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‘किरकिरी’ के बाद एडवाइजरी को बताया फर्जी पर उससे पहले पुलिस ने एकत्र कर लिए थे श्रमिक

By सुरेश एस डुग्गर | Updated: October 18, 2021 15:43 IST

कश्मीर के आईजी विजय कुमार ने उस एडवाइजरी को फर्जी बताया था जिसमें कश्मीर में खौफ के नाम पर दूसरे राज्यों के लोगों के पुलिस और सेना कैंप में जाने की सलाह दी गई थी। हालांकि सच्चाई यह थी कि इस एडवाइजरी पर पुलिस की जम कर किरकिरी होने के बाद इसे नकार दिया गया था।

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ठळक मुद्देएडवाइजरी में खौफ के नाम पर दूसरे राज्यों के लोगों के पुलिस और सेना कैंप में जाने की सलाह दी गई थी।नकारने से पहले ही कई कस्बों में पुलिस ने श्रमिकों को कई स्कूलों में एकत्र कर लिया था। जब पुलिस ने एडवाइजरी से पल्ला झाड़ लिया तो इन श्रमिकों को अपने हाल पर छोड़ दिया गया।

जम्मू: कश्मीर के आईजी विजय कुमार ने उस एडवाइजरी को फर्जी बताया था जिसमें कश्मीर में खौफ के नाम पर दूसरे राज्यों के लोगों के पुलिस और सेना कैंप में जाने की सलाह दी गई थी।

आईजी ने एक ट्वीट जारी करके स्थिति स्पष्ट की थी पर सच्चाई यह थी कि इस एडवाइजरी पर पुलिस की जम कर किरकिरी होने के बाद इसे नकार दिया गया था।

लेकिन इसे नकारने से पहले ही कई कस्बों में पुलिस ने श्रमिकों को कई स्कूलों में एकत्र कर लिया था। और जब पुलिस ने एडवाइजरी से पल्ला झाड़ लिया तो इन श्रमिकों को अपने हाल पर छोड़ दिया गया। नतीजतन कहीं से शरण और सुरक्षा न मिलने के कारण प्रवासी नागरिक घरों को लौटने लगे हैं। 

रविवार शाम को वनपोह में बिहार के दो श्रमिकों की हत्या के बाद घाटी छोड़ने वाले प्रवासी मजदूरों की संख्या तेजी से बढ़ी है और सोमवार को जब कश्मीर से गाड़ियों का जम्मू पहुंचने का सिलसिला शुरू हुआ तो उनमें प्रवासी श्रमिक ही सबसे ज्यादा था। 

श्रीनगर से जम्मू पहुंचने वाले छत्तीसगढ़ निवासी अजीत साहू ने बताया कि वह वहां ईट भट्ठे पर काम करता था। उसके साथ उसकी पत्नी व दो छोटे बच्चे भी वहां पर ही रह रहे थे। जैसे ही हमें रात को दो बिहारी युवकों के मारे जाने की सूचना मिली तो हम ने उसी समय कश्मीर छोड़ने की तैयारी शुरू कर दी। हालांकि भट्ठा मालिक ने उन्हें वहां सुरक्षित रखने का आश्वासन दिया लेकिन परिवार की सुरक्षा को देखते हुए उसने घाटी को छोड़ना ही बेहतर समझा।

कश्मीर में इस समय करीब तीन लाख से अधिक श्रमिक ऐसे हैं जो कि अन्य प्रदेशों से आकर रह रहे हैं। बढ़ई, निर्माण कायों, कृषि, बागवानी से लेकर मजदूरी तक का यह लोग काम करते हैं। एक हजार के करीब लोग तो सिर्फ श्रीनगर में रेहड़ियां लगाते हैं। कश्मीर के लोग कई कामों के लिए इन्हीं पर निर्भर हैं।

कुछ दिनों से आतंकियों ने इन लोगों को चुन-चुनकर निशाना बनाना शुरू किया है। एक दिन पहले शनिवार को भी उत्तर प्रदेश और बिहार के दो लोगों की आतंकियों ने हत्या कर दी। इनमें एक गोलगप्पे बेचने का काम करता था तो दूसरा बढ़ई था। 

पहले भी आतंकियों ने गोल गप्पे की रेहड़ी लगाने वाले को गोली मारी थी। इसके बाद दो शिक्षकों को निशाना बनाया था। इसके बाद कश्मीर में रह रहे अन्य प्रदेशों के लोगों में दहशत पनपने लगी और कुछ परिवारों ने पलायन भी किया।

बारामुल्ला से वापस अपने घर जा रहे अन्य राज्यों के नागरिकों का कहना है कि रविवार को हुए आतंकी हमले से पहले हमें लग रहा था कि शायद हालात सुधरेंगे, लेकिन इस घटना के बाद अब डर सताने लगा है। अगर जिंदा रहेंगे तो कहीं जाकर भी पैसा कमा लेंगे। हालातों को देखते हुए हम लोगों ने घर वापस लौटने का फैसला किया है। जम्मू जाकर ट्रेन पकड़ेंगे और अपने घर चले जाएंगे।

एक अन्य प्रवासी नागिरक ने कहा कि कुलगाम में जिस तरह धान कटाई के लिए मजदूर खोजने के बहाने दो लोगों की हत्या कर दी गई है, उससे डर और भी बढ़ गया है। क्या पता कल कोई मदद करने के बहाने आए और हमें गोलियों से भून दे। खतरा तो पहले भी था पर अब मौत सिर पर मंडरा रही है। घाटी में शांति और विकास के चलते बौखलाए आतंकी किसी भी हद तक जा सकते हैं।

टॅग्स :जम्मू कश्मीरPoliceआतंकी हमलाप्रवासी मजदूर
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