रांची:झारखंड में सियासी संकट जारी है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन पिछले चार दिनों से लगातार यूपीए विधायकों संग अपनी ताकत दिखा रहे हैं। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को विधायकी गंवाने का खतरा मंडरा रहा है। हालांकि हेमंत सोरेन अकेले ऐसे नही हैं, जिनकी विधायकी पर तलवार लटक रही है, बल्कि उनके भाई समेत ऐसे कई नेताओं की विधानसभा सदस्यता जा सकती है।
झामुमो में हेमंत सोरेन के साथ उनके छोटे भाई बसंत सोरेन और वरिष्ठ नेता मिथिलेश ठाकुर की विधानसभा सदस्यता खतरे में है। उसी तरह से भाजपा विधायक दल के नेता बाबूलाल मरांडी और समरीलाल की सदस्यता पर भी तलवार लटक रही है। वहीं कांग्रेस के निलंबित विधायक इरफान अंसारी, नमन विक्सल और राजेश कच्छप को भी विधानसभा की सदस्यता गंवानी पड़ सकती है।
इन आठ विधायकों का मामला इस समय चुनाव आयोग और झारखंड विधानसभा अध्यक्ष न्यायाधिकरण में विचाराधीन है। वहीं सत्तारूढ पार्टी झामुमो के अंदर सब कुछ ठीक नहीं चल रहा है। झामुमो के बिशुनपुर से विधायक चमरा लिंडा, जो तीन बार के विधायक हैं। वे लगातार पार्टी की बैठकों से अनुपस्थित हैं। जबकि झामुमो ने कहा है कि वह अस्वस्थ हैं। अगर पार्टी के कुछ सूत्रों पर विश्वास किया जाए, तो बहुत से लोगों को असल में नहीं पता कि उन्हें क्या स्वास्थ्य समस्या है।
सूत्रों की मानें तो जब से हेमंत सोरेन की विधायकी रद्द करने वाला प्रकरण सामने आया है, झामुमो के कई विधायक अंदर ही अंदर नयी सियासी गहमागहमी पर नजर बनाये हुए हैं। चर्चा है कि कई विधायक मंत्री नहीं बनाये जाने से मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से काफी दुखी हैं। ऐसे में अगर मौका मिलता है तो वह उछल-कूद मचा सकते हैं। शायद पार्टी में नाराजगी को देखते हुए ही कांग्रेस और झामुमो ने अपने विधायकों को रांची में ही रहने का निर्देश दिया है ताकि विधायक विपक्षी खेमे में ना जा सकें।
इसके साथ ही यह भी कहा जा रहा है कि झामुमो-कांग्रेस-राजद सरकार गठन के बाद से ही झामुमो विधायक लिंडा मंत्री पद पाने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन उन्हें वह नहीं मिला। यही वजह है कि पार्टी को भी उनकी वफादारी पर शक है। 2019 के विधानसभा चुनाव से पहले लिंडा भाजपा में शामिल होने वाले थे लेकिन आखिरी वक्त पर उन्होंने अपना फैसला वापस ले लिया। गठबंधन सरकार बनने के बाद से वह मंत्री पद पाने की कोशिश में थे, इसलिए वे नाराज बताये जा रहे हैं।