Holi: झारखंड के संथाली आदिवासी समाज में है अनोखी परंपरा, युवती पर डाला रंग तो हो जाती है शादी

By एस पी सिन्हा | Published: March 18, 2022 03:28 PM2022-03-18T15:28:03+5:302022-03-18T15:32:56+5:30

झारखंड के पश्चिम सिंहभूम से लेकर पश्चिम बंगाल के जलपाईगुडी तक संथाल आदिवासी समाज में होली को 'बाहा पर्व' के रूप में मनाया जाता है.

Jharkhand santhali tribal society unique tradition of Holi no man puts colour on Girl | Holi: झारखंड के संथाली आदिवासी समाज में है अनोखी परंपरा, युवती पर डाला रंग तो हो जाती है शादी

झारखंड के संथाली आदिवासी समाज है होली की अनोखी परंपरा (प्रतीकात्मक तस्वीर)

रांची: झारखंड में संथाल आदिवासी समाज में होली की विशेष परम्परा है. इस परम्परा के अनुसार अगर किसी कुंवारी युवती पर किसी युवक ने रंग डाल दिया तो दोनों की शादी करा दी जाती है. यह नियम झारखंड के पश्चिम सिंहभूम से लेकर पश्चिम बंगाल के जलपाईगुडी तक प्रचलित है. इसी डर से कोई संथाल युवक किसी युवती के साथ रंग नहीं खेलता. परंपरा के मुताबिक पुरुष केवल पुरुष के साथ ही होली खेल सकता है.

बताया जाता है कि संथाली समाज में 15 दिन पहले से ही होली मनाई जाती है. समाज के लोग होली को 'बाहा पर्व' के रूप में मनाते हैं. इस ’बाहा’ के दौरान लोग एक दूसरे के साथ पानी और फूल की होली खेलते हैं. इसमें रंग डालने की इजाजत नहीं होती है. लेकिन अगर किसी युवक ने किसी भी कुंवारी युवती पर रंग डाल दिया तो फिर समाज की पंचायत उस युवती से उसकी शादी करवा देती है. 

युवती को अगर शादी का प्रस्ताव मंजूर नहीं हुआ तो समाज रंग डालने के जुर्म में युवक की सारी संपत्ति युवती के नाम करने की सजा सुना सकता है. जानकारों के अनुसार ’बाहा’ का मतलब है फूलों का पर्व. इस दिन संथाल आदिवासी समुदाय के लोग तीर धनुष की पूजा करते हैं. 

बाहा के दौरान सबकुछ होली की तरह होता है, लेकिन कोई युवक किसी युवती पर रंग नहीं डालता है. अगर डाला तो शादी के बंधन में बंध जाना तय है. 

Web Title: Jharkhand santhali tribal society unique tradition of Holi no man puts colour on Girl

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