जम्मू-कश्मीर: पर्यटकों की बढ़ती संख्या के साथ शिकारों की कमी, आतंकवाद के 33 सालों में पहली बार नए शिकारे बनाने के दिए जा रहे ऑर्डर
By सुरेश एस डुग्गर | Published: April 12, 2023 01:07 PM2023-04-12T13:07:27+5:302023-04-12T13:07:50+5:30
जम्मू: आतंकवाद को करीब 33 सालों से झेल रहे कश्मीर में एक नई दिलचस्प बात हुई है। यहां उन शिकारों की कमी हो गई है जिनमें बैठ लोग चांदनी रात को निहारने के साथ ही डल झील के पानी के साथ अठखेलियां करते रहे हैं। पिछले कुछ वर्षों में कश्मीर की पर्यटकों का रुझान बढ़ा है। हालांकि कश्मीर आने वाले पर्यटकों के लिए परेशानी यह है कि शिकारों में बैठ डल झील, नगीन झील, मानसबल और वुल्लर के पानी से अठखेलियां करने की खातिर अब उन्हें घंटों इंतजार करना पड़ रहा है।
पर्यटकों की बढ़ती भीड़ और शिकारों में बैठने की होड़ ने शिकारे वालों के चेहरों पर ही नहीं बल्कि अब शिकारे बनाने वालों के लिए भी खुशी का मौका इसलिए दिया है क्योंकि उन्हें नए शिकारे बनाने के आर्डर कई सालों के बाद पहली बार मिले हैं।
डल झील के बाबा मुहल्ला के रहने वाला गुलाम नबी कहते हैं कि 35 सालों से वह इस बिजनेस में है और पहली बार है कि शिकारा बनाने की इतनी मांग है। उसकी तीन पीढ़ियां इसी काम में हैं और आतंकवाद के पिछले 33 सालों के अरसे में उन्हें एक साल में 8 या 10 से अधिक शिकारे बनाने का आर्डर कभी नहीं मिला। जबकि इस बार उन्हें 10 शिकारों के निर्माण का आर्डर सिर्फ 15 दिनों में मिला है।
गुलाम नबी को कश्मीर का प्रसिद्ध शिकारा निर्माता कहा जाता है जिसके शिकारे जम्मू संभाग के तवी नदी, मानसर झील के साथ साथ हैदराबाद, राजस्थान, बंगाल के अतिरिक्त देश के कई हिस्सों में देखे जा सकते हैं। हालांकि उन्हें अफसोस इसी बात का है कि सरकार ने कभी उनकी सुध नहीं ली।
एक शिकारा बनाने में 15 से 20 दिनों का समय लगता है और देवदार की लकड़ी पर अढ़ाई से 3 लाख का खर्चा आता है। करीब 35 वर्ग फीट देवदार की लकड़ी उन्हें एक शिकारा बनाने की खातिर बाजार से खरीदनी पड़ती है पर उन्हें कभी इस पर कोई समर्थन मूल्य या छूट नहीं मिला।