जम्मूः सुरक्षाबलों के लिए यह खुशी की बात नहीं हो सकती है कि इस साल वे सिर्फ 4 आतंकियों को मुठभेड़ों के दौरान हथियार डालने पर ही मजबूर कर सके हैं।
यह कश्मीर में नया ट्रेंड है जिसमें घर वापसी के लिए मुठभेड़ों में उलझे आतंकियों के परिजनों का इस्तेमाल उनसे हथियार डलवाने के लिए किया जा रहा है। पर इस संख्या के बावजूद आतंक की राह को थामने वालों का आंकड़ा नीचे नहीं आ रहा है। पिछले साल यह आंकड़ा 9 था। आंकड़ों के मुताबिक, इस साल 100 से अधिक कश्मीरी युवा आतंक की राह पर चले हैं।
अधिकारी कहते हैं कि इनमें से 65 को मार दिया गया है। तीस के करीब को हिरासत में ले लिया गया है और बाकी की तलाश की जा रही है। खुशी इस बात की नहीं है कि आतंकी बनने वाले 100 स्थानीय युवकों में से 65 को मार दिया गया या फिर 4 से हथियार डलवाने में कामयाबी पाई गई, बल्कि चिंता इस बात की है कि आखिर अभी भी कश्मीर में आतंकवाद की ओर आकर्षण क्यों बना हुआ है।
कश्मीर में आतंकवाद को फैले हुए 33 सालों का अरसा हो चुका है। हजारों आतंकियों को ढेर किया जा चुका है क्योंकि कोई सरेंडर पालिसी नहीं होने के कारण एक हजार से अधिक आतंकियों ने ही हथियार डाले हैं। न ही सुरक्षाबलों ने इस ओर अधिक ध्यान दिया। यही कारण था कि यह आंकड़ा अधिक नहीं बढ़ पाया।
पर इतना जरूर था कि नए ट्रेंड के तहत अब जब आपरेशन मां सेना की ओर से चलाया गया तो आतंकी बनने वालों की ‘घर वापसी’ में संख्या बढ़ने लगी और बिन मुठभेड़ों में उलझने वाले करीब 60 युवक वापस घरों को लौट आए और इस साल मुठभेड़ों के दौरान भी 4 युवक ही अभी तक हथियार छोड़ चुके हैं।
सेना की ओर से घर वापसी के प्रति स्पष्टता यह है कि आप्रेशन मां सिर्फ स्थानीय युवकों के लिए है और विदेशी आतंकियों के लिए नहीं जिन्हें सिर्फ गोली मारी जा रही है। उनके लिए तलाश करो और मार डालो का अभियान छेड़ा गया है। यही कारण था कि इस साल मारे गए 200 से अधिक आतंकियों में अभी भी उन विदेशी आतंकियों की संख्या अधिक है जो सीमा पार से आने में कामयाब हुए थे और बहुत से तो कई सालों से कश्मीर में ही सक्रिय हैं।