020-04-18T23:42:21+5:302020-04-18T23:48:25+5:30
जम्मू कश्मीर में दरबार मूव की शुरूआत महाराजा रणवीर सिंह ने 1872 में बेहतर शासन के लिए की थी। कश्मीर, जम्मू से करीब 300 किमी दूरी पर था, ऐसे में यह व्यवस्था बनाई कि दरबार गर्मियों में कश्मीर व सर्दियों में जम्मू में रहेगा।
संविधान के अनुच्छेद 370 को हटा दिए जाने के बाद देश से दो संविधान और दो निशान तो चले गए पर डेढ़ सौ साल से चल रही दो राजधानियों की परंपरा अर्थात ‘दरबार मूव’ की परंपरा उनको सालती रहेगी जो अनुच्छेद 370 का विरोध करते रहे हैं क्योंकि केंद्र शासित प्रदेश बन जाने के बाद भी यह परंपरा जारी रहेगी।
इस बार कोरोना की दहशत की वजह से दरबार मूव को अब 15 जून को संपन्न करने का फैसला लिया गया है। जबकि 10 दिन पहले इसे टालने का जो प्रयास हुआ था उसका जबरदस्त विरोध देखने को मिला।
4 अप्रैल को जारी निर्देश के अनुसार, पहले इसे आंशिक तौर पर स्थगित करते हुए यह कहा गया था कि फिलहाल शीतकालीन राजधानी जम्मू में दरबार बंद नहीं होगा।
4 अप्रैल के आदेश के अनुसार, चार मई से 15 जून तक सचिवालय और दरबार मूव कार्यालयों के कर्मचारी श्रीनगर व जम्मू दोनों जगह काम करते रहेंगें। पर इसका कश्मीरियों द्वारा प्रबल विरोध किए जाने का परिणाम है कि अब इसकी तारीख को ही 15 जून तक आगे बढ़ाने के साथ ही यह निर्देश जारी किया गया है अब पूरा दरबार मूव होगा।
यह सच है कि प्रदेश में कोरोना वायरस के संक्रमण से निपटने की मुहिम के बीच सरकार ने देर रात को दरबार खोलने संबंधी अपना फैसला पलट दिया। अब जम्मू कश्मीर की ग्रीष्मकालीन राजधानी श्रीनगर में सरकार का दरबार चार मई की जगह 15 जून से खुलेगा। श्रीनगर सचिवालय में चार मई से आंशिक रूप से कामकाज शुरू होगा।
अब दोनों राजधानियों के सचिवालयों में मौजूद कर्मचारियों के साथ काम चलता रहेगा। इस समय लॉकडाउन के चलते कश्मीर के अधिकतर कर्मचारी अपने घरों में मौजूद हैं। दरबार खोलने संबंधी आदेश जम्मू कश्मीर सरकार के अतिरिक्त सचिव रोहित शर्मा ने जारी किया।
इससे पहले अनुच्छेद 370 को हटाए जाने के बाद से ही ‘दरबार मूव’ को लेकर भिन्न प्रकार की अफवाहें उड़ने लगी थीं। जम्मू वाले इस बात को लेकर खुश थे कि अब ‘दरबार मूव’ से मुक्ति मिल जाएगी। दरअसल कहा यह जा रहा था कि जम्मू व श्रीनगर में दो नागरिक सचिवालय बना दिए जाएंगें। पर बड़ी रोचक बात यह है कि केंद्र शासित प्रदेश में राजधानी का कोई प्रावधान नहीं होने के बावजूद ‘दरबार मूव’ का फैसला बार-बार लिया जा रहा है।
तंगहाली के दौर से गुजर रहे जम्मू कश्मीर में दरबार मूव पर सालाना खर्च होने वाला 600 करोड़ रूपये वित्तीय मुश्किलों को बढ़ाता है। सुरक्षा खर्च मिलाकर यह 900-1200 करोड़ से अधिक हो जाता है। दरबार मूव के लिए दोनों राजधानियों में स्थायी व्यवस्था करने पर भी अब तक अरबों रूपये खर्च हो चुके हैं।
जम्मू कश्मीर में दरबार मूव की शुरूआत महाराजा रणवीर सिंह ने 1872 में बेहतर शासन के लिए की थी। कश्मीर, जम्मू से करीब 300 किमी दूरी पर था, ऐसे में यह व्यवस्था बनाई कि दरबार गर्मियों में कश्मीर व सर्दियों में जम्मू में रहेगा। 19वीं शताब्दी में दरबार को 300 किमी दूर ले जाना एक जटिल प्रक्रिया थी व यातायात के कम साधन होने के कारण इसमें काफी समय लगता था। अप्रैल महीने में जम्मू में गर्मी शुरू होते ही महाराजा का काफिला श्रीनगर के लिए निकल पड़ता था। महाराजा का दरबार अक्टूबर महीने तक कश्मीर में ही रहता था।
जम्मू से कश्मीर की दूरी को देखते हुए डोगरा शासकों ने शासन को ही कश्मीर तक ले जाने की व्यवस्था को वर्ष 1947 तक बदस्तूर जारी रखा। जब 26 अक्टूबर 1947 को राज्य का देश के साथ विलय हुआ तो राज्य सरकार ने कई पुरानी व्यवस्थाएं बदल ले लेकिन दरबार मूव जारी रखा था।