झारखंड जैसे पिछडे राज्य में किशोरावस्था में गर्भधारण यानी ‘टीनएज प्रेगनेंसी’ का दर काफी ज्यादा सामने आने लगी है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण के चौथे दौर (एनएफएचएस-4) के आंकडों के मुताबिक भारत में ’टीनएज प्रेगनेंस’ की दर 7.9 फीसदी है और झारखंड देश के उन पहले पांच राज्यों में शामिल है, जहां यह दर सबसे ज्यादा है।
आदिवासी बहुल झारखंड राज्य में किशोरावस्था में मातृत्व’ मातृ एवं शिशु मृत्यु दर का एक बडा कारण है। इसका सीधा संबंध मां और नवजात बच्चे के खराब स्वास्थ्य, कुपोषण, गरीबी, किशोरवय की मां के आगे बढने के अवसरों का लगभग खत्म हो जाने जैसी कई बातें सामने आई हैं। बाल विवाह के मामलों में अपने पडोसी राज्यों पश्चिम बंगाल और बिहार के बाद झारखंड देश में तीसरे स्थान पर है।
जानकारों के अनुसार कोविड-19 महामारी और उससे निपटने के लिए लगाए गए लॉकडाउन के दौरान बढे लैंगिक हिंसा के मामलों के चलते झारखंड में किशोरावस्था में गर्भधारण यानी टीनएज प्रेगनेंसी की दर और अधिक बढ सकती है। जानकारों का कहना है कि बाल विवाह का दुष्प्रभाव कम उम्र में गर्भधारण के रूप में है। 15 से 19 की उम्र में शादी होनेवाली लड़कियों में हर तीन में से एक लडकी "टीन-ऐज" में ही मां बन जा रही है।
इस उम्र में शादी होनेवाली लड़कियों में से एक चौथाई 17 साल की उम्र तक मां बन जाती हैं और 31 फीसदी 18 की उम्र तक मां बन जाती हैं। झारखंड में किशोरियों के लिए सबसे गंभीर खतरों में से एक है, किशोरावस्था में गर्भधारण यानी टीनएज प्रेगनेंसी। एनएफएचएस-4 के आंकडे बताते हैं कि झारखंड में बाल विवाह की दर 38 फीसदी है, जबकि राष्ट्रीय औसत 27 फीसदी है।
वहीं, राज्य के कई इलाकों में ‘ढुकू विवाह’ का प्रचलन है। इसमें लडके-लडकियां शादी की औपचारिकता पूरी किये बिना ही पति-पत्नी की तरह रहते हैं। जिसके परिणामस्वरूप प्रदेश में लडकियों की टीनएज प्रेगनेंसी की दर 12 फीसदी है। झारखंड की मौजूदा आबादी का 22 प्रतिशत हिस्सा 10 से 19 साल के किशोर-किशोरियों का है। वहीं, यूनाइटेड नेशन्स पॉपुलेशन फंड (यूएनएफपीए) के अनुमानों के मुताबिक, अगले तीन-चार दशकों तक प्रदेश की आबादी में किशोर-किशोरियों की दर 20 से 24 फीसदी के बीच में ही रहेगी। अनुमान के मुताबिक वर्ष 2050 तक राज्य की आबादी करीब 5।5 करोड होगी, जिसमें किशोर-किशोरियों की आबादी सवा करोड़ होगी।
वहीं, जानकारों का कहना है कि यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य से जुड़ी गंभीर जानकारियां लड़कियों और युवतियों तक उचित रूप में नहीं पहुंच पाती हैं या उनकी अनदेखी की जाती है। जिसके चलते समाज में लैंगिक हिंसा से जुड़े अपराध बढ़ते हैं। जानकारी और संबंधित स्वास्थ्य सुविधाओं तक पहुंच की कमी के चलते लड़कियों और युवतियों को एचआईवी, अवांछित गर्भधारण सहित सेक्सुअली ट्रांसमिटेड इन्फेक्शन (एसटीआई) जैसी समस्याओं के बढ़ने के खतरा होता है। साथ ही, परिवार नियोजन के साधनों तक पहुंच का अभाव या परिवार के दबाव में अपने स्वास्थ्य संबंधी फैसलों को खुद नहीं ले पाने जैसे कारणों का दीर्घकालीन नकारात्मक प्रभाव लडकियों और महिलाओं के स्वास्थ्य पर पड़ सकता है।