Jharkhand Ki Khabar: समग्र शिक्षा अभियान के नाम पर मची है लूट, करोड़ों रुपये खर्च के बावजूद अक्षरों के समुचित ज्ञान से वंचित रह गये बच्चे
By एस पी सिन्हा | Published: March 15, 2020 08:23 PM2020-03-15T20:23:54+5:302020-03-15T20:24:47+5:30
सरकारी विद्यालयों (प्राथमिक से उच्च विद्यालयों तक) में बच्चों को ढंग से अक्षरों का ज्ञान तक नहीं है. जबकि इसके नाम पर करोड़ों रूपये पानी की तरह बहाये जा रहे हैं.
रांची: झारखंड में समग्र शिक्षा अभियान के नाम पर मची लूट का मामला सामने आया है. हालात यह है कि विभागीय स्तर पर राज्य में विद्यालयों में चलाये जा रहे ज्ञानसेतु एवं ई-विद्यावाहिनी कार्यक्रम अंतर्गत सर्टिफिकेशन सर्वे में लूट के चल रहे गोरखधंधे का पर्दाफास हो गया है. सरकारी विद्यालयों (प्राथमिक से उच्च विद्यालयों तक) में बच्चों को ढंग से अक्षरों का ज्ञान तक नहीं है. जबकि इसके नाम पर करोड़ों रूपये पानी की तरह बहाये जा रहे हैं.
प्राप्त जानकारी के अनुसार सरकारी विद्यालयों में कार्यरत 6,034 शिक्षकों पर प्रति माह करीब 22 करोड रुपये वेतन मद में सरकार खर्च कर रही है. अब यह तमाम खर्च सवालों के घेरे में हैं. इनके साथ ही जिले में शिक्षा व्यवस्था की निगरानी के लिए जिला से प्रखंड स्तर और संकुल स्तर कर व्यवस्था खडी की गई है. इन पर प्रति माह सरकार लाखों रुपये खर्च कर रही है. ऐसे में शिक्षा की गुणवत्ता की स्थिति पर सवाल उठाना लाजिमी है.
यह सर्वे स्कूली शिक्षा एवं साक्षरता विभाग द्वारा चलाये जा रहे ज्ञानसेतु कार्यक्रम की वजह से सरकारी विद्यालयों की शिक्षा में होने वाला गुणात्मक सुधार का अध्ययन करना था. सर्वे के नतीजे बताते हैं कि यह ज्ञानसेतु कार्यक्रम बुरी तरह असफल रहा है. इन विद्यालयों के 60 प्रतिशत बच्चों में कक्षा दो तक के कोर्स को समझने और उसे हल करने की क्षमता है.
बताया जाता है कि नीति आयोग के निर्देश पर राज्य सरकार की स्कूली शिक्षा एवं साक्षरता विभाग ने वर्ष 2018-19 के दौरान ज्ञानसेतु व ई-वाहिनी कार्यक्रम शुरू किया था. इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य सरकारी विद्यालयों में पहली कक्षा से लेकर नौवीं तक के बच्चों को दी जाने वाली बुनियादी शिक्षा में गुणात्मक सुधार लाना है.
इसके अंतर्गत पिछले वर्ष सितंबर तक स्कूलों में केवल ज्ञानसेतु की कक्षाएं चलाई गई थीं. लेकिन हाल इसका यह उभरकर सामने आया है कि बुनियादी शिक्षा में गुणात्मक सुधार के नाम पर केवल कागजी खेल खेला जाता रहा. शिक्षकों ने भी अपने कर्तव्यों के निर्वहन के बदले वेतन लेकर आनंद उठाते रहे और बच्चे अक्षरों के समुचित ज्ञान से भी वंचित रह गये. ऐसे में यह सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि झारखंड में शिक्षा का हाल क्या है.